विजय नगर साम्राज्य
नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप विजय नगर साम्राज्य की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Vijay Nagar Samrajya in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है , इसलिए आज हम Vijay Nagar Samrajya विषय के बारे में बात करेंगे । निचे Vijay Nagar Empire की जानकारी निम्नवत है ।
⦿ विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई . में हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने की थी , जो पाँच भाइयों के परिवार के अंग थे ।
⦿ विजयनगर का शाब्दिक अर्थ है — जीत का शहर ।
⦿ हरिहर एवं बुक्का ने विजयनगर की स्थापना विद्यारण्य सन्त से आशीर्वाद प्राप्त कर की थी ।
⦿ हरिहर एवं बुक्का ने अपने पिता संगम के नाम पर संगम राजवंश की स्थापना की ।
⦿ विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी थी । विजयनगर साम्राज्य के खण्डहर तुंगभद्रा नदी पर स्थित है । इसकी राजभाषा तेलगू थी ।
संगत वंश के प्रमुख शासक
शासक | समय |
---|---|
हरिहर | 1336 - 1356 ई . |
बुक्का - I | 1356 - 1377 ई . |
हरिहर - II | 1377 - 1404 ई . |
देवराय - I | 1406 - 1422 ई . |
देवराय - II | 1422 - 1446 ई . |
मल्लिकार्जुन | 1446 - 1465 ई . |
विरूपाक्ष - II | 1465 - 1485 ई . |
⦿ हरिहर एवं बुक्का पहले वारंगल के काकतीय शासक प्रताप रुद्रदेव के सामंत थे ।
⦿ विजयनगर साम्राज्य पर क्रमशः निम्न वंशों ने शासन किया - संगम , सलुब , तुलुब एवं अरावीडू वंश ।
⦿ बुक्का - I ने वेदमार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की ।
⦿ हरिहर - II ने संगम शासकों में सबसे पहले महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी ।
⦿ इटली का यात्री निकोलो काण्टी विजयनगर की यात्रा पर देवराय प्रथम के शासन काल में आया ।
⦿ देवराय प्रथम ने तुंगभद्रा नदी पर एक बाँध बनवाया ताकि जल की कमी दूर करने के लिए नगर में नहरें ला सकें । सिंचाई के लिए उसने हरिद्र नदी पर भी बाँध बनवाया ।
⦿ संगम वंश का सबसे प्रतापी राजा देवराय द्वितीय था । इसे इमाडिदेवराय भी कहा जाता था ।
⦿ फारसी राजदूत अब्दुल रज्जाक देवराय - II के शासनकाल में विजयनगर आया था । इसके अनुसार विजयनगर में पुलिसवालों का वेतन वेश्यालय की आय से दी जाती थी ।
⦿ तेलगू कवि श्रीनाथ कुछ दिनों तक देवराय - II के दरबार में रहे ।
⦿ फरिश्ता के अनुसार देवराय II ने अपनी सेना में दो हजार मुसलमानों को भर्ती किया था एवं उन्हें जागीरें दी थीं ।
⦿ एक अभिलेख में देवराय - II को जगबेटकर ( हाथियों का शिकारी ) कहा गया है ।
⦿ देवराय - II ने संस्कृत ग्रंथ महानाटक सुधानिधि एवं ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा ।
⦿ मल्लिकार्जुन को प्रौढ़ देवराय भी कहा जाता था ।
⦿ सालुव नरसिंह ने विजयनगर में दूसरे राजवंश सालुव वंश ( 1485 1506 ई . ) की स्थापना की ।
⦿ सालुव वंश के बाद विजयनगर पर तुलुव वंश का शासन स्थापित हुआ ।
⦿ तुलुव वंश ( 1505 - 1565 ई . ) की स्थापना वीर नरसिंह ने की थी ।
⦿ तुलुव वंश का महान शासक कृष्णदेव राय था । वह 8 अगस्त ,1509 ई .को शासक बना । सालुव तिम्मा कृष्णदेवराय का योग्य मंत्री एवं सेनापति था । बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में कृष्णदेव राय को भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बताया ।
