परिसीमन आयोग,पदाधिकारियों की वरीयता

नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप परिसीमन आयोग,पदाधिकारियों की वरीयता की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Parisiman ayog aur padadhikariyo ki variyata in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है , इसलिए आज हम Parisiman ayog aur padadhikariyo ki variyata के बारे में बात करेंगे । निचे Delimitation commission andOffice bearers की जानकारी निम्नवत है ।

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Parisiman ayog

परिसीमन आयोग

संविधान में परिसीमन आयोग के संबंध में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिया गया है । अनुच्छेद - 82 में प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर लोक सभा एवं राज्य के निर्वाचन क्षेत्रों के विभाजन एवं पुनः समायोजन का कार्य संसद द्वारा विहित अधिकारी द्वारा किये जाने का प्रावधान है ।

अब तक गठित चार परिसीमन आयोग

परिसीमन आयोग वर्ष
प्रथम परिसीमन आयोग 1952
द्रितीय परिसीमन आयोग 1962
तृतीय परिसीमन आयोग 1973
चतुर्थ परिसीमन आयोग 2002

⦿ 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद - 82 में संशोधन कर परिसीमन पर वर्ष 2000 ई . तक के लिए रोक लगा दी गई थी ।

⦿ 84 वें संविधान संशोधन अधिनियम , 2001 ई . के द्वारा संविधान के अनुच्छेद - 82 और 170 ( 3 ) की शर्तों में संशोधन किया गया है , जिसके अनुसार देश में लोकसभा एवं विधानसभा की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 ई . तक कोई वृद्धि अथवा कमी नहीं की जायेगी ।

⦿ परिसीमन आयोग 2002 का गठन 12 जुलाई , 2002 को न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में किया गया व इस आयोग की सिफारिशों को केन्द्रीय मंत्रीमंडल ने 10 जनवरी , 2008 को मंजूरी प्रदान की । नये परिसीमन से लोक सभा में आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ जायेगी । नया परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर किया गया है ।

⦿ परिसीमन आयोग में देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित सभी राज्य व केन्द्रशासित प्रदेशों के निर्वाचन आयुक्त इस आयोग के सदस्य हैं ।

⦿ परिसीमन आयोग का प्रमुख कार्य हाल की जनगणना के आधार पर विभिन्न विधान सभाओं एवं लोक सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा का पुनः सीमांकन करना होता है ।

⦿ परिसीमन आयोग के आदेशों को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है । परिसीमन आयोग के आदेशों को लोकसभा एवं संबंधित राज्य विधान सभाओं में रखा जाता है किंतु लोकसभा एवं राज्य विधान सभाएँ परिसीमन आयोग के आदेशों में कोई सुधार या संशोधन नहीं कर सकती है । परिसीमन आयोग के द्वारा प्रत्येक राज्य के प्रदत्त प्रतिनिधित्व में कोई बदलाव नहीं किया जाता है किंतु जनगणना के आधार पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से संबंधित सीटों में परिवर्तन कर दिया जाता है ।

नये परिसीमन के बाद आरक्षित सीट

जाति पहले आरक्षित सीट नये परिसीमन के बाद आरक्षित सीट
अनुसूचित जाति 79 84
अनुसूचित जनजाति 41 47
अनारक्षित सीटों की संख्या - 412

नोट : वैसे राज्य जिनका परिसीमन आयोग 2002 ई . के द्वारा परिसीमन नहीं हो सका - असम , मणिपुर , अरुणाचल प्रदेश , नगालैंड एवं झारखंड । पूर्वोत्तर के चारों राज्यों में स्थानीय विरोध एवं अदालतों के स्थगन आदेश के कारण परिसीमन नहीं हो सका जबकि झारखंड में सरकारी नीति के विपरीत आरक्षित सीटें कम होने के कारण यह परिसीमन पूरा नहीं हो सका ।

भारतीय राजव्यवस्था में वरीयता अनुक्रम

भारतीय राजव्यवस्था में विभिन्न पदाधिकारियों का वरीयता अनुक्रम ( Warrant of Precedence ) इस प्रकार है - 
1 . राष्ट्रपति
2 . उपराष्ट्रपति
3 . प्रधानमंत्री
4 . राज्यों के राज्यपाल , अपने राज्यों में
5 . भूतपूर्व राष्ट्रपति
5 क . उप प्रधानमंत्री
6 . भारत का मुख्य न्यायाधीश तथा लोकसभाध्यक्ष
7 . केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री राज्य के मुख्यमंत्री अपने - अपने राज्यों में , योजना आयोग का उपाध्यक्ष , पूर्व प्रधानमंत्री तथा संसद के विपक्ष का नेता
7 क . भारत रत्न सम्मान के धारक
8 . राजदूत
9 . उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश
9 क . मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक
10 . राज्यसभा का उपसभापति , लोकसभा का उपाध्यक्ष , योजना आयोग के सदस्य तथा केन्द्र में राज्यमंत्री

⦿ भारत रत्न एकमात्र ऐसा पुरस्कार है जिसे वरीयता अनुक्रम में स्थान दिया गया है ।

नोट : मुख्य चुनाव आयुक्त श्री शेषन के आग्रह पर सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त को ( 9 ) क की स्थिति प्रदान की है , यानी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समकक्ष दर्जा ( यह संशोधन अगस्त , 1993 में किया गया  ) 

यह भी देखें
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