भारतीय संविधान का इतिहास

नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप भारतीय संविधान का इतिहास की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Bhartiy sanvidhan ka itihas in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है , इसलिए आज हम Bhartiy sanvidhan के बारे में बात करेंगे । निचे History of Indian Constitution की जानकारी निम्नवत है ।

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History of Indian Constitution

1757 ई . की पलासी की लड़ाई और 1764 ई . के बक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिये जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने शासन का शिकंजा कसा । इसी शासन को अपने अनुकूल बनाये रखने के लिए अंग्रेजों ने समय - समय पर कई ऐक्ट पारित किये , जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियाँ बनीं । वे निम्न हैं -

1753 ई . का रेग्युलेटिंग एक्ट

इस अधिनियम का अत्यधिक संवैधानिक महत्व है जैसे -

( a ) भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था । अर्थात कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया ।

( b ) इसके द्वारा पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनैतिक कार्यों को मान्यता मिली ।

( c ) इसके द्वारा केन्द्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी ।

⦿ इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जेनरल पद नाम दिया गया तथा मुम्बई एवं मद्रास के गवर्नर को इसके अधीन किया गया । इस एक्ट के तहत बनने वाले प्रथम गवर्नर जेनरल लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स थे ।

⦿ इस ऐक्ट के अन्तर्गत कलकत्ता प्रेसीडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गई , जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद् के चार सदस्य थे , जो अपनी सत्ता के उपयोग संयुक्त रूप से करते थे ।

⦿  इस अधिनियम के अन्तर्गत कलकत्ता में 1774 ई . में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी , जिसमें मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे । इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर एलिजाह इम्पे थे ( अन्य तीन न्यायाधीश - 1 . चैम्बर्स 2 . लिमेंस्टर 3 . हाइड ) ।

⦿ इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया ।

⦿ इस अधिनियम के द्वारा , ब्रिटिश सरकार का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया । इसे भारत में इसके राजस्व , नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया ।

ऐक्ट ऑफ सेटलमेंट , 1781 ई .

⦿ रेग्यूलेंटिग ऐक्ट की कमियों को दूर करने के लिए इस ऐक्ट का प्रावधान किया गया । इस ऐक्ट के अनुसार कलकत्ता की सरकार को बंगाल , बिहार और उड़ीसा के लिए भी विधि बनाने का प्राधिकार प्रदान किया गया ।

1784 ई . का पिट्स इंडिया ऐक्ट

⦿ इस ऐक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारंभ हुआ - 1 . बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स — व्यापारिक मामलों के लिए 2 . बोर्ड ऑफ कंट्रोलर - राजनीतिक मामलों के लिए ।

1793 ई . का चार्टर अधिनियम

⦿ इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतनादि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यवस्था की गयी ।

1813 ई . का चार्टर अधिनियम

⦿ इस अधिनियम की मुख्य विशेषता हैं - 1 . कम्पनी के अधिकार-पत्र को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया । 2 . कम्पनी के भारत के साथ व्यापार करने के एकाधिकार को छीन लिया गया । किन्तु उसे चीन के साथ व्यापार एवं पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 वर्षों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा । 3 . कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया । 4 . 1813 से पहले ईसाई पादरियों को भारत में आने की आज्ञा नहीं थी , परन्तु 1813 ई . के अधिनियम द्वारा ईसाई पादरियों को आज्ञा प्राप्त करके भारत आने की सुविधा मिल गयी ।

1833 ई . का चार्टर अधिनियम

⦿ इसके द्वारा कम्पनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिये गये ।

⦿ अब कम्पनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया ।

⦿ बंगाल के गवर्नर जेनरल को भारत का गवर्नर जेनरल कहा जाने लगा ।

⦿ बम्बई तथा मद्रास की परिषदों की विधि निर्माण शक्तियों को वापस ले लिया गया ।

⦿ विधिक परामर्श हेतु गवर्नर जनरल की परिषद् में विधि सदस्य के रूप में चौथे सदस्य को शामिल किया गया ।

⦿ भारत में दास प्रथा को विधि विरुद्ध घोषित कर दिया गया तथा 1843 ई . में उसका उन्मूलन कर दिया गया ।

⦿ अधिनियम की धारा - 87 के तहत कम्पनी के अधीन पद धारण करने के लिए किसी व्यक्ति को धर्म , जन्मस्थान , मूल वंश या रंग के आधार पर अयोग्य न ठहराए जाने का उपबन्ध किया गया ।

⦿ गवर्नर जनरल की परिषद् को राजस्व के संबंध में पूर्ण अधिकार प्रदान करते हुए गवर्नर जनरल को सम्पूर्ण देश के लिए एक ही बजट तैयार करने का अधिकार दिया गया ।