⦿ कृष्णदेव राय के शासनकाल में पूर्तगाली यात्री डोमिगोस पायस विजयनगर आया था ।
⦿ कृष्णदेव राय के दरबार में तेलगू साहित्य के आठ सर्वश्रेष्ठ कवि रहते थे , जिन्हें अष्ट दिग्गज कहा जाता था । उसके शासनकाल को तेलगू साहित्य का ' क्लासिक युग ' कहा गया है ।
⦿ कृष्णदेव राय ने तेलगू में अमुक्तमाल्याद् एवं संस्कृत में जाम्बवती कल्याणम् की रचना की ।
⦿ पांडुरंग महात्म्यम् की रचना तेनालीराम रामकृष्ण ने की थी ।
⦿ नागलपुर नामक नया नगर , हजारा एवं विट्ठलस्वामी मंदिर का निर्माण कृष्णदेव राय ने करवाया था , कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 ई . में हो गयी ।
⦿ कृष्णदेव राय ने आन्ध्रभोज , अभिनव भोज , आन्ध्र पितामह आदि उपाधि धारण की थी ।
⦿ तुलुव वंश का अन्तिम शासक सदाशिव था ।
⦿ राक्षसी - तंगड़ी या तालिकोटा या बन्नीहट्टी का युद्ध 23 जनवरी , 1565 ई . में हुआ । इसी युद्ध के कारण विजयनगर का पतन हुआ ।
⦿ विजयनगर के विरुद्ध बने दक्षिण राज्यों के संघ में शामिल था - बीजापुर , अहमदनगर , गोलकुण्डा एवं बीदर । इस संयुक्त मोर्चे का नेतृत्व अली आदिलशाह कर रहा था ।
⦿ तालिकोटा के युद्ध में विजयनगर का नेतृत्व राम राय कर रहा था ।
⦿ विजयनगर के राजाओं और बहमनी के सुल्तानों के हित तीन अलग - अलग क्षेत्रों में आपस में टकराते थे : तुंगभद्रा के दोआब में , कृष्णा - गोदावरी के कछार में और मराठ वाड़ा प्रदेश में ।
⦿ तालिकोटा युद्ध के बाद सदाशिव ने तिरुमल के सहयोग से पेनुकोंडा को राजधानी बनाकर शासन करना प्रारंभ किया ।
⦿ विजयनगर के चौथे राजवंश अरावीडु वंश ( 1570 - 1672 ई . ) की स्थापना तिरुमल ने सदाशिव को अपदस्थ कर पेनुकोंडा में किया । अरावीडू वंश का अंतिम शासक रंग - III था ।
⦿ अरावीडू शासक वेंकट - II के शासनकाल में ही वोडेयार ने 1612 ई . में मैसूर राज्य की स्थापना की थी ।
⦿ विजयनगर साम्राज्य की प्रशासनिक इकाई का क्रम ( घटते हुए ) इस प्रकार था — प्रांत ( मंडल ) — कोट्टम या वलनाडू ( जिला ) — नाडू — मेलाग्राम ( 50 ग्राम का समूह ) — ऊर ( ग्राम ) ।
⦿ विजयनगर - कालीन सेनानायकों को नायक कहा जाता था । ये नायक वस्तुतः भूसामंत थे , जिन्हें राजा वेतन के बदले अथवा उनकी अधीनस्थ सेना के रख - रखाव के लिए विशेष भु - खंड दे देता था जो अमरम् कहलाता था ।
⦿ आयंगर व्यवस्था : प्रशासन को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए प्रत्येक ग्राम को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में संगठित किया गया था । इन संगठित ग्रामीण इकाइयों पर शासन हेतु बारह प्रशासकीय अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी , जिनको सामहिक रूप से आयंगर कहा जाता था । ये अवैतनिक होते थे । इनकी सेवाओं के बदले सरकार इन्हें पूर्णतः लगानमुक्त एवं करमक्त भूमि प्रदान करती थी । इनका पद आनुवंशिक होता था । वह इस पद को बेच या गिरवी रख सकता था । ग्राम - स्तर की कोई भी सम्पत्ति इन अधिकारियों की इजाजत के बगैर न तो बेची जा सकती थी और न ही दान में दी जा सकती थी ।
विजयनगर आने वाला प्रमुख विदेशी यात्री
यात्री | देश | काल | शासक |
---|---|---|---|
निकोलो कोंटी | इटली | 1420 ई . | देवराय - I |
अब्दुर्रज्जाक | फारस | 1442 ई . | देवराय - II |
