भारत की मिट्टी
नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप भारत की मिट्टी की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Bharat ki mitti in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है इसलिए आज हम Bharat ki mitti विषय के बारे में बात करेंगे । निचे Soil of india की जानकारी निम्नवत है ।
⦿ मिट्टी के अध्ययन के विज्ञान को मृदा विज्ञान ( Pedology ) कहा जाता है । भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने भारत की मिट्टियों को आठ वर्गों में विभाजित किया है , जो निम्न हैं-
जलोढ़ मिट्टी ( Alluvial soil )
⦿ यह नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टी है । इस मिट्टी में पोटाश की बहुलता होती है , लेकिन नाइट्रोजन , फॉस्फोरस एवं ह्यूमस की कमी होती है । यह भारत की सबसे उपजाऊ मृदा है ।
⦿ यह मिट्टी भारत के लगभग 22 % क्षेत्रफल पर पायी जाती है । भारत का संपूर्ण उत्तरी मैदान , तटीय मैदान जलोढ़ मिट्टी का बना है । यह दो प्रकार की होती है -1. बांगर ( Bangar ) और 2. खादर ( Khadar ) ।
⦿ पुराने जलोढ़ मिट्टी को बांगर तथा नयी जलोढ़ मिट्टी को खादर कहा जाता है ।
⦿ जलोढ़ मिट्टी उर्वरता के दृष्टिकोण से काफी अच्छी मानी जाती है । इसमें धान , गेहूँ , मक्का , तिलहन , दलहन , आलू आदि फसलें उगायी जाती हैं ।
काली मिट्टी ( Black soil )
⦿ इसका निर्माण बेसाल्ट चट्टानों के टूटने - फूटने से होता है । इसमें आयरन , चूना , एल्युमिनियम एवं मैग्नेशियम की बहुलता होती है । इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट एवं जीवांश ( Humus ) की उपस्थिति के कारण होता है । इस मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की अधिकता होती है ।
⦿ इस मिट्टी को रेगुर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है ।
⦿ कपास की खेती के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त होती है । अतः इसे काली कपास की मिट्टी भी कहा जाता है । अन्य फसलों में गेहूँ , ज्वार , बाजरा आदि को उगाया जाता है ।
⦿ भारत में काली मिट्टी गुजरात , महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र , ओडिशा के दक्षिणी क्षेत्र , कर्नाटक के उत्तरी जिला , आन्ध्रप्रदेश के दक्षिणी एवं समुद्रतटीय क्षेत्र , तमिलनाडु के सलेम , रामनाथपुरम , कोयम्बटूर तथा तिरुनलवैली जिलों एवं राजस्थान के बूँदी एवं टोंक जिलों में पायी जाती है ।
लाल मिट्टी ( Red soil )
⦿ इसका निर्माण जलवायविक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप रवेदार एवं कायान्तरित शैलों के विघटन एवं वियोजन से होता है । इस मिट्टी में सिलिका एवं आयरन की बहुलता होती है ।
⦿ लाल मिट्टी का लाल रंग लौह-ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होता है , लेकिन जलयोजित रूप में यह पीली दिखाई पड़ती है ।
⦿ यह अम्लीय प्रकृति की मिट्टी होती है । इसमें नाइट्रोजन , फॉस्फोरस एवं ह्यूमस की कमी होती है । यह मिट्टी प्रायः उर्वरता-विहीन बंजर भूमि के रूप में पायी जाती है ।
⦿ इस मिट्टी में कपास , गेहूँ , दालें व मोटे अनाजों की कृषि की जाती है । भारत में यह मिट्टी आन्ध्रप्रदेश एवं मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग , छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र , पश्चिम बंगाल के उत्तरी - पश्चिमी जिलों , मेघालय की गारो , खासी एवं जयन्तिया के पहाड़ी क्षेत्रों , नगालैंड , राजस्थान में अरावली के पूर्वी क्षेत्र , महाराष्ट्र , तमिलनाडु एवं कर्नाटक के कुछ भागों में पायी जाती है ।
⦿ चूना का इस्तेमाल कर लाल मिट्टी की उर्वरता बढ़ायी जा सकती है ।
लैटेराइट मिट्टी ( Laterite soil )
⦿ इसका निर्माण मानसूनी जलवायु की आर्द्रता एवं शुष्कता के क्रमिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न विशिष्ट परिस्थितियों में होता है । इसमें आयरन एवं सिलिका की बहुलता होती है ।
⦿ शैलों के टूट-फूट से निर्मित होने वाली इस मिट्टी को गहरी लाल लैटेराइट , सफेद लैटेराइट तथा भूमिगत जलवायी लैटेराइट के रूप में वर्गीकृत किया जाता है ।
