भारत में निर्धनता
भारत में निर्धनता-Poverty in India की माप करने के लिए निरपेक्ष प्रतिमान का प्रयोग किया जाता है । हमारे देश में योजना आयोग द्वारा गरीबी निर्धारण के सम्बन्ध में एक वैकल्पिक परिभाषा स्वीकार की जिसमें आहार संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखा गया है । इस अवधारणा के अनुसार उस व्यक्ति को निर्धनता की रेखा से नीचे माना जाता है जो ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन 2,400 कैलोरी एवं शहरी क्षेत्रों में 2,100 कैलोरी भोजन प्राप्त करने में असमर्थ है । भारत में परिवार के उपभोग व्यय के आधार पर भी निर्धनता के स्तर का आकलन किया जाता है । भारत में गरीबी की माप के साथ अनेक अर्थशास्त्रियों के नाम जुड़े हैं , जिनमें प्रमुख है — दांडेकर तथा रथ , बी.एस.मिनहास , पी.डी.ओझा , प्रण्व बर्धन , आइ. जे. अहलूवालिया , एस. पी. गुप्त , तेन्दुलकर , सी. रंगराजन आदि । इसके अतिरिक्त योजना आयोग एवं वित्त आयोग के माप मिलते हैं ।
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bharat me nirdhanta |
नोट : भारत में निर्धनता रेखा के निर्धारण का पहला अधिकारिक प्रयास योजना आयोग द्वारा जुलाई , 1962 ई . में किया गया । वर्तमान में भारत में निर्धनता रेखा या गरीबी रेखा का निर्धारण नीति आयोग करता है । |
⦿ वैश्विक स्तर पर विश्व बैंक 1.25 अमरीकी डॉलर की प्रति व्यक्ति प्रति दिन आय ( क्रयशक्ति समता के आधार पर ) को निर्धनता रेखा मानता है ।
⦿ बहुआयामी गरीबी सूचकांक भारत में गरीबी की तीव्रता की माप के लिए सबसे उपयुक्त है ।
भारत में गरीबी निर्धारण का इतिहास
⦿ दादा भाई नौरोजी : इनकी पुस्तक ‘ पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया ' में पहली बार गरीबी के मापन को ( G ) की न्यूनतम आवश्कताओं की पूर्ति से लगाया था ।
⦿ नीलकांत दांडेकर और वीएम रथ के फॉर्मूले : इनके फॉर्मूले के आधार पर स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1971 ई . में वैज्ञानिक तरीके से गरीबी रेखा का निर्धारण किया गया जिसमें नेशनल सेंपल सर्वे ( NSS ) के उपभोग खर्च के आँकड़ों का इस्तेमाल किया गया । इसके अनुसार उस व्यक्ति ( ग्रामीण एवं शहरी दोनों ) को गरीब माना गया जो प्रतिदिन औसतन 2,250 कैलोरी भोजन प्राप्त करने में असमर्थ था । ये आँकड़े वर्ष 1960 - 61 ई . पर आधारित थे ।
⦿ वाई के अलध समिति : वाई के अलध की अध्यक्षता में योजना आयोग ने 1979 में इस समिति का गठन किया । इस समिति ने दांडेकर एवं रथ के फॉर्मूले का आधार वर्ष बदलकर 1973-74 ई . पर दिया और पहली बार शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कैलोरी की अलग - अलग मात्रा निर्धारित की , जो क्रमशः 2,100 कैलोरी और 2,400 कैलोरी थी ।
⦿ लकड़वाला समिति : योजना आयोग ने देश में निर्धनता की माप के लिए 1989 ई . में प्रो. डी. टी. लकड़ावाला की अध्यक्षता में एक समिति गठित की । 1993 ई . में इस समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की । इसके अनुसार प्रत्येक राज्य में मूल्य स्तर के आधार पर अलग - अलग निर्धनता रेखा का निर्धारण किया गया यानी प्रत्येक राज्य की निर्धनता रेखा भिन्न - भिन्न होगी । इस प्रकार इसके अनुसार 35 गरीबी रेखाएँ हैं जो शुरू में 28 थी । इस समिति ने प्रत्येक राज्य में ग्रामीण और शहरी निर्धनता के लिए अलग - अलग मूल्य सूचकांकों की बात की जो है —
