संगम युग
नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप संगम युग की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Sangam yug in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है , इसलिए आज हम Sangam yug विषय के बारे में बात करेंगे । निचे Sangam Age की जानकारी निम्नवत है ।
⦿ ऐतिहासिक युग के प्रारंभ में दक्षिण भारत का क्रमबद्ध इतिहास हमें जिस साहित्य से ज्ञात होता है उसे संगम साहित्य कहा जाता है । संगम शब्द का अर्थ परिषद् अथवा गोष्ठी होता है जिनमें तमिल कवि एवं विद्वान एकत्र होते थे । प्रत्येक कवि अथवा लेखक अपनी रचनाओं को संगम के समक्ष प्रस्तुत करता था तथा इसकी स्वीकृति प्राप्त हो जाने के बाद ही किसी भी रचना का प्रकाशन संभव था ।
नोट- कवियों और विद्वानों की परिषद् के लिए संगम नाम का प्रयोग सर्वप्रथम सातवीं शती के प्रारंभ में शैव सन्त ( नायनार ) तिरूनाबुक्क रशु ( अप्पार ) ने किया । |
⦿ परम्परा के अनुसार अति प्राचीन समय में पाण्ड्य राजाओं के संरक्षण में कुल तीन संगम आयोजित किए गए । इनमें संकलित साहित्य को ही संगम साहित्य की संज्ञा प्रदान की गयी ।
⦿ उपलब्ध संगम साहित्य का विभाजन तीन भागों में किया जाता । है - 1 . पत्थुप्पात्तु 2 . इत्थुथोकै तथा 3 . पादिनेन कीलकन्क्कु ।
⦿ तिरूवल्लुवर कृत कुराल तमिल साहित्य का एक आधारभूत ग्रंथ बताया जाता है । इसके विषय त्रिवर्ग आचारशास्त्र , राजनीति , आर्थिक जीवन एवं प्रणय से संबंधित है ।
संगत | स्थान | अध्यक्ष | संकलित महत्वपूर्ण ग्रन्थ |
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प्रथम संगत | मदुरा (समुद्र में विलीन) | अगस्त्य | अकट्टियम परिपदाल , मदुनारै , मुदुकुरुकु तथा कलारि आविरै । ( कोई भी इनमें उपलब्ध नहीं है । ) |
दूसरा संगत | कपाटपुरम (अलैवाई )(समुद्र में विलीन ) | अगस्त्य | तोल्काप्पियम ( तमिल व्याकरण , रचनाकार - तोल्काप्पियर ) |
तीसरा संगत | मदुरा | नक्कीरर | नेदुन्थोकै , कुरुन्थोकै , नत्रिनई , एन्कुरु भूरू , परिपादल , कुथु , वरि पेरिसै तथा सित्रिसै आदि |
⦿ इलांगो कृत शिल्पादिकारम् एक उत्कृष्ट रचना है जो तमिल जनता में राष्ट्रीय काव्य के रूप में मानी जाती है । इसमें कावेरीपट्टन के कोवलन उसकी पत्नी कण्णगि एवं नर्तकी माधवी की प्रेम कहानी है ।
⦿ मदुरा के बौद्ध धर्मावलंबी व्यापारी सीतलैसत्तनार ने मणिमेकलै की रचना की । इसमें राजकुमार उदयकुमारन एवं मणिमेकले ( कोवलन एवं नर्तकी माधवी की पुत्री ) की प्रेम कहानी है । इस ग्रंथ की कहानी दार्शनिक एवं शास्त्रार्थ संबंधी बातों के लिए बनाई गई है । इसका महत्व मुख्यतः धार्मिक है । नीलकंठ शास्त्री के अनुसार यह बौद्ध लेखक दिङनाथ ( पांचवीं शती ) की कृति ' न्याय प्रवेश ' पर आधारित है ।
⦿ जीवकचिन्तामणि संगमकाल के बहुत बाद की रचना है । इसकी रचना का श्रेय जैन भिक्षु तिरुत्तक्क देवर को दिया जाता है । कहा जाता है कि तिरुत्तक्क देवर पहले चोल राजकुमार था जो बाद में जैन भिक्षु बन गया ।
⦿ संगम साहित्य में हमें तमिल प्रदेश के तीन राज्यों चोल , चेर , तथा पाण्ड्य का विवरण प्राप्त होता है । उत्तर - पूर्व में चोल , दक्षिण पश्चिम में चेर तथा दक्षिण - पूर्व में पाण्ड्य राज्य स्थित था ।
