सिन्धु सभ्यता

नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप सिन्धु सभ्यता की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Sindhu sabhyata in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है , इसलिए आज हम Sindhu sabhyata  विषय के बारे में बात करेंगे । निचे Indus Civilization की जानकारी निम्नवत है ।

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Sindhu sabhyata

⦿ रेडियोकार्बन C14 जैसी नवीन विश्लेषण - पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2400 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व मानी गयी है । इसका विस्तार त्रिभुजाकार है ।

⦿ सिन्धु सभ्यता की खोज 1921 में रायबहादुर दयाराम साहनी ने की । सिन्धु सभ्यता को आद्ध  ऐतिहासिक ( Protohistoric ) अथवा कांस्य ( Bronze ) युग में रखा जा सकता है । इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ एवं भूमध्य सागरीय थे ।

⦿ सर जान मार्शल ( भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन महानिदेशक ) ने 1924 ई . में सिन्धु घाटी सभ्यता नामक एक उन्नत नगरीय सभ्यता पाए जाने की विधिवत घोषणा की ।

⦿ सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल दाश्क नदी के किनारे स्थित सुतकागेंडोर ( बलूचिस्तान ) , पूर्वी पुरास्थल हिण्डन नदी के किनारे आलमगीरपुर  ( जिला मेरठ , उत्तर प्र . ) , उत्तरी पूरास्थल चिनाव नदी के तट पर अखनूर के निकट माँदा ( जम्मू - कश्मीर ) व दक्षिणी पुरास्थल गोदावरी नदी के तट पर दाइमाबाद ( जिला अहमदनगर , महाराष्ट्र ) ।

⦿ सिन्धु सभ्यता या सैंधव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी । सैंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही बड़े नगर की संज्ञा दी गयी है : ये हैं मोहनजोदड़ो , हड़प्पा , गणवारीवाला , धौलावीरा ,राखीगढ़ी एवं कालीबंगन

⦿ स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात् हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गये हैं ।

नोट : सिन्धु घाटी सभ्यताका सबसे बड़ा स्थल मोहनजोदड़ो हैं , जबकि भारत में इसका सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी ( घग्घर नदी ) है जो हरियाणा के जींद जिला में स्थित है । इसकी खोज 1969 ई . में सूरजभान ने की थी ।

⦿ लोथल एवं सुतकोतदा  सिन्धु सभ्यता का बन्दरगाह था ।

⦿ जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग का साक्ष्य कालीबंगन से प्राप्त हुआ है ।

⦿ मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्नानागार संभवतः सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है , जिसके मध्य स्थित स्नानकुंड 11 . 88 मीटर लम्बा , 7 . 01 मीटर चौड़ा एवं 2 . 43 मीटर गहरा है ।

⦿ अग्निकुण्ड लोथल एवं कालीबंगन से प्राप्त हुए हैं ।

⦿ मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक शील पर तीन मुख वाले देवता ( पशुपति नाथ ) की मूर्ति मिली है । उनके चारों ओर हाथी , गैंडा , चीता एवं भैंसा विराजमान हैं ।

⦿ मोहनजोदड़ो से नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति मिली है ।

⦿ हड़प्पा की मोहरों पर सबसे अधिक एक श्रृंगी  पशु का अंकन मिलता है । यहाँ से प्राप्त एक आयताकार मुहर में स्त्री के गर्भ से निकलता पौधा दिखाया गया है ।

⦿ मनके बनाने के कारखाने लोथल एवं चन्हूदड़ो में मिले हैं ।

⦿ सिन्धु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है । यह लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी । जब अभिलेख एक से अधिक पंक्तियों का होता था तो पहली पंक्ति दायीं से बायीं और दूसरी बायीं से दायीं ओर लिखी जाती थी ।

नोट - लेखनकला की उचित प्रणाली विकसित करने वाली पहली सभ्यता सुमेरिया की सभ्यता थी ।

सैधव सभ्यता के प्रमुख स्थल : नदी एवं वर्तमान स्थिति

प्रमुख स्थल नदी स्थिति
हड़प्पा रावी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का साहीवाल जिला
मोहनजोदड़ो सिन्धु पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला
चन्हूदड़ो सिन्धु सिंध प्रांत ( पाकिस्तान ) नबाब शाह जिला
कालीबंगन घग्घर राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला
कोटदीजी सिन्धु सिध प्रांत का खैरपुर स्थान
रंगपुर मादर गुजरात का काठियावाड़ जिला
रोपड़ सतलज पंजाब का रोपड़ जिला
लोथल भोगवा गुजरात का अहमदाबाद जिला
आलमगीरपुर हिंडन उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला
सुतकांगेडोर दाश्क पाकिस्तान के मकरान में समुद्र तट के किनारे
बनमाली रंगोई हरियाणा का हिसार जिला
धौलावीरा लूनी गुजरात के कच्छ जिला
सोत्काह शादिकौरा द . ब्लूचिस्तान