( A ) ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता रेखा : इस समिति ने कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्तता मूल्य सूचकांक ( CPI for Agricultural Labour ) का सुझाव दिया ।
( B ) शहरी क्षेत्र में निर्धनता रेखा : इसके लिए समिति ने औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ( CPI for Industrial Workers ) और शहरी भिन्न कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का सुझाव दिया ।
इस समिति की सिफारिशों के परिणामस्वरूप कोई विशिष्ट या निर्धारित निर्धनता रेखा नहीं रही बल्कि इसके स्थान पर राज्य विशिष्ट निर्धनता रेखा हुई जिनसे एक राष्ट्रीय निर्धनता रेखा का निर्धारण किया जा सका ।
नोट : 8वीं योजना में कैलोरी प्राप्ति 2,400 ग्रामीण व 2,100 शहरी - आधार को ही स्वीकार किया गया तथा 1973 - 74 ई . मूल्य पर ग्रामीण क्षेत्र के लिए 49.09 रुपया तथा शहरी क्षेत्र के लिए 56.64 रुपया प्रति व्यक्ति प्रतिमाह उपभोग व्यय लिया गया । इसी कार्य विधि का प्रयोग नवीं तथा दसवीं योजना में भी किया गया । |
⦿ सुरेश तेंदुलकर समिति : योजना आयोग ने वर्ष 2004 ई . में सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में समिति बनाई जिसने अपनी रिपोर्ट 2009 ई . में सौंपी । तेन्दुलकर समिति का मुख्य उद्देश्य इसका परीक्षण करना था कि क्या भारत में गरीबी वास्तव में गिर रही है या नहीं जैसा NSSO के 61वें चक्र से स्थापित होता है इसके साथ ही नई गरीबी रेखा तथा गरीबी के संबंध में अनुमान प्रस्तुत करना था । तेन्दुलकर समिति ने उपभोग बास्केट में परिवर्तन किए और जीने के लिए अदा की जाने वाली कीमत ( Cost of Living Index - CoLI ) की बात की । इसने गरीबी रेखा का निर्धारण उपभोग में लाए जा रहे खाद्यानों के अलावा छः बुनियादी आवश्यकाताओ - शिक्षा , स्वास्थ्य , बुनियादी संरचना , स्वच्छ वातावरण तथा महिलाओं की काम तथा लाभ तक पहुँच के आधार पर होगा । तेंदुलकर समिति ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए एक ही उपभोग बास्केट का उपभोग किया । तेंदुलकर पद्धति के अनुसार , गरीबी रेखा ‘ मिश्रित संदर्भ अवधि ' पर आधारित ' मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय ' के रूप में व्यक्त की गई है । समिति ने ग्रामीण क्षेत्र के लिए 2004-05 मूल्य पर 2000 रुपया ( 2011-12 ई . के मूल्य पर 816 रुपए ) प्रति व्यक्ति .प्रति माह तथा शहरी क्षेत्र के लिए इसे 578.80 रुपया ( 2011-12 के मूल्य पर 1000 रुपए ) मासिक रुपया प्रति व्यक्ति उपभोग रखा । इस आधार पर समिति के अनुमान के अनुसार 2004-05 में ग्रामीण जनसंख्या का 41.8 % ( 2011-12 में 25.7 % ) तथा शहरी जनसंख्या का 25.7 % ( 2011-12 में 13.7 % ) गरीबी रेखा से नीचे थे । 2004-05 में सम्पूर्ण भारत के स्तर पर गरीबी का प्रतिशत 37.2 % ( 2011-12 में 21.9 % ) था ।
नोट : तेन्दुलकर समिति ने गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए जीवन निर्वाह लागत सूचकांक यानी प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय को आधार बनाया । |
