शक

नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप शकों का आक्रमण की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Shako ka akraman in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है , इसलिए आज हम Shako ka akraman  विषय के बारे में बात करेंगे । निचे Attack of shaks की जानकारी निम्नवत है ।

Shako ka akraman,Attack of shaks,शकों का आक्रमण
Shako ka akraman

⦿ यूनानियों के बाद शक आए । शकों की पाँच शाखाएँ थीं और हर शाखा की राजधानी भारत और अफगानिस्तान में अलग - अलग भागों में थी ।

⦿ पहली शाखा ने अफगानिस्तान , दूसरी शाखा ने पंजाब ( राजधानी तक्षशिला ) , तीसरी शाखा ने मथुरा , चौथी शाखा ने पश्चिमी भारत एवं पाँचवीं शाखा ने ऊपरी दक्कन पर प्रभुत्व स्थापित किया । प्रथम शक राजा मोअ था ।

⦿ शक मूलतः मध्य एशिया के निवासी थे और चरागाह की खोज में भारत आए ।

⦿ 58 ईसा पूर्व में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शकों को पराजित करके बाहर खदेड़ दिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की ।

⦿ शकों पर विजय के उपलक्ष्य में 58 ईसा पूर्व से एक नया संवत् विक्रम संवत् के नाम से प्रारंभ हुआ । उसी समय से विक्रमादित्य एक लोकप्रिय उपाधि बन गयी , जिसकी संख्या भारतीय इतिहास में 14 तक पहुँच गयी। गुप्त सम्राट् चन्द्रगुप्त द्वितीय सबसे अधिक विख्यात विक्रमादित्य था ।

⦿ शकों की अन्य शाखाओं की तुलना में पश्चिम भारत में प्रभुत्व स्थापित करनेवाली शाखा ने सबसे लम्बे अरसे तक शासन किया ।  ( लगभग चार शताब्दी तक )

⦿ गुजरात में चल रहे समुद्री व्यापार से यह शाखा काफी लाभान्वित हुई और भारी संख्या में चाँदी के सिक्के जारी किए ।

⦿ शकों का सबसे प्रतापी शासक रुद्रदामन प्रथम था , जिसका शासन ( 130 - 150 ई . ) गुजरात के बड़े भाग पर था । इसने काठियावाड़ की अर्धशुष्क सुदर्शन झील ( मौर्यों द्वारा निर्मित ) का जीर्णोद्धार किया ।

⦿ रुद्रदामन संस्कृत का बड़ा प्रेमी था । उसने ही सबसे पहले विशुद्ध  संस्कृत भाषा में लम्बा अभिलेख ( गिरनार अभिलेख ) जारी किया , इसके पहले के सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में रचित थे ।

⦿ भारत में शक राजा अपने को क्षत्रप कहते थे ।

पार्थियाई या पहलव
पश्चिमोत्तर भारत में शकों के आधिपत्य के बाद पार्थियाई लोगों का आधिपत्य हुआ । सबसे प्रसिद्ध पार्थियाई राजा गोंडोफनिर्स  था । इसी के शासन काल में सेंट टामस ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए  भारत आया था ।

नोट : पार्थियाई लोगों का मूल स्थान ईरान में था ।

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