प्राचीन भारत

नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप भारतीय इतिहास के स्रोत की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Bhartiya itihas ke srot in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है , इसलिए आज हम Bhartiya itihas ke jankari के बारे में बात करेंगे । निचे Sources of indian history की जानकारी निम्नवत है ।

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Bhartiya itihas ke srot

उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से ज्ञात है , जिसे महाकाव्य तथा पुराणों में ' भारतवर्ष ' अर्थात ' भरतों का देश ' तथा यहाँ के निवासियों को भारती अर्थात भरत की संतान कहा गया है । भरत एक प्राचीन कबीले का नाम था । प्राचीन  भारतीय अपने देश को जम्बूद्वीप , अर्थात् जम्बू ( जामुन  ) वृक्षों का द्वीप कहते थे । प्राचीन ईरानी इसे सिन्धु नदी के नाम से जोड़ते थे , जिसे वे सिन्धु न कहकर हिन्दू कहते थे । यही नाम फिर पूरे पश्चिम में फैल गया और पूरे देश को इसी एक नदी के नाम से जाना जाने लगा । यूनानी इसे “ इंदे ' और अरब इसे हिन्द कहते थे । मध्यकाल में इस देश को हिन्दुस्तान कहा जाने लगा । यह शब्द भी फारसी शब्द " हिन्दू " से बना है । यूनानी भाषा के " इंदे " के आधार पर अंग्रेज इसे “ इंडिया " कहने लगे । पारा बदले विंध्य की पर्वत - शृंखला देश को उत्तर और दक्षिण , दो भागों में बाँटती है । उत्तर में इंडो यूरोपीय परिवार की भाषाएँ बोलने वालों की और दक्षिण में द्रविड़ परिवार की भाषाएँ बोलने वालों का बहुमत है ।

नोट : भारत की जनसंख्या का निर्माण जिन प्रमुख नस्लों के लोगों के मिश्रण से हुआ है , वे इस प्रकार है - प्रोटो - आस्ट्रेलायड , पैलियो-मेडिटेरेनियन , काकेशायड , निग्रोयड और मंगोलायड ।

भारतीय इतिहास को अध्ययन की सुविधा के लिए तीन भागों में बाटा गया है प्राचीन भारत , मध्यकालीन भारत एवं आधुनिक भारत

नोट : सबसे पहले इतिहास को तीन भागों में बाँटने का श्रेय जर्मन इतिहासकार क्रिस्टोफ सेलियरस ( Christoph Cellarius ( 1638 - 1707 AD ) को है ।

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत


प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यतः चार श्रोतो  से प्राप्त होती है - 1 . धर्मग्रंथ 2 . ऐतिहासिक ग्रंथ 3 . विदेशियों का विवरण 4 . पुरातत्व - संबंधी साक्ष्य 

धर्मग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारी

भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ वेद है , जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है । वेद बसुद्धैव कुटुम्बकम् का उपदेश देता है । भारतीय परम्परा वेदों को नित्य तथा अपौरूषय मानती है । वेद चार हैं — ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद एवं अथर्ववेद । इन चार वेदों को संहिता कहा जाता है ।

ऋग्वेद

⦿ ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है । इसमें 10 मंडल , 1028 सूक्त ( वालखिल्य पाठ के 11 सूक्तों सहित ) एवं 10,462 ऋचाएँ हैं । इस वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले ऋषि को होतृ  कहते हैं । इस वेद से आर्य के राजनीतिक प्रणाली , इतिहास एवं ईश्वर की महिमा के बारे में जानकारी मिलती है ।

⦿ विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है । इसके 9वें मंडल में देवता सोम का उल्लेख है ।

⦿ इसके 8वें मंडल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है ।

⦿ चातुष्वर्ण्य समाज की कल्पना का आदि स्रोत ऋग्वेद के 10वें मंडल में वर्णित पुरुषसूक्त है . जिसके अनुसार चार वर्ण ( ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य तथा शुद्र ) आदि पुरुष ब्रह्मा के क्रमशः मुख , भुजाओं , जंघाओं और चरणों से उत्पन्न हुए ।

⦿ ऋग्वेद के कई परिच्छेदों में प्रयुक्त अधन्य शब्द का संबंध गाय से है ।

नोट : धर्मसूत्र चार प्रमख जातियों की स्थितियों , व्यवसायों , दायित्वों , कर्तव्यों तथा विशेषाधिकारों में स्पष्ट विभेद करता है ।