नूनिज | पुर्तगाल | 1535 ई . | अच्युत राय |
डोमिंग पायस | पुर्तगाल | 1515 ई . | कृष्णदेव राय |
बारबोसा | पुर्तगाल | 1515 - 16 ई . | कृष्णदेव राय |
⦿ कर्णिक नामक आयंगर के पास जमीन के क्रय - विक्रय से संबंधित समस्त दस्तावेज होते थे ।
⦿ विजयनगर साम्राज्य की आय का सबसे बड़ा स्रोत लगान था । भू-राजस्व की दर उपज का 1 / 6वाँ भाग था ।
⦿ विवाह कर , वर एवं वधू दोनों से लिया जाता था । विधवा से विवाह करने वाले इस कर से मुक्त थे ।
⦿ उंबलि : ग्राम में विशेष सेवाओं के बदले दी जाने वाली लगानमुक्त भूमि की भू - धारण पद्धति थी ।
⦿ रत्त कोड़गे : युद्ध में शौर्य का प्रदर्शन करनेवाले मृत लोगों के परिवार को दी गई भूमि को कहा जाता था ।
⦿ कुट्टगि : ब्राह्मण , मंदिर या बड़े भूस्वामी , जो स्वयं कृषि नहीं करते थे , किसानों को पट्टे पर भूमि दे देते थे , ऐसी भूमि को कुट्टगि कहा जाता था ।
⦿ वे कृषक मजदूर जो भूमि के क्रय - विक्रय के साथ ही हस्तांतरित हो जाते थे , कूदि कहलाते थे ।
⦿ विजयनगर का सैन्य विभाग कदाचार कहलाता था तथा इस विभाग का उच्च अधिकारी दण्डनायक या सेनापति होता था । टकसाल विभाग को जोरीखाना कहा जाता था ।
⦿ चेट्टियों की तरह व्यापार में निपुण दस्तकार वर्ग के लोगों को वीर पंजाल कहा जाता था ।
⦿ उत्तर भारत से दक्षिण भारत में आकर बसे लोगों को बड़वा कहा जाता था ।
⦿ विजयनगर में दास प्रथा प्रचलित थी । मनुष्यों के क्रय - विक्रय को वेस - वग कहा जाता था ।
⦿ मदिरों में रहनेवाली स्त्रियों को देवदासी कहा जाता था । इनका आजीविका के लिए भुमि या नियमित वेतन दिया जाता था ।
⦿ कर्णिक नामक आयंगर के पास जमीन के क्रय - विक्रय से संबंधित समस्त दस्तावेज होते थे ।
⦿ विजयनगर साम्राज्य की आय का सबसे बड़ा स्रोत लगान था । भू-राजस्व की दर उपज का 1 / 6वाँ भाग था ।
⦿ विवाह कर , वर एवं वधू दोनों से लिया जाता था । विधवा से विवाह करने वाले इस कर से मुक्त थे ।
⦿ उंबलि : ग्राम में विशेष सेवाओं के बदले दी जाने वाली लगानमुक्त भूमि की भू - धारण पद्धति थी ।
⦿ रत्त कोड़गे : युद्ध में शौर्य का प्रदर्शन करनेवाले मृत लोगों के परिवार को दी गई भूमि को कहा जाता था ।
⦿ कुट्टगि : ब्राह्मण , मंदिर या बड़े भूस्वामी , जो स्वयं कृषि नहीं करते थे , किसानों को पट्टे पर भूमि दे देते थे , ऐसी भूमि को कुट्टगि कहा जाता था ।
⦿ वे कृषक मजदूर जो भूमि के क्रय - विक्रय के साथ ही हस्तांतरित हो जाते थे , कूदि कहलाते थे ।
⦿ विजयनगर का सैन्य विभाग कदाचार कहलाता था तथा इस विभाग का उच्च अधिकारी दण्डनायक या सेनापति होता था । टकसाल विभाग को जोरीखाना कहा जाता था ।
⦿ चेट्टियों की तरह व्यापार में निपुण दस्तकार वर्ग के लोगों को वीर पंजाल कहा जाता था ।
⦿ उत्तर भारत से दक्षिण भारत में आकर बसे लोगों को बड़वा कहा जाता था ।
⦿ विजयनगर में दास प्रथा प्रचलित थी । मनुष्यों के क्रय - विक्रय को वेस - वग कहा जाता था ।
⦿ मदिरों में रहनेवाली स्त्रियों को देवदासी कहा जाता था । इनका आजीविका के लिए भुमि या नियमित वेतन दिया जाता था ।
नोट : विजयनगर की मुद्रा पेगोडा तथा बहमनी राज्य की मद्रा हूण थी ।
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नोट : विजयनगर की मुद्रा पेगोडा तथा बहमनी राज्य की मद्रा हूण थी । |
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