⦿ गहरी लाल लैटेराइट में लौह - ऑक्साइड तथा पोटाश की बहुलता होती है । इसकी उर्वरता कम होती है , लेकिन निचले भाग में कुछ खेती की जाती है ।
⦿ सफेद लैटेराइट की उर्वरकता सबसे कम होती है और केओलिन के कारण इसका रंग सफेद होता है ।
⦿ भूमिगत जलवायी लैटेराइट काफी उपजाऊ होती है , क्योंकि वर्षाकाल में लौह - ऑक्साइड जल के साथ घुलकर नीचे चले जाते हैं ।
⦿ लैटेराइट मिट्टी चाय , इलायची एवं काजू की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है ।
मरुस्थलीय मिट्टी ( Desert Soil )
⦿ भारत में अरावली श्रेणी के पश्चिम में जलवायु की शुष्कता एवं भीषण ताप के कारण नंगी चट्टानों विघटित होकर मरुस्थलीय मिट्टी बनाती है ।
⦿ यह मिट्टी बलुई मिट्टी है जिसमें लोहा एवं फास्फोरस , एलमुनियम की पर्याप्त मात्रा होता है परंतु नाइट्रोजन , फास्फोरस, पोटाश, चूने एवं ह्यूमस की कमी होती है ।
⦿ इस मिट्टी में मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, तिलहन, सरसों, जौं आदि पैदा किए जाते हैं ।
⦿ यह मिट्टी दक्षिणी पंजाब, पश्चिमी हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पायी जाती है ।
पर्वतीय मिट्टी या वन क्षेत्र की मिट्टी ( Mountain Soil or Forest Soil )
⦿ पर्वतीय मिट्टी पर्वतीय ढालो पर , वन्य क्षेत्रों की घाटियों में या पर्याप्त वर्षा वाले वनों में पाई जाती है ।
⦿ यह मिट्टी पर्वतों के अपरदन और वनस्पतियों के अवशेषों से बनी होती है ।
⦿ यह अम्लीय मिट्टी है । इस मिट्टी में जीवाश्म की अधिकता होती है परंतु पोटाश फास्फोरस एवं चूने की कमी होती है ।
⦿ पर्वतीय मिट्टी में बागानी कृषि की जाती है। भारत में चाय, कहवा, मसाले एवं फसलों सेब, नाशपाती काजू की कृषि इसी मिट्टी में होती है ।
⦿ पर्वतीय मिट्टी कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश के पर्वतीय भाग , तमिलनाडु, कर्नाटक, मनीपुर आदि जगहों में पाई जाती है ।
लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी ( Saline and Alkaline Soil )
⦿ लवणीय मिट्टी को रेह, उसर व कल्लर के नाम से जाना जाता है ।
⦿ यह मिट्टी समुद्र तटीय इलाको में उच्च ज्वार के समय समुद्र के खरे पानी का भूमि पर फैल जाने से बनी है ।
⦿ इसका विकास शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र में भी हुआ है जहां जल निकास की समुचित व्यवस्था का अभाव है ।
⦿ इसमें सोडियम, पोटैशियम मैग्निशियम व कैल्शियम पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं परंतु नाइट्रोजन एवं चूने की कमी होती है ।
⦿ लवणीय मिट्टी का विस्तार दक्षिणी पंजाब , दक्षिणी हरियाणा पश्चिमी राजस्थान , गुजरात पूर्वी तट के डेल्टा क्षेत्र , सुंदरबन क्षेत्र एवं तटीय क्षेत्र में हुआ है ।
⦿ तटीय क्षेत्र में इस मृदा में नारियल के पेड़ बहुत मिलते हैं ।
⦿ इस मिट्टी की प्रमुख मुख्य फसलें बरसीम, धान, गन्ना, गेहूं, आंवला, फालसा, अमरुद तथा जामुन है ।
पीट या जैविक मिट्टी ( Peaty and Marshy Soil )
⦿ पीट मिट्टी में कार्बनिक एवं जैविक पदार्थों की अधिकता होती है , यह मिट्टी काली भारी एवं काफी अम्लीय होती है एवं यह मिट्टी मुख्यत: भारी वर्षा और ऊंची आद्रता वाले क्षेत्र में पाई जाती है।
⦿ पीट मिट्टी मुख्यता केरल के एलैपी जिला, उत्तराखंड के अल्मोड़ा, सुंदरबन डेल्टा एवं अन्य निचले डेल्टा क्षेत्रों में पाई जाती है। केरल में इस प्रकार की मिट्टी में नमक के अंश पाए जाते हैं जिससे यहां ' कारी ' कहा जाता है ।
⦿ इस मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में अधिकता तथा पोटाश एवं फॉस्फेट की कमी पायी जाती है ।
⦿ इस मिट्टी में चावल गन्ना कपास गेहू ज्वार बाजरा की खेती की जाती है । कपास की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होने के कारण इसे कपास की काली मिट्टी अथवा कपासी मृदा भी कहते है ।
देश में मृदा अपरदन व उसके दुष्परिणामों पर नियंत्रण हेतु 1953 में केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड का गठन किया गया । मरुस्थल की समस्या के अध्ययन के लिए जोधपुर में Central Arid Zone Research Institute ( CAZRI ) की स्थापना की गई है । |
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