⦿ संगम युगीन राज्यों में सर्वाधिक शक्तिशाली चोलों का राज्य था । यह पेन्नार तथा दक्षिणी वेल्लारू नदियों के बीच स्थित था । इसका सबसे प्रतापी राजा करिकाल था ।
⦿ करिकाल ब्राह्मण मतानुयायी था और इसे ब्राह्मण धर्म को राजकीय संरक्षण प्रदान किया । पुहार पत्तन का निर्माण इसी के समय हुआ । । इसने कावेरी नदी के मुहाने पर बाँध बनवाया तथा सिंचाई करने के लिए नहरों का निर्माण करवाया । पेरूनानुन्नुपानदे में करिकाल को संगीत के सप्तस्वरों का विशेषज्ञ बताया गया है ।
⦿ संगम युग का दूसरा राज्य चेरों का था जो आधुनिक केरल प्रान्त में स्थित था । इस राज्य के कुछ प्रमुख राजा हुए उदियंजीरल ( लगभग 130 ई . ) , नेदुंजीरल आदन ( 155 ई . ) एवं सेनगुट्टूवन ( 180 ई . ) ।
⦿ सेनगुट्टूवन ने अधिराज की उपाधि ग्रहण की । इसने पत्तिनी नामक धार्मिक सम्प्रदाय को समाज में प्रतिष्ठित किया ।
⦿ संगम युग का तीसरा राज्य पाण्ड्यों का था जो कावेरी के दक्षिण में स्थित था । इसकी राजधानी मदुरा में थी । पाण्ड्य राजाओं में नेडुंजेलियन ( लगभग 210 ई . ) सबसे शक्तिशाली था ।
⦿ संगम युग में मंत्रियों को अमाइच्चान या अमाइच्चार कहा जाता था ।
⦿ राजधानी में एक राजसभा होती थी जिसे नालवै कहा जाता था । यह राजा के साथ न्याय का कार्य करता था । राजा देश का प्रधान न्यायाधीश तथा सभी प्रकार के मामलों की सुनवाई की अंतिम अदालत होता था । राजा के न्यायालय को मन्रम कहा जाता था ।
⦿ चोरी तथा व्यभिचार के अपराध के लिए मृत्युदण्ड दिया जाता था । झूठी गवाही देने पर जीभ काट ली जाती थी ।
⦿ भूमिकर नकद तथा अनाज दोनों रूपों में अदा किया जाता था । संभवतः यह उपज का छठा भाग होता था , किन्तु कभी कभी इसे बढ़ाया जाता था । व्यापारियों से सीमा शुल्क एवं चुगी वसूल की जाती थी ।
⦿ सेना चतुरंगिणी होती थी जिसमें अश्व , गज , रथ , तथा पैदल सपाही सम्मिलित थे । नागड़ा एवं शंख बजाकर सैनिकों को बलाया जाता था । युद्ध भूमि में वीरगति पाने वाले सनिकों के सम्मान में पत्थर की मूर्ति बनवाए जाने की प्रथा थी ।
संगम कालीन कुछ अन्य वर्ग |
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1 . पुलैयन : दस्तकारों का एक वर्ग जो रस्सी तथा पशुचर्म की सहायता से चारपाई एवं चटाई बनाने का कार्य करते थे । 2 . एनियर : शिकारियों की एक जाति । 3 . मलवर : लूट पाट करने वाली जाति । |
⦿ राजा अपने आवास की रक्षा के लिए सशस्त्र महिलाओं को तैनात करता था ।
⦿ संगम काल में समय जानने के लिए जल घड़ी का प्रयोग किया जाता था ।
⦿ तमिल प्रदेश में ब्राह्मणों का उदय सर्वप्रथम संगम काल में हुआ जो समय का सबसे प्रतिष्ठित वर्ग था । इसकी हत्या को सबसे बड़ा अपराध माना जाता था । संगम कालीन ब्राह्मण मांस भक्षण करते थे तथा सुरा पीते थे ।
⦿ ब्राह्मणों के पश्चात् संगम युगीन समाज में वेल्लार वर्ग का स्थान था । इसका मुख्य पेशा कृषि कर्म था ।
⦿ संगम साहित्य में व्यापारी वर्ग को वेनिगर कहा गया है ।
⦿ संगम साहित्य में दास प्रथा के अस्तित्व का प्रमाण नहीं मिलता है ।
