संविधान के प्रमुख संशोधन

नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप संविधान के प्रमुख संशोधन जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Samvidhan ke pramukh sanshodhan in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है , इसलिए आज हम Samvidhan ke pramukh sanshodhan के बारे में बात करेंगे । निचे Major Amendments of the Constitution की जानकारी निम्नवत है ।

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Samvidhan ke pramukh sanshodhan

पहला संशोधन ( 1951 ई . )

⦿ इसके माध्यम से स्वतंत्रता , समानता एवं संपत्ति से संबंधित मौलिक अधिकारों को लागू किये जाने संबंधी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया गया । भाषण एवं अभिव्यक्ति के मूल अधिकारों पर इसमें उचित प्रतिबंध की व्यवस्था की गई । साथ ही , इस संशोधन द्वारा संविधान में नौवीं अनुसूची को जोड़ा गया , जिसमें उल्लिखित कानूनों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अंतर्गत परीक्षा नहीं की जा सकती है ।

दूसरा संशोधन ( 1952 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत 1951 ई . की जनगणना के आधार पर लोकसभा में प्रतिनिधित्व को पुनर्व्यवस्थित किया गया ।

तीसरा संशोधन ( 1954 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत सातवीं अनुसूची को समवर्ती सूची की तैतीसवीं प्रविष्टि के स्थान पर खाद्यान्न , पशुओं के लिए चारा , कच्चा कपास , जूट आदि को रखा गया , जिसके उत्पादन एवं आपूर्ति को लोकहित में समझने पर सरकार उस पर नियंत्रण लगा सकती है ।

चौथा संशोधन ( 1955 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत व्यक्तिगत संपत्ति को लोकहित में राज्य द्वारा हस्तगत किये जाने की स्थिति में , न्यायालय इसकी क्षतिपूर्ति के संबंध में परीक्षा नहीं कर सकती ।

पांचवाँ संशोधन ( 1955 ई . )

⦿ राष्ट्रपति को यह शक्ति प्रदान की गई कि वह राज्यों के क्षेत्र , सीमा और नामों को प्रभावित करने वाले प्रस्तावित केंद्रीय विधान पर अपने मत देने के लिए राज्यमंडलों हेतु समय - सीमा का निर्धारण करें ।

छठा संशोधन ( 1956 ई . )

⦿ इस संशोधन द्वारा सातवी अनुसूची के संघ सूची में परिवर्तन कर अंतरराज्यीय बिक्री कर के अंतर्गत कुछ वस्तुओं पर केन्द्र को कर लगाने का अधिकार दिया गया ।

सातवाँ संशोधन ( 1956 ई . )

⦿ इस संशोधन द्वारा भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया , जिसमें पहले के तीन श्रेणियों में राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करते हुए राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में उन्हें विभाजित किया गया । साथ ही , इनके अनुरूप केन्द्र एवं राज्य की विधान पालिकाओं में सीटों को पुनर्व्यवस्थित किया गया ।

आठवाँ संशोधन ( 1959 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत केन्द्र एवं राज्यों के निम्न सदनों में अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति एवं आंग्ल - भारतीय समुदायों के आरक्षण संबंधी प्रावधानों को दस वर्षों के लिए अर्थात 1970 ई . तक बढ़ा दिया गया ।

नौवा संशोधन ( 1960 ई . )

⦿ इसके द्वारा संविधान की प्रथम अनुसूची में परिवर्तन करके भारत और पाकिस्तान के बीच 1958 की संधि की शर्तों के अनुसार बेरुबारी , खुलना आदि क्षेत्र पाकिस्तान को दे दिये गये ।

दसवाँ संशोधन ( 1961 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत भूतपूर्व पुर्तगाली अंतःक्षेत्रों - दादर एवं नगर हवेली को भारत में शामिल कर उन्हें केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया ।

ग्यारहवां संशोधन ( 1961 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के प्रावधानों में परिवर्तन कर , इस संदर्भ में दोनों सदनों के सयुक्त अधिवेशन को बुलाया गया । साथ ही यह भी निर्धारित किया गया कि निर्वाचकमंडल में पद की रिक्तता के आधार पर राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को चुनौती नहीं दी जा सकती ।