ईसा पूर्व एवं ईसवी
वर्तमान में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर ( ईसाई कैलेंडर / जूलियन कैलेंडर ) ईसाई धर्मगुरु ईसा मसीह के जन्म वर्ष ( कल्पित ) पर आधारित है । ईसा मसीह के जन्म के पहले के समय को ईसा पूर्व ( B . C . - Before the birth of Jesus Chirst ) कहा जाता है । ईसा पूर्व में वर्षों की गिनती उल्टी दिशा में होती है , जैसे महात्मा बद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में एवं मृत्यु 483 ईसा पूर्व में हुआ । यानी ईसा मसीह के जन्म के 563 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध का जन्म एवं 483 वर्ष पूर्व मृत्यु हुई । ईसा मसीह की जन्म तिथि से आरंभ हुआ सन् , ईसवी सन् कहलाता है , इसके लिए संक्षेप में ई . लिखा जाता है । ई . को लैटिन भाषा के शब्द A . D . में भी लिखा जाता है । A . D . यानी Anno Domini जिसका शाब्दिक अर्थ है - In the year of lord ( Jesus Chirst ) 

⦿ वामनावतार के तीन पगों के आख्यान का प्राचीनतम स्रोत ऋग्वेद है ।

⦿ ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं की रचना की गयी है ।

नोट : प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है ।

यजुर्वेद

⦿ सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है । इसके पाठकर्ता को अध्वर्यु कहते हैं ।

⦿ यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि - विधानों का संकलन मिलता है ।

⦿ इसमें बलिदान विधि का भी वर्णन है ।

⦿ यह एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है 

सामवेद 

⦿ ' साम ' का शाब्दिक अर्थ है गान । इस वेद में मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले ऋचाओं ( मन्त्रों ) का संकलन है । इसके पाठकर्ता को उद्रातृ कहते हैं । इसका संकलन ऋग्वेद पर आधारित है ।

⦿ इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है ।

नोट : यजुर्वेद तथा सामवेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं मिलता ।

अथर्ववेद

⦿ अथर्वा ऋषि द्वारा रचित इस वेद में कुल 731 मंत्र तथा लगभग 6000 पद्य हैं । इसके कुछ मंत्र  ऋग्वैदिक मंत्रों से भी प्राचीनतर है ।  अथर्ववेद कन्याओं के जन्म की निन्दा करता है ।

⦿ ऐतिहासिक दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व इस बात में है कि इसमें सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है ।

⦿ पृथिवीसूक्त अथर्ववेद का प्रतिनिधि सूक्त माना जाता है । इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों - गृह निर्माण, कृषि की उन्नति , व्यापारिक मार्गों का गाहन ( खोज ) , रोग निवारण , समन्वय , विवाह तथा प्रणय गीतों , राजभक्ति , राजा का चुनाव , बहुत से वनस्पतियों एवं औषधियों , शाप , वशीकरण , प्रायश्चित , मातृभूमि महात्मय आदि का विवरण दिया गया है । कुछ मंत्रों में जादू - टोने का भी वर्णन है ।

⦿ अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है तथा कुरु देश की समृद्धि का अच्छा चित्रण मिलता है ।

⦿ इसमें सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है ।

नोट : सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है ।

⦿ वेदों को भली भाँति समझने के लिए छह वेदांगों की रचना हुई । ये हैं - शिक्षा , ज्योतिष , कल्प , व्याकरण , निरूक्त तथा छंद ।

⦿ भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है । इसके रचयिता लोमहर्ष अथवा इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं इनकी संख्या  18 है , जिनमें से केवल पाँच मत्स्य , वायु ,विष्णु ,ब्राह्मण एवं भागवत में ही राजाओं की वंशावली पायी जाती है ।

नोट : पुराणों में मत्स्यपुराण सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक है ।

⦿ अधिकतर पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गये हैं । स्त्रियाँ तथा शूद्र जिन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं  थी , वे भी पुराण सुन सकते थे । पुराणों का पाठ पुजारी मंदिरों में किया करते थे ।

⦿ स्त्री की सर्वाधिक गिरी हुई स्थिति मैत्रेयनी संहिता से प्राप्त होती है जिसमें जुआ और शराब की भाँति स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्य दोष बताया गया है ।

⦿ शतपथ ब्राह्मण में स्त्री को पुरुष की अर्धागिनी कहा गया है ।

⦿ जाबालोपनिषद् में चारों आश्रमों  का उल्लेख मिलता है ।

⦿ स्मृतिग्रंथों  में सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक मनुस्मृति मानी जाती है । यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है । नारद स्मृति गुप्त युग के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।

⦿ जातक में बुद्ध की पूर्वजन्म की कहानी वर्णित है । हीनयान का प्रमुख ग्रंथ ' कथावस्तु ' है , जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवन - चरित अनेक कथानकों के साथ वर्णित है ।