⦿ भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी । 1834 में लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में प्रथम विधि आयोग का गठन किया गया ।

1853 ई . का चार्टर अधिनियम

⦿ इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धान्त समाप्त कर कम्पनी के महत्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गयी । इसके लिए 1854 ई . में मैकाले समिति की नियुक्ति की गई ।

⦿ इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल की परिषद् के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया गया । इसके तहत परिषद् में छह नए पार्षद जोड़े गए , जिन्हें विधान पार्षद कहा गया ।

1858 ई . का भारत शासन अधिनियम

⦿ भारत का शासन कम्पनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों में सौंपा गया ।

⦿ भारत में मंत्रि - पद की व्यवस्था की गयी ।

⦿ पन्द्रह सदस्यों की भारत - परिषद् का सृजन हुआ । ( 8 सदस्य ब्रिटिश सरकार द्वारा एवं 7 सदस्य कंपनी के निदेशक मंडल द्वारा )

⦿ भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण स्थापित किया गया ।

⦿ मुगल सम्राट के पद को समाप्त कर दिया गया ।

⦿ इस अधिनियम के द्वारा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स तथा बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल को समाप्त कर दिया गया ।

⦿ भारत में शासन संचालन के लिए ब्रिटिश मंत्रीमंडल में एक सदस्य के रूप में भारत के राज्य सचिव ( Secretary of State for India ) की नियुक्ति की गयी । वह अपने कार्यों के लिए ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी होता था । भारत के प्रशासन पर इसका सम्पूर्ण नियंत्रण था । उसी का वाक्य अंतिम होता था चाहे वह नीति के विषय में हो या अन्य ब्योरे के विषय में ।

⦿ भारत के गवर्नर जनरल का नाम बदलकर वायसराय कर दिया गया । अतः इस समय के गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग अंतिम गवर्नर जनरल एवं प्रथम वायसराय हुए ।

1861 ई . का भारत परिषद् अधिनियम

⦿ गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् का विस्तार किया गया 

⦿ विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ ( लार्ड कैनिंग द्वारा ) 

⦿ गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी । ऐसे आध्यादेश की अवधि मात्र छः महीने होती थी ।

⦿ गवर्नर जेनरल को बंगाल , उत्तर - पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद् स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गयी ।

⦿ इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई । वायसराय कुछ भारतीय को विस्तारित परिषद् में गैर - सरकारी सदस्यों के रूप में नामांकित कर सकता था ।

नोट : 1862 ई . में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों - बनारस के राजा , पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधानपरिषद् में मनोनीत किया ।

1873 ई . का अधिनियम

⦿ इस अधिनियम द्वारा यह उपबन्ध किया गया कि ईस्ट इंडिया कंपनी को किसी भी समय भंग किया जा सकता है । 1 जनवरी , 1884 ई . को ईस्ट इंडिया कंपनी को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया ।

शाही उपाधि अधिनियम , 1876 ई .

⦿ इस अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की केन्द्रीय कार्यकारिणी में छठे सदस्य की नियुक्ति कर उसे लोक निर्माण विभाग का कार्य सौंपा गया । 28 अप्रैल , 1876 ई . को एक घोषणा द्वारा महारानी विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी घोषित किया गया ।

1892 ई . का भारत परिषद् अधिनियम

⦿ इस अधिनियम की मुख्य विशेताएँ हैं — 1 . अप्रत्यक्ष चुनाव - प्रणाली की शुरुआत हुई 2 . इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई ।

1909 ई . का भारत परिषद् अधिनियम ( मार्ले - मिन्टो सुधार )

⦿ पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक् प्रतिनिधित्व का उपबन्ध किया गया । इसके अन्तर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे ( भारत सरकार अधिनियम के तहत् पहली बार विधायिका में कुछ निर्वाचित प्रतिनिधित्व की मंजूरी ) । इस प्रकार इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की और लॉर्ड मिंटो को साम्प्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना गया ।

⦿ भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जेनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गई ।

⦿ केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान परिषदों को पहली बार बजट पर वाद - विवाद करने , सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने , पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला ।

⦿ प्रान्तीय विधान परिषदों की संख्या में वृद्धि की गयी ।

⦿ सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यपालिका परिषद् के प्रथम भारतीय सदस्य बने । उन्हें विधि सदस्य बनाया गया ।

⦿ इस अधिनियम के तहत प्रेसीडेंसी कॉर्पोरेशन , चैंबर्स ऑफ कॉमर्स , विश्वविद्यालयों और जमींदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया ।