⦿ तोल्काप्पियम नामक तमिल रचना से ज्ञात होता है कि संगम काल में विवाह को संस्कार के रूप में मान्यता प्रदान की गयी थी । इसमें हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णित विवाह के आठ प्रकारों ( ब्रह्म , दैव , आर्ष ,प्रजापत्य , असुर , गान्धर्व , राक्षस तथा पैशाच ) का उल्लेख मिलता है ।
⦿ प्रणय विवाह की मान्यता दी गई थी जिसे पंचतिणै कहा गया है । एक पक्षीय प्रणय को कैक्किणैं व अनुचित प्रणय को पेरून्दिणैं कहा गया है ।
⦿ संगम काल में चावल मुख्य खाद्यान्न था । इसे दूध में मिलाकर सांभर नामक खाद्यान्न तैयार किया जाता था ।
⦿ नर्तक , नर्तकियों व गायकों के दल घूम - घूम कर लोगों का मनोरजन किया करते थे । संगम साहित्य में इन्हें पाणर व विडैलियर कहा गया है ।
⦿ तमिल साहित्य में मच्चेलियर तथा ओवैयर जैसी कवियित्रियों की चर्चा हुई है जिससे स्पष्ट है कि इस काल की स्त्रियाँ सुशिक्षिता होती थीं ।
⦿ संगम काल के लोग कौवे को शुभ पक्षी मानते थो जो अतिथियों के आगमन की सूचना देता था । कौवे नाविकों को सही दिशा का भी बोध कराते थे । इस कारण सागर के मध्य चलने वाले जहाजों के साथ उन्हें ले जाया जाता था ।
⦿ संगम काल में समाधियों के स्थान पर पत्थर गाड़ने की प्रथा थी । इन्हें वीरगल अथवा वीरप्रस्तर कहा जाता था । इनकी पूजा भी होती थी । प्रायः युद्ध में वीरगति प्राप्त सैनिकों के सम्मान में खड़े किए जाते थे ।
⦿ संगम काल में किसानों को वेल्लार तथा उनके प्रमुखों को वेलिर कहा जाता था ।
⦿ संगम साहित्य से पता चलता है कि समाज के निम्न वर्ग की महिलाएं ही मुख्यतः खेती का कार्य किया करती थी । इने कडैसिवर कहा गया है ।
⦿ संगम काल में चोलों की समृद्धि का मुख्य कारण उनका सुविकसित वस्त्रोद्योग था ।
⦿ पाण्ड्य राज्य में कोर्कई , शालियूर एवं चेर राज्य में बन्दर प्रमख बन्दरगाह था । कोर्कई मोती खोजने का प्रमुख पत्तन था ।
⦿ कोरोमण्डल समुद्रतट पर पदुचेरी से तीन किमी दक्षिण में स्थित अरिकमेडु चोल वंश का एक प्रमुख बन्दरगाह था । इस बन्दरगाह से रोम के साथ व्यापार होता था । 1945 ई . में हुई यहाँ की खुदाई से एक विशाल रोमन बस्ती का पता चला है । यहाँ मनकों के निर्माण का कारखाना भी था । पेरिप्लस में अरिकमेडु को पेडोक कहा गया है ।
नोट -संगम काल में ही मिश्र के एक नाविक हिप्पोलस ने मानसूनी हवाओं के सहारे बड़े जहाजों से सीधे समुद्र पार कर सकने की विधि खोजी । |
⦿ तमिल देश का प्राचीन देवता मुरुगन था । कालान्तर में उसका नाम सुब्रह्मण्य हो गया और स्कन्द - कार्तिकेय के साथ उसका तादात्म्य स्थापित कर दिया गया । हिन्दू धर्म में स्कन्द - कार्तिकेय को शिव - पार्वती का पुत्र माना गया है । स्कन्द का एक नाम कुमार भी है और तमिल भाषा में मुरुगन शब्द का यही अर्थ होता है । मुरुगन का प्रतीक मुर्गा माना जाता था तथा उसके विषय में यह मान्यता थी कि उसे पर्वत पर क्रीड़ा करना अत्यधिक प्रिय है । उसका अस्त्र बरछा था । कुरवस नामक एक पर्वतीय जनजाति की स्त्री को मुरुगन की पत्नियों में माना गया है ।
यह भी देखें
LATEST JOB श्रोत- अमर उजाला अखबार | |
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