⦿ जैन साहित्य को आगम कहा जाता है । जैनधर्म का प्रारंभिक इतिहास ' कल्पसूत्र ' से ज्ञात होता है । जैनग्रंथ  भगवती सूत्र में महावीर के जीवन - कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके संबंधों का विवरण मिलता है 

⦿ अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य ( कौटिल्य या विष्णुगुप्त ) हैं । यह 15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित है । इससे मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है । ( अनुवादक - शाम शास्त्री )

⦿ संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के द्वारा किया गया |  कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगिणी ( आठ तरंग ) है , जिसका संबंध कश्मीर के इतिहास से है ।

⦿ अरबों की सिंध - विजय का वृत्तांत चचनामा ( लेखक - अली अहमद ) में सुरक्षित है ।

⦿ ‘ अष्टाध्यायी ' ( संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक ) के लेखक पाणिनि हैं । इससे मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है ।

⦿ कत्यायन की गार्गी - संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है , फिर भी इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है ।

⦿ पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे , इनके महाभाष्य से शुंगों के इतिहास का पता चलता है ।

विदेशी यात्रियों से मिलनेवाली प्रमुख जानकारी


A . यूनानी - रोमन लेखक

⦿ टेसियस- यह ईरान का राजवैद्य था । भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय है ।

⦿ हेरोडोटस - इसे ' इतिहास का पिता ' कहा जाता है । इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के भारत - फारस ( ईरान ) के संबंध का वर्णन किया है । परन्तु इसका विवरण भी अनुश्रुतियों एवं अफवाहों पर आधारित है ।

⦿ सिकन्दर के साथ आनेवाले लेखकों में निर्याकस , आनेसिक्रटस तथा आरिस्टोबुलस के विवरण अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं ।

⦿ मेगास्थनीज - यह सेल्युकस निकेटर का राजदूत था , जो चन्द्रगुप्तमौर्य के राजदरबार में आया था । इसने अपनी पुस्तक इण्डिका में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है ।

⦿ डाइमेकस - यह सीरियन नरेश आन्तियोकस का राजदूत था , जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था ।इसका विवरण भी मौर्य युग से संबंधित है ।

⦿ डायोनिसियस - यह मिस्र नरेश टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था , जो अशोक के राजदरबार में आया था ।

⦿ टॉलमी- इसने दूसरी शताब्दी में ' भारत का भूगोल ' नामक पुस्तक लिखी ।

⦿ प्लिनी - इसने प्रथम शताब्दी में ' नेचुरल हिस्ट्री ' नामक पुस्तक लिखी । इसमें भारतीय पशुओं , पेड़ - पौधों , खनिज - पदार्थों आदि के बारे में विवरण मिलता है ।

⦿ पेरीप्लस ऑफ द इरिथ्रयन - सी : इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है । यह लेखक करीब 80 ई . में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था । इसने उस समय के भारत के बन्दरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी है ।

B . चीनी लेखक

⦿ फाहियान- यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था । इसने अपने विवरण में  मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है । इसने मध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्ध बताया है । यह 14 वर्षों तक भारत में रहा ।

⦿ संयुगन- यह 518 ई . में भारत आया । इसने अपने तीन वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियाँ एकत्रित की ।

⦿ ह्वेनसांग- यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था । ह्वेनसांग 629 ई . में चीन से भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुँचा । भारत में 15 वर्षों तक ठहरकर 645 ई . में चीन लौट गया । वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्ध ग्रंथों को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था । इसका भ्रमण वृत्तांत सि - यू - की नाम से प्रसिद्ध है , जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है । इसने हर्षकालीन समाज , धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है । इसके अनुसार सिन्ध का राजा शूद्र था । ह्वेनसांग ने बुद्ध की प्रतिमा के साथ - साथ सूर्य और शिव की प्रतिमाओं का भी पूजन किया था ।

नोट : हेनसाँग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे । यह विश्वविद्यालय बौद्ध दर्शन के लिए प्रसिद्ध था ।

⦿ इत्सिंग- यह 7वीं शताब्दी के अन्त में भारत आया । इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय ,विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है ।

C . अरबी लेखक 

⦿ अलबरूनी- यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था । अरबी में लिखी गई उसकी कृति ' किताब - उल -हिन्द या तहकीक - ए - हिन्द ( भारत की खोज ) ' , आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है । यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन , त्योहारों , खगोल विज्ञान , कीमिया , रीति - रिवाजों तथा प्रथाओं , सामाजिक जीवन , भार - तौल तथा मापन विधियों , मूर्तिकला , कानून , मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है । इसमें राजपूत कालीन समाज , धर्म , रीति - रिवाज , राजनीति आदि पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है ।