बारहवाँ संशोधन ( 1962 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन कर गोवा , दमन एवं दीव को भारत में केंद्रशासित प्रदेश के रूप में शामिल कर लिया गया ।

तेरहवाँ संशोधन ( 1962 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत नगालैंड के संबंध में विशेष प्रावधान अपनाकर उसे एक राज्य का दर्जा दे दिया गया ।

चौदहवाँ संशोधन ( 1963 ई . )

⦿ इसके द्वारा केंद्रशासित प्रदेश के रूप में पुदुचेरी को भारत में शामिल किया गया । साथ ही , इसके द्वारा हिमाचल प्रदेश , मणिपुर , त्रिपुरा , गोवा , दमन और दीव तथा पुदुचेरी केंद्रशासित प्रदेशों में विधानपालिका एवं मंत्रिपरिषद् की स्थापना की गई ।

पंद्रहवाँ संशोधन ( 1963 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवामुक्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई तथा अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों की उच्च न्यायालय में नियुक्ति से संबंधित प्रावधान बनाये गये ।

सोलहवाँ संशोधन ( 1963 ई . )

⦿ इसके द्वारा देश की संप्रभुता एवं अखंडता के हित में मूल अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगाने के प्रावधान रखे गये । साथ ही तीसरी अनुसूची में भी परिवर्तन कर शपथ ग्रहण के अंतर्गत ' मैं भारत की स्वतंत्रता एवं अखण्डता को बनाए रखूगा ' जोड़ा गया ।

सत्रहवाँ संशोधन ( 1964 ई . )

⦿ इसमें संपत्ति के अधिकारों में और भी संशोधन करते हुए कुछ अन्य भूमि सुधार प्रावधानों को नौवीं अनुसूची में रखा गया , जिनकी वैधता की परीक्षा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नहीं की जा सकती थी ।

अठारहवाँ संशोधन ( 1966 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत पंजाब का भाषायी आधार पर पुनर्गठन करते हुए पंजाबी भाषी क्षेत्र को पंजाब एवं हिन्दी भाषी क्षेत्र को हरियाणा के रूप में गठित किया गया । पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल प्रदेश को दे दिये गये तथा चंडीगढ़ को केन्द्रशासित प्रदेश बनाया गया ।

उन्नीसवाँ संशोधन ( 1966 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन किया गया एवं उच्च न्यायालयों को चुनाव याचिकाएँ सुनने का अधिकार दिया गया ।

बीसवाँ संशोधन ( 1966 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत अनियमितता के आधार पर नियुक्त कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता प्रदान की गई ।

इक्कीसवाँ संशोधन ( 1967 ई . )

⦿ इसके द्वारा सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत पंद्रहवीं भाषा के रूप में शामिल किया गया ।

बाईसवाँ संशोधन ( 1969 ई . )

⦿ इसके द्वारा असम से अलग करके एक नया राज्य मेघालय बनाया गया ।

तेईसवाँ संशोधन ( 1969 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत विधान पालिकाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण एवं आंग्ल भारतीय समुदाय के लोगों का मनोनयन और दस वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया ।

चौबीसवाँ संशोधन ( 1971 ई . )

⦿ इस संशोधन के अंतर्गत संसद की इस शक्ति को स्पष्ट किया गया कि वह संविधान के किसी भी भाग को , जिसमें भाग तीन के अंतर्गत आने वाले मूल अधिकार भी हैं , संशोधित कर सकती है । साथ ही , यह भी निर्धारित किया गया कि संशोधन संबंधी विधेयक जब दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति के समक्ष जायेगा तो इस पर राष्ट्रपति द्वारा सम्मति दिया जाना बाध्यकारी होगा ।

पच्चीसावाँ संशोधन ( 1971 ई . )

⦿ संपत्ति के मूल अधिकार में कटौती । अनुच्छेद - 39 ( ख ) या ( ग ) में वर्णित निदेशक तत्वों को प्रभावी करने के लिए बनाई गई किसी भी विधि को अनुच्छेद - 14 , 19 और 31 द्वारा अभिनिश्चित अधिकारों के उल्लंखन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती ।

