भारतीय संविधान की उद्देशिका अथवा प्रस्तावना

नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप भारतीय संविधान की उद्देशिका अथवा प्रस्तावना की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Bhartiya samvidhan ki uddeshika athawa prastawana in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है , इसलिए आज हम Bhartiya samvidhan ki uddeshika athawa prastawana के बारे में बात करेंगे । निचे Preamble Or introduction of Indian Constitution की जानकारी निम्नवत है ।


⦿ नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुत किया गया उन्हें ही संविधान की उद्देशिका में शामिल कर लिया गया । संविधान के 42वें संशोधन ( 1976 ई . ) द्वारा यथा संशोधित यह उद्देशिका निम्न प्रकार है -

" हम भारत के लोग , भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न , समाजवादी , पंथनिरपेक्ष , लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को -
सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक न्याय , विचार , अभिव्यक्ति , विश्वास , धर्म और उपासना की स्वतंत्रता , प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ - संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर , 1949 ई . ( मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी , सम्वत् दो हजार छह विक्रमी ) को एतद्द्वारा इस सविधान को अगीकृत , अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं । " 

प्रस्तावना की मुख्य बातें

संविधान की उद्देशिका अथवा प्रस्तावना,Preamble Or introduction of Indian Constitution,Samvidhan ki uddeshika athawa prastawana
Samvidhan ki uddeshika athawa prastawana

⦿ संविधान की प्रस्तावना को ‘ संविधान की कुंजी ' कहा जाता है ।

⦿ प्रस्तावना संविधान का आरंभिक अंंक होते हुए भी कानूनी तौर पर उसका भाग नहीं माना जाता है ।

⦿ प्रस्तावना के अनुसार संविधान के अधीन समस्त शक्तियों का केन्द्रबिन्दु अथवा स्रोत ' भारत के लोग ' ही हैं ।

⦿ प्रस्तावना में लिखित शब्द यथा - " हम भारत के लोग . . . . . . . इस संविधान को " अंगीकृत , अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं । " भारतीय लोगों की सर्वोच्च सम्प्रभुता का उद्घोष करते हैं ।

⦿ " प्रस्तावना " को न्यायालय में प्रवर्तित नहीं किया जा सकता यह निर्णय यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मदन गोपाल , 1957 के निर्णय में घोषित किया गया । यानी यदि सरकार या कोई नागरिक प्रस्तावना की अवहेलना करता है तो उसकी रक्षा के लिए हम अदालत की सहायता नहीं ले सकते हैं ।

⦿ बेरूबाड़ी यूनियन वाद ( 1960 ) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहाँ संविधान की भाषा संदिग्ध हो , वहाँ प्रस्तावना विधिक निर्वाचन में सहायता करती है ।

⦿ बेरूबाड़ी वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना । इसलिए विधायिका प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती । परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य वाद , 1973 ई . में कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग है । इसलिए विधायिका (संसद) उसमें संशोधन कर सकती है ।

⦿ केशवानन्द भारती वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने मूल ढाँचा का सिद्धान्त ( Theory of Basic Structure ) दिया तथा प्रस्तावना को संविधान का मूल ढाँचा माना ।

⦿ संसद संविधान की मूल ढाँचा में नकारात्मक संशोधन नहीं कर सकती है , स्पष्टतः संसद वैसा संशोधन कर सकती है , जिससे मूल ढाँचा का विस्तार व मजबूतीकरण होता है ।

⦿ 42वें संविधान संशोधन अधिनियम , 1976 ई . के द्वारा इसमें ' समाजवादी ' , ' पंथनिरपेक्ष ' और ' राष्ट्र की अखण्डता ' शब्द जोड़े गये ।

⦿ भारत के संविधान की प्रस्तावना में तीन प्रकार का न्याय ( सामाजिक , आर्थिक एवं राजनैतिक ) , पाँच प्रकार की स्वतंत्रता ( विचार , अभिव्यक्ति , विश्वास , धर्म एवं उपासना ) एवं दो प्रकार की समानता ( प्रतिष्ठा एवं अवसर ) का उल्लेख किया गया है ।

⦿ भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित एवं सर्वाधिक व्यापक संविधान है । यह अंशतः कठोर और अंशतः लचीला है ।

⦿ भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में संविधान सर्वोच्च है ।

⦿ भारत का संविधान अपना प्राधिकार भारत की जनता से प्राप्त करता है ।

⦿ भारत सरकार अधिनियम 1935 वह संवैधानिक दस्तावेज है जिसका भारतीय संविधान तैयार करने में गहरा प्रभाव पड़ा ।

⦿ भारत के संविधान में संघीय शासन शब्द का प्रयोग कहीं भी नहीं किया गया है । संविधान में भारत को राज्यों का संघ घोषित किया गया है ।

नोट- लिखित संविधान की अवधारणा फ्रांस की देन है ।

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