टकसाल

नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप टकसाल की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Taksal in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है , इसलिए आज हम bhartiya Taksal के बारे में बात करेंगे । निचे Mints की जानकारी निम्नवत है ।

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Taksal

⦿ सिक्कों का उत्पादन करने तथा सोने और चाँदी की परख करने एवं तमगों का उत्पादन करने के लिए भारत सरकार की चार टकसालें मुम्बई , कोलकाता , हैदराबाद तथा नोएडा में स्थित हैं । मुम्बई , हैदराबाद और कोलकाता की टकसालें काफी समय पहले क्रमशः 1830 , 1903 और 1950 में स्थापित की गई थीं , जबकि नोएडा की टकसाल 1989 में स्थापित की गई थी । मुम्बई तथा कोलकाता की टकसालों में सिक्कों के अलावा विभिन्न प्रकार के पदकों ( मेडल ) का भी उत्पादन किया जाता है ।

नोट : भारत में सिक्के जारी करने के लिए वित्त मंत्रालय अधिकृत है ।

⦿ कॉलमनी मार्केट : यह अत्यन्त ही अल्प अवधि वाले फण्ड का बाजार होता है जिसमें बिना किसी प्रत्याभूति के फण्ड का उधार लेना तथा देना होता है । कॉलमनी की मांग मुख्यतया व्यापारिक बैंक द्वारा होती है जो दूसरे बैंकों से अत्यन्त ही अल्प समय ( 1 से 14 दिन ) के लिए उधार लेते हैं जिससे सी . आर . आर . सम्बन्धी अपने पास रखी जाने वाली नकद शेष सम्बन्धी अनिवार्यता के दायित्व को पूरा कर सके । जब उधारी एक दिन की होती है तो उसे कॉलमनी कहते हैं पर जब उधारी एक दिन से अधिक होती है तो उसे कॉलनोटिस कहते हैं ।

⦿ कॉलमनी मार्केट में प्रचलित होने वाली ब्याज दर फण्ड की पूर्ति तथा फण्ड की माँग पर निर्भर करती है और सामान्यतया कॉलरेट ( ब्याज दर जिस पर सौदा होता है ) में बहुत ही उग्रता होती है ।

⦿ सामान्यतया कॉलरेट को रातभर की दर ( Overnight rate ) के रूप में जाना जाता है जिसपर एक बैंक दूसरे बैंक को उधार देता है । इसे यू . एस . ए . में फेडरल रेट कहते हैं । बैंक दर को फेडरल डिस्काउन्ट रेट भी कहते हैं ।

⦿ 1 जुलाई , 2011 को आर . वी . आई द्वारा निर्गत निर्देश के अनुसार उधार लेने तथा उधार देने वाले दोनों रूपों में भाग ले सकते हैं 1 . व्यापारिक बैंक ( क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को छोड़कर ) 2 . सहकारी बैंक ( भूमि विकास बैंक को छोड़कर ) 3 . प्राथमिक डीलर ।

⦿ बैंकों से दिये जाने वाले ऋणों की बहुत अधिक मांग होती है या बैंक को अपनी C.R.R. तथा S.L.R. संबंधी आवश्यकता की पूर्ति तत्काल करनी होती है तो वित्तीय संस्थाएँ अपनी तत्कालिक तरलता की माँग को पूरा करने के लिए कॉलमनी मार्केट में उधारी के लिए जाती है । दूसरी ओर LIC , GIC , UTI बैंक , DFHI एवं बड़े - बड़े म्यूचुअल फण्ड , अपने फण्ड कॉलमनी मार्केट में डालते हैं ।

⦿ DFHI ( Discount and Finance House of India स्थापना अप्रैल , 1988 ) तथा STCI ( Securities TradingCorporation of India Limited ) की स्थापना विशेष रूप से कॉल मार्केट की उग्रता ( Volatility ) को नियंत्रित करने के लिए की गई है ।

⦿ भारत में इस समय दो कॉल दर हैं — अन्त बैंक कॉल दर ( Inter Bank Call Rate ) तथा DFHI की उधारी दर ।

⦿ कॉल दर बैंक दर से ऊपर या नीचे हो सकती है । DFHI द्वारा निर्धारित दर सामान्यतया बैंक दर से ऊपर होती है ।

⦿ मुम्बई , कोलकाता , दिल्ली , अहमदाबाद तथा चेन्नई प्रमुख कॉल सेन्टर हैं । सामान्यतया कॉल दर मुम्बई में न्यूनतम तथा कोलकाता में उच्चतम होती है ।

⦿ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया परोक्ष रूप से हस्तक्षेप करके कॉल बाजार की उग्रता में कमी लाता है एवं इसे स्थायित्व प्रदान करता है । इसके लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया दो उपाय करता है वह DFHI तथा कॉलमनी बाजार की संस्थाओं को अधिक फण्ड उपलब्ध करता है तथा रीपो नीलामी कराता है ।

⦿ ट्रेजरी बिल्स ( Treasury Bills ) : यह अल्प अवधि की प्रतिभूतियाँ होती हैं जिसके माध्यम से सरकार उधार लेती है । इसका निर्गमन सरकार के लिए रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है । वर्तमान में RBI , 91 एवं 364 दिन की ट्रेजरी बिल्स निर्गमित करता है , इनकी न्यूनतम राशि 25,000 रुपया तथा इसी गुणक में होती है ।