छब्बीसवाँ संशोधन ( 1971 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत भूतपूर्व देशी राज्यों के शासकों की विशेष उपाधियों एवं उनके प्रिवी - पर्स को समाप्त कर दिया गया ।

सत्ताईसवाँ संशोधन ( 1971 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश को केन्द्रशासित प्रदेशों के रूप में स्थापित किया गया ।

उनतीसवाँ संशोधन ( 1972 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत केरल भू - सुधार ( संशोधन ) अधिनियम , 1969 तथा केरल भू - सुधार ( संशोधन ) अधिनियम , 1971 को संविधान की नौवीं अनुसूची में रख दिया गया , जिससे इसकी संवैधानिक वैधता को न्यायालय में चुनौती न दी जा सके ।

इकतीसवाँ संशोधन ( 1973 ई . )

⦿ इसके द्वारा लोकसभा के सदस्यों की संख्या 525 से 545 कर दी गई तथा केन्द्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व 25 से घटाकर 20 कर दिया गया ।

बत्तीसवाँ संशोधन ( 1974 ई . )

⦿ इसके द्वारा संसद एवं विधान पालिकाओं के सदस्यों द्वारा दबाव में या जबरदस्ती किये जाने पर इस्तीफा देना अवैध घोषित किया गया एवं अध्यक्ष को यह अधिकार दिया गया कि वह सिर्फ स्वेच्छा से दिये गये एवं उचित त्यागपत्र को ही स्वीकार करे ।

चौंतीसवाँ संशोधन ( 1974 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत विभिन्न राज्यों द्वारा पारित बीस भू - सुधार अधिनियमों को नौवीं अनुसूची में प्रवेश देते हुए उन्हें न्यायालय द्वारा संवैधानिक वैधता के परीक्षण से मुक्त किया गया ।

पैतीसवाँ संशोधन ( 1974 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत सिक्किम का संरक्षित राज्यों का दर्जा समाप्त कर उसे सम्बद्ध राज्य के रूप में भारत में प्रवेश दिया गया ।

 छत्तीसवाँ संशोधन ( 1975 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत सिक्किम को भारत का बाईसवाँ राज्य बनाया गया ।

सैंतीसवाँ संशोधन ( 1975 ई . )

⦿ इसके तहत आपात स्थिति की घोषणा और राष्ट्रपति , राज्यपाल एवं केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासनिक प्रधानों द्वारा अध्यादेश जारी किये जाने को अविवादित बनाते हुए न्यायिक पुनर्विचार से उन्हें मुक्त रखा गया ।

उनतालीसवाँ संशोधन ( 1975 ई . )

⦿ इसके द्वारा राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति , प्रधानमंत्री एवं लोकसभाध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों को न्यायिक परीक्षण से मुक्त कर दिया गया ।

इकतालीसवाँ संशोधन ( 1976 ई . )

⦿ इसके द्वारा राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्यों की सेवा मुक्ति की आयु सीमा 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई , पर संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवा निवृत्ति की अधिकतम आयु 65 वर्ष रहने दी गई ।

बयालीसवाँ संशोधन ( 1976 ई . )

इसके द्वारा संविधान में व्यापक परिवर्तन लाये गये , जिनमें से मुख्य निम्नलिखित थे —

⦿ संविधान की प्रस्तावना में ' समाजवादी ' , ' धर्मनिरपेक्ष ' एवं ' एकता और अखण्डता ' आदि शब्द जोड़े गये ।

⦿ सभी नीति - निर्देशक सिद्धान्तों को मूल अधिकारों पर सर्वोच्चता सुनिश्चित की गई ।

⦿ इसके अंतर्गत संविधान में दस मौलिक कर्तव्यों को अनुच्छेद - 51 ( क ) , ( भाग - iv क ) के अंतर्गत जोड़ा गया ।

⦿ इसके द्वारा संविधान को न्यायिक परीक्षण से मुक्त किया गया ।

⦿ सभी विधानसभाओं एवं लोकसभा की सीटों की संख्या को इस शताब्दी के अंत तक के लिए स्थिर कर दिया गया ।