सैधव सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं उत्त्खननकर्ता

प्रमुख स्थल उत्त्खननकर्ता
हड़प्पा दयाराम साहनी ( 1921 ) , माधोस्वरूप वत्स ( 1926 ) , व्हीलर ( 1946 )
मोहनजोदड़ो राखालदास बनर्जी ( 1922 ) , मैके ( 1927 ) , व्हीलर ( 1930 )
चन्हूदड़ो मैके ( 1925 ) , एन . जी . मजुमदार ( 1931 )
कालीबंगन अमलानंद घोष ( 1951 ) , बी . वी . लाल एवं बी . के . थापर (1961 )
कोटदीजी फजल अहमद ( 1953 )
रंगपुर रंगनाथ राव ( 1953 - 54 )
रोपड़ यज्ञदत शर्मा ( 1953 - 56 )
लोथल रंगनाथ राव ( 1954 )
आलमगीरपुर यज्ञदत्त शर्मा ( 1958 )
सुतकांगेडोर आरेल स्टाइन ( 1927 )
बनमाली वीन्द्र सिंह विष्ट ( 1974 )
धौलावीरा जे . पी . जोशी ( 1967 - 1968 ) , रवीन्द्र सिंह विष्ट ( 1990 - 91 )
सोत्काह जार्ज डेल्स ( 1962 )

⦿ सिन्ध सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई ।

⦿ घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर न खुलकर पिछवाडे की ओर खुलते थे । केवल लोथल नगर के घरों के दरवाजे मख्य सड़क की ओर खुलते थे ।

⦿ सिन्धु सभ्यता में मुख्य फसल थी - गेहूँ और जौ ।

⦿ सैंधव वासी मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे ।

⦿ मिट्टी से बने हल का साक्ष्य बनमाली से मिला है ।

⦿ रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं , जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है । चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए हैं ।

⦿ सुरकोतदा , कालीबंगन एवं लोथल से सैंधवकालीन घोड़े के अस्थिपंजर मिले हैं ।

⦿ तौल की इकाई संभवतः 16 के अनुपात में थी ।

⦿ सैंधव सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों एवं चार पहियों वाल बैलगाड़ी या भैंसागाड़ी का उपयोग करते थे ।

⦿ मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा शब्द का अभिप्राय सिन्धु सभ्यता से ही है ।

⦿ संभवतः हड़प्पा संस्कृति का शासन वणिक वर्ग के हाथों में था ।

⦿ पिग्गट ने हडप्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानी कहा है ।

⦿ सिन्धु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा किया करते थे ।

⦿ वृक्ष - पूजा एवं शिव - पूजा के प्रचलन के साक्ष्य भी सिन्धु सभ्यता से मिलते हैं ।

⦿ स्वास्तिक चिह्न संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है । इस चिह्न से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है । सिन्धु घाटी के नगरो  में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं ।

⦿ सिन्धु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी ।

⦿ पशुओं में कुबड़ वाला साँड़ , इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था ।

⦿ स्त्री मृण्मूर्तियाँ ( मिट्टी की मूर्तियाँ ) अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सैंधव समाज मातृसत्तात्मक था ।

⦿ सैंधववासी सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे ।

⦿ मनोरंजन के लिए सैंधववासी मछली पकड़ना , शिकार करना ,  पशु - पक्षियों को आपस में लड़ाना , चौपड़ और पासा खेलना आदि साधनों का प्रयोग करते थे ।

⦿ सिन्धु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किये हुए लाल मिट्टी  के बर्तन बनाते थे ।

⦿ सिन्धु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे ।

⦿ कालीबंगन एक मात्र हड़प्पाकालीन स्थल था , जिसका निचला शहर ( सामान्य लोगों के रहने हेतु ) भी किले से घिरा हुआ था । कालीबंगन का अर्थ है काली चूड़ियाँ । यहाँ से पूर्व हड़प्पा स्तरों के खेत जोते जाने के और अग्निपूजा की प्रथा के प्रमाण मिले हैं ।

⦿ पर्दा - प्रथा एवं वेश्यावृति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थी ।

⦿ शवों को जलाने एवं गाड़ने यानी दोनों प्रथाएँ प्रचलित थीं । हड़प्पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी । लोथल एवं कालीबंगा में युग्म समाधियाँ मिली हैं ।

⦿ सैंधव सभ्यता के विनाश का संभवतः सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था ।

⦿ आग में पकी हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है ।

सिंधु काल में विदेशी व्यापार

आयातित वस्तुएँ प्रदेश
तांबा खेतड़ी , बलूचिस्तान , ओमान
चाँदी अफगानिस्तान , ईरान
सोना कर्नाटक , अफगानिस्तान , ईरान
टिन अफगानिस्तान , ईरान
गोमेद सौराष्ट्र
लाजवर्त मेसोपोटामिया
सीसा ईरान

यह भी देखें
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