नोट : भारत में ट्रेजरी बिल्स पहली बार 1917 में निर्गत की गयी ।

⦿ ऐडहॉक ट्रेजरी बिल्स ( Adhoc Treasury Bills ) : यह सरकार की अत्यन्त ही अस्थायी फण्ड संबंधी आवश्यकता की पूर्ति के लिए निर्गमित की जाती है । यह रिजर्व बैंक के नाम से निर्गमित होती है । भारत में इसकी शुरुआत 1955 में की गयी थी लेकिन 1997 - 98 की बजट से इसे बंद कर दिया गया ।

नोट : तरलता की दृष्टि से प्रतिभूतियों एवं ऋणों का अनुक्रम क्रमशः नकद , ऐडहॉक ट्रेजरी बिल्स , ट्रेजरी बिल्स एवं कॉलमनी ।

⦿ मुद्रा बाजार का उपबाजार एक विशेष प्रकार का प्रतिभूति बाजार है । ये प्रतिभूतियाँ हैं — कॉल मुद्रा , अल्पावधि के बिल , 182 दिन के ट्रेजरी बिल , जमा प्रमाण पत्र और व्यापारिक पत्र आदि ।

⦿ DFHI अर्थात् डिस्काउन्ट एंड फाइनेन्स हाउस ऑफ इंडिया लि . , मुद्रा बाजार की एक विशिष्ट संस्था है , जिसकी स्थापना 1988 ई . में की गई तथा इसका कार्य बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं की कटौती और फिर कटौती की आवश्यकताओं को पूरा करना है ।

⦿ MMMFs अर्थात् मनी मार्केट म्यूचुअल फण्ड्स एक अन्य विशिष्ट संस्था है , जिसकी स्थापना का उद्देश्य व्यक्तियों को मुद्रा बाजार के उपकरण उपलब्ध कराना था । इसकी स्थापना 1992 ई . में की गई ।

⦿ पूँजी बाजार , मुद्रा बाजार से इस बात से भिन्न है कि मुद्रा बाजार अल्पावधि की वित्तीय व्यवस्था का बाजार है , जबकि पूँजी बाजार में मध्यम तथा दीर्घकाल के कोषों का आदान - प्रदान किया जाता है ।

⦿ भारतीय पूँजी बाजार को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जाता है — गिल्ड एज्ड बाजार और औद्योगिक प्रतिभूति बाजार ।

⦿ गिल्ड एज्ड बाजार में रिजर्व बैंक के माध्यम से सरकारी और अर्द्धसरकारी प्रतिभूतियों का क्रय - विक्रय किया जाता है ।

⦿ गिल्ड एज्ड बाजार में सरकारी और अर्द्धसरकारी प्रतिभूतियों का मूल्य स्थिर रहता है और इस क्षेत्र की अन्य प्रतिभूतियों के समान इनमें अस्थिरता नहीं होती है ।

⦿ औद्योगिक प्रतिभूति बाजार में नये स्थापित होने वाले या पहले से स्थापित औद्योगिक उपक्रमों के शेयरों और डिबेन्चरों का क्रय - विक्रय किया जाता है ।

⦿ यदि पूँजी बाजार में निजी निगम क्षेत्र के नये अंशों और डिबेन्चरों , सरकारी कम्पनियों की प्राथमिक प्रतिभूतियों या नयी प्रतिभूतियों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बॉण्डों के निर्गमों का क्रय - विक्रय किया जाता है , तो ऐसे बाजार प्राथमिक पूँजी बाजार कहे जाते हैं ।

⦿ द्वितीयक पूँजी बाजार के अन्तर्गत स्टॉक एक्सचेंज में होने वाले क्रय - विक्रय तथा गिल्ड एज्ड बाजार में होने वाले क्रय - विक्रय आते हैं ।

⦿ भारतीय पूँजी बाजार में पूँजी के स्रोत हैं : अंश - पूँजी , ग्रहण - पत्र । इसके अतिरिक्त स्रोत के रूप में वे संस्थाएँ भी हैं जो वित्तीय मध्यस्थ की भूमिका निभाती हैं । ऐसी संस्थाएँ हैं मर्चेन्ट बैंक , म्यूचुअल फण्ड , लीजिंग कम्पनियाँ , जोखिम पूँजी कम्पनियाँ आदि ।

⦿ UTI अर्थात् भारतीय यूनिट ट्रस्ट भारत की सबसे बड़ी म्यूचुअल फण्ड संस्था है ।

⦿ स्टॉक एक्सचेंज एक ऐसी व्यवस्था का बाजार है , जिसमें छोटे निवेशक निवेश कर सकते हैं तथा मौजूद प्रतिभूतियों का आसानी से क्रय - विक्रय कर सकते हैं ।

⦿ अभिदत्त पूँजी ( Subscribed Capital ) कुल निर्गमित पूँजी का वह भाग है जो शेयर धारक द्वारा खरीदा जाता है । कंपनी द्वारा लाभांश की घोषणा अभिदत्त पूँजी पर ही की जाती है ।

यह भी देखें
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