⦿ लोकसभा एवं विधानसभाओं की अवधि को पाँच से छह वर्ष कर दिया गया ।

⦿ इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया कि किसी केन्द्रीय कानून की वैधता पर सर्वोच्च न्यायालय एवं राज्य के कानून की वैधता का उच्च न्यायालय ही परीक्षण करेगा । साथ ही , यह भी निर्धारित किया गया कि किसी संवैधानिक वैधता के प्रश्न पर पाँच से अधिक न्यायाधीशों की बेंच द्वारा दो - तिहाई बहुमत से निर्णय दिया जाना चाहिए और यदि न्यायाधीशों की संख्या पाँच तक हो तो निर्णय सर्वसम्मति से होना चाहिए ।

⦿ इसके द्वारा वन - संपदा , शिक्षा , जनसंख्या नियंत्रण आदि विषयों को राज्य - सूची से समवर्ती सूची के अंतर्गत कर दिया गया ।

⦿ इसके अंतर्गत निर्धारित किया गया कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् एवं उसके प्रमुख प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार कार्य करेगा ।

⦿ इसने संसद को राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से निपटने के लिए कानून बनाने के अधिकार दिये एवं सर्वोच्चता स्थापित की ।

चौवालीसवाँ संशोधन ( 1978 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागू करने के लिए ' आंतरिक अशांति ' के स्थान पर ' सैन्य विद्रोह ' का आधार रखा गया एवं आपात स्थिति संबंधी अन्य प्रावधानों में परिवर्तन लाया गया , जिससे उनका दुरुपयोग न हो । इसके द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के भाग से हटा कर विधिक ( कानूनी ) अधिकारों की श्रेणी में रख दिया गया । लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर पुनः 5 वर्ष कर दी गई । उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद को हल करने की अधिकारिता प्रदान की गई ।

पचासवाँ संशोधन ( 1984 ई . )

⦿ इसके द्वारा अनुच्छेद - 33 में संशोधन कर सैन्य सेवाओं की पूरक सेवाओं में कार्य करने वालों के लिए आवश्यक सूचनाएँ एकत्रित करने , देश की संपत्ति की रक्षा करने और कानून तथा व्यवस्था से संबंधित दायित्व भी दिये गये । साथ ही , इन सेवाओं द्वारा उचित कर्तव्य - पालन हेतु संसद को कानून बनाने के अधिकार भी दिये गये ।

बावनवाँ संशोधन ( 1985 ई . )

⦿ इस संशोधन के द्वारा राजनीतिक दल - बदल पर अंकुश लगाने का लक्ष्य रखा गया । इसके अंतर्गत संसद या विधान मंडलों के उन सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया जायेगा , जो उस दल को छोड़ते हैं जिसके चुनाव चिह्न पर उन्होंने चुनाव लड़ा था , पर यदि किसी दल की संसदीय पार्टी के एक - तिहाई सदस्य अलग दल बनाना चाहते हैं तो उन पर अयोग्यता लागू नहीं होगी । दल - बदल विरोधी इन प्रावधानों को संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया ।

तिरपनवाँ संशोधन ( 1986 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत अनुच्छेद - 371 में खंड ' जी ' जोड़कर मिजोरम को राज्य का दर्जा दिया गया ।

चौवनवाँ संशोधन ( 1986 ई . )

⦿ इसके द्वारा संविधान की दूसरी अनुसूची के भाग ' डी ' में संशोधन कर न्यायाधीशों के वेतन में वृद्धि का अधिकार संसद को दिया गया ।

पचपनवाँ संशोधन ( 1986 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत अरुणाचल प्रदेश को राज्य बनाया गया ।

छप्पनवाँ संशोधन ( 1987 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत गोवा को एक राज्य का दर्जा दिया गया तथा दमन और दीव को केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में ही रहने दिया गया ।

सत्तावनवाँ संशोधन ( 1987 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के संबंध में मेघालय , मिजोरम , नगालैंड एवं अरुणाचल प्रदेश की विधानसभा सीटों का परिसीमन इस शताब्दी के अंत तक के लिए किया गया ।