⦿ सी . रंगराजन समिति : संयुक्त राष्ट्रसंघ के अंग खाद्य एवं कृषि संगठन ( FAO ) गरीबी का आकलन उपभोग के पोषण मूल्य अर्थात कैलोरी मूल्य के ही आधार पर करता है , इसीलिए योजना आयोग ने तेन्दुलकर समिति की जगह सी . रंगराजन की अध्यक्षता में 2012 में नई समिति गठित की जिसने अपनी रिपोर्ट जुलाई , 2014 में प्रस्तुत की । इसने तेन्दुलकर समिति के आकलन के तरीकों को खारिज कर दिया । रंगराजन समिति के अनुसार वर्ष 2011-12 में 29.5 % लोग गरीब थे , ( जबकि तेन्दुलकर समिति ने ये अनुमान 21.9 % दिया था ) ग्रामीण जनसंख्या का 30.09 % तथा शहरी जनसंख्या का 26.4 % लोग गरीबी रेखा से नीचे थे । रंगराजन समिति ने अखिल भारतीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्र के लिए 972 रुपए तथा शहरी क्षेत्र के लिए 1407 रुपया प्रतिव्यक्ति मासिक उपभोग व्यय को गरीबी रेखा के रूप में परिभाषित किया ।
निर्धनता के नवीनतम आँकड़े
देश में निर्धनता रेखा से नीचे की जनसंख्या के सम्बन्ध में ताजा आँकड़े योजना आयोग द्वारा जुलाई 2013 में जारी किये गये। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन ( NSSO ) के 68वें दौर के सर्वेक्षण पर आधारित यह आँकड़े 2011-12 के लिए हैं तथा सुरेश तेन्दुलकर समिति द्वारा सुझाए गए फॉर्मूला पर आधारित है । इन आँकड़ों के अनुसार -
⦿ 2011-12 में देश में 21.9 % जनसंख्या निर्धनता रेखा के नीचे है जबकि 2004 -05 में यह 37.2% थी ।
⦿ 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्रों में 25.7 % व शहरी क्षेत्रों में 13.7 % जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे है । वर्ष 2004-05 में यह आंकड़ा क्रमशः 41.8 % एवं 25.7 % था ।
⦿ 2011-12 में देश में निर्धनों की कुल संख्या 26.93 करोड़ आकलित की गयी । 2004-05 में यह 40.72 करोड़ और 2009-10 में यह 35.47 करोड़ थी यानी दो वर्षों में 7.9 % की कमी हुई ।
⦿ 2011-12 में अखिल भारतीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में व्यय 816 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह स्वीकार किया गया है वहीं शहरी क्षेत्रों के लिए 1000 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह माना गया है । इसका अर्थ यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन 27.20 रुपए व शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन 33.33 रुपए से कम खर्च करने वाले व्यक्तियों को अखिल भारतीय स्तर पर निर्धनता रेखा से नीचे माना गया है ।
⦿ राज्यों में सर्वाधिक निर्धनता अनुपात छत्तीसगढ़ में पाया गया है जहाँ 39.93 % जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे है । इसके पश्चात् झारखंड में 36.96 % , मणिपुर में 36.89 % , अरुणाचल प्रदेश में 34.67 % एवं बिहार में 33.47 % जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे है ।
⦿ केन्द्रशासित प्रदेशों में निर्धनता रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले हैं ( घटते क्रम में ) - दादरा नगर हवेली ( 39.31 % सर्वाधिक ) , चण्डीगढ़ ( 21.81 % ) ।
⦿ सबसे कम निर्धनता अनुपात गोवा में 5.09 % पाया गया है । इसके बाद केरल ( 7.05 % ) , हिमाचल प्रदेश ( 8.06 % ) , सिक्किम ( 8.19 % ) व पंजाब ( 8.26 % ) में पाया गया ।
यह भी देखें
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पुस्तके ( BOOKS ) | |
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