⦿ इब्न बतूता : इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा - वृतांत जिसे रेहला कहा जाता है , 14वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा सबसे रोचक जानकारियाँ देता है । 1333 ई . में दिल्ली पहुँचने पर इसकी विद्वता से प्रभावित होकर सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी या न्यायाधीश नियुक्त किया ।

D . अन्य लेखक

⦿ तारानाथ- यह एक तिब्बती लेखक था । इसने ' कंग्युर  ' तथा ' तंग्युर ' नामक ग्रंथ की रचना की । इनसे भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है ।

⦿ मार्कोपोलो - यह 13वीं शताब्दी के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था । इसका विवरण पाण्ड्य इतिहास  के अध्ययन के लिए उपयोगी है ।

पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलनेवाली जानकारी

⦿ भारतीय पुरातत्वशास्त्र का पितामह ( Father of Indian Archeology ) सर एलेक्जेण्डर कनिंघम को कहा जाता है ।

⦿ 1400 ई . पू . के अभिलेख ' बोगाज - कोई ' ( एशिया माइनर ) से वैदिक देवता मित्र , वरुण , इन्द्र और नासत्य ( अश्विनी कुमार ) के नाम मिलते हैं ।

⦿ मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत ' होलियोडोरस ' के वेसनगर ( विदिशा ) गरुड़ स्तम्भ लेख से प्राप्त होता है ।

⦿ सर्वप्रथम भारतवर्ष का जिक्र हाथीगुम्फा अभिलेख में है ।

⦿ सर्वप्रथम दुर्भिक्ष का जानकारी देनेवाला अभिलेख सौहगौरा अभिलेख है । इस अभिलेख में संकट काल में उपयोग हेतु खाद्यान्न सुरक्षित रखने का भी उल्लेख है ।

⦿ सर्वप्रथम भारत पर  होने वाले हूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है ।

⦿ सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख ( शासक भानुगुप्त ) से प्राप्त होती है ।

⦿ सातवाहन राजाओं का पूरा इतिहास उनके अभिलेखों के आधार पर लिखा गया है ।

⦿ रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है ।

⦿ कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तावास ( गड्डा घर ) का साक्ष्य मिला है । इनमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं ।

⦿ प्राचीनतम सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता है , इसी को साहित्य में काषार्पण कहा गया है ।

⦿ सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया ।

⦿ समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है ।

⦿ अरिकमेडू ( पुदुचेरी के निकट ) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं ।

नोट- सबसे पहले भारत के संबंध बर्मा ( सुवर्णभूमि - वर्तमान में म्यांमार ) , मलाया ( स्वर्णद्वीप ) , कंबोडिया ( कंबोज ) और जावा ( यवद्वीप ) से स्थापित हुए ।

अभिलेख शासक
हाथीगम्फा अभिलेख ( तिथि रहित अभिलेख ) कलिंग राज खारवेल
जूनागढ़ ( गिरनार ) अभिलेख रुद्रदामन
नासिक अभिलेख गौतमी बलश्री
प्रयाग स्तम्भ लेख समुद्रगुप्त
ऐहोल अभिलेख पुलकेशिन - II
मन्दसौर अभिलेख मालवा नरेश यशोवर्मन
ग्वालियर अभिलेख प्रतिहार नरेश भोज
भितरी एवं जूनागढ़ अभिलेख स्कन्दगुप्त
देवपाड़ा अभिलेख बंगाल शासक विजयसेन

⦿ अभिलेखों का अध्ययन इपीग्राफी कहलाता है ।

⦿ उत्तर भारत के मंदिरों की कला की शैली नागर शैली एवं दक्षिण भारत के मंदिरों की कला द्राविड़ शैली कहलाती है । दक्षिणापथ के मंदिरों के निर्माण में नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों का प्रभाव पड़ा , अतः यह वेसर शैली कहलाती है ।

⦿ पंचायतन शब्द मंदिर रचना शैली से संबंधित है । एक हिन्दू मंदिर तब पंचायतन शैली का कहलाता है जब मुख्य मंदिर चार सहायक मंदिरों से घिरा होता है । पंचायतन मंदिर के उदाहरण हैं — कंदरिया महादेव मंदिर ( खजुराहों ) , ब्रह्मेश्वर मंदिर ( भुवनेश्वर ) , लक्ष्मण मंदिर ( खजुराहो ) , लिंगराज मंदिर ( भुवनेश्वर ) , दशावतार मंदिर ( देवगढ़ , उ . प्र . ) , गोंडेश्वर मंदिर ( महाराष्ट्र ) ।

यह भी देखें
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पुस्तके ( BOOKS )
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