अट्ठावनवाँ संशोधन ( 1987 ई . )

⦿ इसके द्वारा राष्ट्रपति को संविधान का प्रामाणिक हिन्दी संस्करण प्रकाशित करने के लिए अधिकृत किया गया ।

साठवाँ संशोधन ( 1988 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत व्यवसाय - कर की सीमा 250 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष कर दी गई ।

इकसठवाँ संशोधन ( 1989 ई . )

⦿ इसके द्वारा मतदान के लिए आयु - सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष लाने का प्रस्ताव था ।

पैंसठवाँ संशोधन ( 1990 ई . )

⦿ इसके द्वारा अनुच्छेद - 338 में संशोधन करके अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है ।

उनहत्तरवाँ संशोधन ( 1991 ई . )

⦿ दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बनाया गया तथा दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद् का उपबंध किया गया ।

सत्तरवाँ संशोधन ( 1992 ई . )

⦿ दिल्ली और पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के लिए निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किया गया ।

इकहत्तरवाँ संशोधन ( 1992 ई . )

⦿ आठवीं अनुसूची में कोंकणी . मणिपुरी और नेपाली भाषा को सम्मिलित किया गया ।

तिहत्तरवाँ संशोधन ( 1992 - 93 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत संविधान में ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गयी । इसके पंचायती राज संबंधी प्रावधानों को सम्मिलित किया गया है । इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग - 9 जोड़ा गया । इसमें अनु . - 243 और अनु . - 243 क से 243 ण तक अनुच्छेद है ।

चौहत्तरवाँ संशोधन ( 1993 - 93 ई . )

⦿ इसके अंतर्गत संविधान में बारहवीं अनुसूची शामिल की गयी , जिसमें नगरपालिका , नगर निगम और नगर - परिषदों से संबंधित प्रावधान किये गये हैं । इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग - 9 क जोड़ा गया ।

नोट : 73वाँ संविधान संशोधन 25.04.1993 से और 74वाँ 01.06.1993 से प्रवृत्त हुआ है ।

छिहत्तरवाँ संशोधन ( 1994 ई . )

⦿ इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की नौवीं अनुसूची में संशोधन किया गया है और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69 % आरक्षण का उपबन्ध करने वाली अधिनियम को नौवीं अनुसूची में शामिल कर दिया गया है ।

अठहत्तरवाँ संशोधन ( 1995 ई . )

⦿ इसके द्वारा नौवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 27 भूमि सुधार विधियों को समाविष्ट किया गया है । इस प्रकार नौवीं अनुसूची में सम्मिलित अधिनियमों की कुल संख्या 284 हो गयी है ।

उन्नासीवाँ संशोधन ( 1999 ई . )

⦿ अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2010 ई . तक के लिए बढ़ा दी गई है । इस संशोधन के माध्यम से व्यवस्था की गई कि अब राज्यों को प्रत्यक्ष केन्द्रीय करों से प्राप्त कुल धनराशि का 29 % हिस्सा मिलेगा ।

बेरासीवाँ संशोधन ( 2000 ई . )

⦿ इस संशोधन के द्वारा राज्यों को जारी नौकरियों में आरक्षित रिक्त स्थानों की भर्ती हेतु प्रोन्नति के मामलों में अनुसचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्तांकों में छूट प्रदान करने की अनुमति प्रदान की गई है ।

तिरासीवाँ संशोधन ( 2000 ई . )

⦿ इस संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओ में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान न करने की छुट प्रदान की गई है । अरुणाचल प्रदेश में कोई भी अनुसूचित जाति न होने के कारण उसे यह छूट प्रदान की गई है ।

चौरासीवाँ संशोधन ( 2001 ई . )

⦿ इस संशोधन अधिनियम द्वारा लोकसभा तथा विधानसभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 ई . तक कोई परिवर्तन न करने का प्रावधान किया गया है ।

पचासीवाँ संशोधन ( 2001 ई . )

⦿ सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति / जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था ।

छियासीवाँ संशोधन ( 2002 ई . )