नोट : 1909 ई . में लॉर्ड मॉर्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव थे और लॉर्ड मिंटो भारत के वायसराय ।

1919 ई . का भारत शासन अधिनियम ( माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार )

⦿ केन्द्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गयी — प्रथम राज्य परिषद् तथा दूसरी केन्द्रीय विधानसभा । राज्य परिषद् के सदस्यों की संख्या 60 थी , जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था । केन्द्रीय विधानसभा के सदस्यों की संख्या 144 थी , जिनमें 104 निर्वाचित तथा 40 मनोनीत होते थे , इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था । दोनों सदनों के अधिकार समान थे । इनमें सिर्फ एक अन्तर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था ।

⦿ प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया ( प्रांतों में द्वैध शासन के जनक लियोनस कार्टियस थे ) ।

⦿ इस योजना के अनुसार प्रान्तीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया - आरक्षित तथा हस्तान्तरित या अन्तरित

आरक्षित विषय : वित्त , भूमि कर , अकाल सहायता , न्याय , पुलिस , पेंशन , आपराधिक जातियाँ ( criminal tribes ) , छापाखाना , समाचारपत्र , सिंचाई , जलमार्ग , खान , कारखाना , बिजली , गैस , वॉयलर , श्रमिक कल्याण , औद्योगिक विवाद , मोटरगाड़ियाँ , छोटे बन्दरगाह और सार्वजनिक सेवाएँ आदि ।

हस्तान्तरित विषय : शिक्षा , पुस्तकालय , संग्रहालय , स्थानीय स्वायत्त शासन , चिकित्सा सहायता , सार्वजनिक निर्माण विभाग , आबकारी , उद्योग , तौल तथा माप , सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण , धार्मिक तथा अग्रहार दान आदि ।

नोट : आरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर और उसकी कार्यकारी परिषद् के माध्यम से किया जाना था ; जबकि हस्तान्तरित विषयों का प्रशासन गर्वनर द्वारा विधान परिषद् के प्रति उत्तरदायी मंत्रियों की सहायता से किया जाना था । ( इस द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई . के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया । )

⦿ भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है 

⦿ इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया । अतः 1926 ई . में ली आयोग ( 1923 - 24 ) की सिफारिश पर सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केन्द्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया ।

⦿ इस अधिनियम के अनुसार वायसराय की कार्यकारी परिषद् में छह सदस्यों में से ( कमांडर - इन - चीफ को छोड़कर ) तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था ।

⦿ इसने सांप्रदायिक आधार पर सिक्खों , भारतीय ईसाइयों , आंग्ल - भारतीयों और यूरोपीयों के लिए भी पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया ।

⦿ इसमें पहली बार केन्द्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया ।

⦿ इसके अंतर्गत एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया जिसका कार्य दस वर्ष बाद जाँच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था ।

⦿ इस अधिनियम में केन्द्रीय विधान सभा में वायसराय के अध्यादेश जारी करने की शक्तियों को निम्न रूप में बनाए रखा गया : -

( a ) कुछ विषयों से संबंधित विधेयकों को विचारार्थ प्रस्तुत करने के लिए उसकी पूर्व अनुमति आवश्यक थी 

( b ) उसे भारतीय विधान सभा द्वारा पारित किसी भी विधेयक को वीटो करने या सम्राट के विचार के लिए आरक्षित करने की शक्ति थी 

( c ) उसे यह शक्ति थी कि विधानमंडल द्वारा नामंजूर किए गए या पारित न किए गए किसी विधेयक या अनुदान को प्रमाणित कर दे तो ऐसे प्रमाणित विधेयक विधान मंडल द्वारा पारित विधेयक के समान हो जाते थे 

( d ) वह आपात स्थिति में अध्यादेश बना सकता था जिनका अस्थायी अवधि के लिए विधिक प्रभाव होता था 

नोट : माण्टेग्यू - चेम्सफोर्ड सुधार ( भारत शासन अधिनियम - 1919 ) द्वारा भारत में पहली बार महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला । उस समय इंग्लैंड का प्रधानमंत्री लॉयड जार्ज था ।

1935 ई . का भारत शासन अधिनियम

1935 ई . के अधिनियम में 321 अनुच्छेद और 10 अनुसूचियाँ थीं । इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं -

⦿ अखिल भारतीय संघ : यह संघ 11 ब्रिटिश प्रान्तों , 6 चीफ कमीश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था , जो स्वेच्छा से संघ में सम्मिलित हों । प्रान्तों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था , किन्तु देशी रियासतों के लिए यह ऐच्छिक था । देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुईं और प्रस्तावित संघ की स्थापना - संबंधी घोषणा - पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया ।