⦿ इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है , इसे अनुच्छेद - 21 ( क ) के अन्तर्गत संविधान में जोड़ा गया है । इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद - 45 तथा अनुच्छेद - 51 ( क ) में संशोधन किये जाने का प्रावधान है ।

सतासीवाँ संशोधन ( 2003 ई . )

⦿ परिसीमन में जनसंख्या का आधार 1991 ई . की जनगणना के स्थान पर 2001 ई . कर दी गई है ।

अठासीवाँ संशोधन ( 2003 ई . )

⦿ सेवाओं पर कर का प्रावधान ।

नबासीवाँ संशोधन ( 2003 ई . )

⦿ अनुसूचित जनजाति के लिए पृथक् राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था ।

नब्बेवाँ संशोधन ( 2003 ई . )

⦿ असम विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बरकरार रखते हुए बोडोलैंड , टेरीटोरियल कौंसिल क्षेत्र , गैर - जनजाति के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा ।

इक्यानवेवाँ संशोधन ( 2003 ई . )

⦿ दल बदल व्यवस्था में संशोधन , केवल सम्पूर्ण दल के विलय को मान्यता , केन्द्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद के सदस्य संख्या क्रमशः लोकसभा तथा विधानसभा की सदस्य संख्या का 15 % होगा ( जहाँ सदन की सदस्य संख्या 40 - 40 है , वहाँ अधिकतम 12 होगी ) ।

बेरानवेवाँ संशोधन ( 2003 ई . )

⦿ संविधान की आठवीं अनुसूची में बोडो , डोगरी , मैथिली और संथाली भाषाओं का समावेश ।

तिरानवेवाँ संशोधन ( 2006 ई . )

⦿ शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति / जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के नागरिकों के दाखिले के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था , संविधान के अनुच्छेद - 15 की धारा 4 के प्रावधानों के तहत की गई है 

चौरानवेवाँ संशोधन ( 2006 ई . )

⦿ इस संशोधन द्वारा बिहार राज्य को एक जनजाति कल्याण मंत्री नियुक्त करने के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया तथा इस प्रावधान को झारखंड व छत्तीसगढ़ राज्यों में लागू करने की व्यवस्था की गई । मध्यप्रदेश एवं ओडिशा राज्य में यह प्रावधान पहले से ही लागू है ।

पंचानबेवाँ संशोधन ( 2009 ई . )

⦿ इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद - 334 में संशोधन कर लोकसभा में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण एवं आंग्ल - भारतीयों को मनोनीत करने संबंधी प्रावधान को 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है ।

96वाँ संविधान संशोधन अधिनियम , 2011

⦿ संविधान की 8वीं अनुसूची में " उडिया ' के स्थान पर ' ओडिया ' लिखा जाए ।

97 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम , 2011

इस संशोधन के द्वारा सहकारी समितियों को एक संवैधानिक स्थान एवं संरक्षण प्रदान किया गया । संशोधन द्वारा संविधान में निम्नलिखित तीन बदलाव किए गए -

⦿ सहकारी समिति बनाने का अधिकार एक मौलिक अधिकार बन गया । [ अनुच्छेद - 19 ( 1 ) ग ]

⦿ राज्य की नीति में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने का एक नया नीति निदेशक सिद्धांत का समावेश । ( अनुच्छेद - 43 ख )

⦿ ' सहकारी समितियाँ ' नाम से एक नया भाग - IX - ख संविधान में जोड़ा गया ।

98वाँ संविधान संशोधन अधिनियम , 2012

⦿ संविधान में अनुच्छेद - 371 ( जे ) शामिल किया गया । इसका उद्देश्य कर्नाटक के राज्यपाल को हैदराबाद - कर्नाटक क्षेत्र के विकास हेतु कदम उठने के लिए सशक्त करना था ।

99वाँ संविधान संशोधन अधिनियम , 2014

⦿ राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना ।

100वाँ संविधान संशोधन अधिनियम , 2015

⦿ भारत - बांग्लादेश भूमि हस्तांतरण ।

101वाँ संविधान संशोधन , 2017

⦿ इसके द्वारा वस्तु एवं सेवाकर को लागू किया गया ।

यह भी देखें
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