⦿ प्रान्तीय स्वायत्तता : इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था का अन्त कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया ।

⦿ केन्द्र में द्वैध शासन की स्थापना : इस अधिनियम में विधायी शक्तियों को केन्द्र और प्रांतीय विधान मंडलों के बीच विभाजित किया गया । इसके तहत परिसंघ सूची , प्रांतीय सूची एवं समवर्ती सूची का निर्माण किया गया ।

( a ) परिसंघ सूची के विषयों पर परिसंघ विधान मंडल को विधान बनाने की अनन्य शक्ति थी । इस सूची में विदेशी कार्य , करेंसी और मुद्रा , नौसेना , सेना , वायुसेना , जनगणना जैसे विषय थे ।

( b ) प्रांतीय सूची के विषयों पर प्रांतीय विधान मंडलों की अनन्य अधिकारिता थी । यानी इस सूची में वर्णित विषयों पर प्रांतीय विधान मंडल को कानून बनाने का अधिकार था । प्रांतीय सूची के कुछ विषय थे — पुलिस , प्रांतीय लोकसेवा और शिक्षा ।

( c ) समवर्ती सूची के विषयों पर परिसंघ एवं प्रांतीय विधान मंडल दोनों विधान बनाने के लिए सक्षम थे । समवर्ती सूची के कुछ विषय थे — दंडविधि और प्रक्रिया , सिविल प्रक्रिया , विवाह एवं विवाह विच्छेद आदि । ऊपर उल्लेखित उपबन्धों के अधीन रहते हुए किसी भी विधान मंडल को दूसरे की शक्तियों का अतिक्रमण करने का अधिकार नहीं था । लेकिन वायसराय द्वारा आपात की उद्घोषणा किये जाने पर परिसंघ विधान मंडल को प्रांतीय सूची के विषयों में विधान बनाने की शक्ति थी । दो प्रांतीय विधान मंडलों की अनुरोध पर भी परिसंघ विधान मंडल प्रांतीय विधान मंडल के विषय में विधान बना सकती थी । समवर्ती सूची के विषयों पर परिसंघ विधि , प्रांत की विधि पर अभिभावी होती थी । इस अधिनियम में अवशिष्ट विधायी शक्ति वायसराय को दी गई थी ।

⦿ संघीय न्यायालय की व्यवस्था : इसका अधिकार क्षेत्र प्रान्तों तथा रियासतों तक विस्तृत था । इस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गयी । न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी कौसिल ( लंदन ) को प्राप्त थी ।

⦿ ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता : इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था । प्रांतीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका , इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे ।

⦿ भारत परिषद् का अन्त : इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद् का अन्त कर दिया गया ।

⦿ साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार : संघीय तथा प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार दलित जातियों , महिलाओं और मजदूर वर्ग तक किया गया ।

⦿ इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था ।

⦿ इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया । अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया ।

⦿ इसके अंतर्गत देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई ।

⦿ इसने मताधिकार का विस्तार किया । लगभग 10 % जनसंख्या को मत अधिकार मिल गया ।

1947 ई . का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम

ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई , 1947 ई . को ' भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ' प्रस्तावित किया गया , जो 18 जुलाई , 1947 ई . को स्वीकृत हो गया । इस अधिनियम में 20 धाराएँ थीं । इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं-

⦿ दो अधिराज्यों की स्थापना : 15 अगस्त , 1947 को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिये जायेंगे , और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी । सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपी जायेगी ।

⦿ भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक - एक गवर्नर जनरल होंगे , जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रीमंडल की सलाह से की जायेगी ।

⦿ संविधान सभा का विधान मंडल के रूप में कार्य करना — जब तक संविधान सभाएँ संविधान का निर्माण नहीं कर लेतीं , तब तक वे विधान मंडल के रूप में कार्य करती रहेगी ।

⦿ भारत-मंत्री के पद समाप्त कर दिये जायेंगे ।

⦿ 1935 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जब तक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है , तब तक उस समय 1935 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा ।

⦿ देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अन्त कर दिया गया । उनको भारत या पाकिस्तान , किसी भी अधिराज्य में सम्मिलित होने और अपने भावी संबंधों का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी ।

⦿ इस अधिनियम के अधीन भारत डोमिनियन को सिंध , बलूचिस्तान , पश्चिमी पंजाब , पूर्वी बंगाल , पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत और असम के सिलहट जिले को छोड़कर भारत का शेष राज्यक्षेत्र मिल गया ।

नोट : सिलहट जिले ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम , 1947 ई . के प्रवृत् होने के पूर्व जनमत संग्रह में पाकिस्तान के पक्ष में मत दिया था ।

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