ऊष्मा
नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप ऊष्मा की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Ushma in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है इसलिए आज हम Ushma विषय के बारे में बात करेंगे। निचे Heat की जानकारी निम्नवत है।
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Heat |
⦿ ऊष्मा (Heat): यह वह ऊर्जा है जो एक वस्तु से दूसरी वस्तु में केवल तापान्तर (Temperature Difference) के कारण स्थानान्तरित होती है। किसी वस्तु में निहित ऊष्मा उस वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर करती है।
⦿ यदि कार्य Wऊष्मा Q में बदलता है तो W/Q = J या W= JQ जहाँ J एक नियतांक है, जिसे ऊष्मा का यांत्रिक तुल्यांक (Mechanical Equivalent of Heat) कहते हैं। J का मान 4.186 जूल/कैलोरी होता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि यदि 4.186 जूल का यांत्रिक कार्य किया जाए तो उत्पन्न ऊष्मा की मात्रा 1 कैलोरी होगी।
ऊष्मा के मात्रक (Units of Heat)
⦿ ऊष्मा का S.I. मात्रक जूल है। इसके लिए निम्न मात्रक का प्रयोग भी किया जाता है।
1. कैलोरी (Calorie ): एक ग्राम जल का ताप 1°C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को कैलोरी कहते हैं।
2. अन्तर्राष्ट्रीय कैलोरी (International Calorie): 1 ग्राम शुद्ध जल का ताप 14.5°C से 15.5°C तक बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को 1 कैलोरी कहा जाता है।
3. ब्रिटिश थर्मल यूनिट (B. Th. U.): एक पौंड जल का ताप 1°F बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को 1 B. Th. U. कहते हैं।
⦿ विभिन्न मात्रकों में सम्बन्ध-
1 B. Th. U. = 252 कैलोरी
1 कैलोरी = 4.186 जूल
1 किलो कैलोरी = 4186 जूल
1 किलो कैलोरी = 1000 कैलोरी
ताप (Temperature)
⦿ ताप वह भौतिक कारक है, जो एक वस्तु से दूसरी वस्तु में ऊष्मीय ऊर्जा के प्रवाह की दिशा निश्चित करता है। अर्थात् जिस कारण से ऊर्जा स्थानान्तरण होती है, उसे ताप कहते हैं।
ताप मापन (Measurement of Temperature)
⦿ तापमापी (Thermometer): ताप मापने के लिए जो उपकरण प्रयोग में लाया जाता है, उसे तापमापी कहते हैं। निम्न प्रकार के ताप पैमाने प्रचलित हैं-
1. सेल्सियस पैमाना: इस पैमाने का आविष्कार स्वीडेन के वैज्ञानिक सेल्सियस ने किया था। इस पैमाने में हिमांक को 0°C व भाप-बिन्दु को 100°C अंकित किया जाता है तथा इनके बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में बाँट देते हैं। प्रत्येक भाग को 1°C कहते हैं।
2. फॉरनहाइट पैमाना: इसका आविष्कार जर्मन वैज्ञानिक फॉरेनहाइट ने किया। इसका हिमांक 32°F एवं भाप-बिन्दु 212°F है। इनके बीच की दूरी को 180 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है।
3. रोमर पैमाना: इसका हिमांक 0°R एवं भाप-बिन्दु 80°R है। इनके बीच का भाग 80 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है।
4. केल्विन पैमाना: इसमें हिमांक 273K एवं भाप-बिन्दु 373K है। इन दोनों बिन्दुओं के बीच की दूरी को समान 100 भागों में विभाजित कर दिया जाता है।
⦿ चारों पैमानों में सम्बन्ध-
`\frac{C-0}{100}` = `\frac{F-32}{180}` = `\frac{R-0}{80}` = `\frac{K-273}{100}`
⦿ परम शून्य (Absolute Zero): सिद्धान्त रूप से अधिकतम ताप की कोई सीमा नहीं है, परन्तु निम्नतम ताप की सीमा है। किसी भी वस्तु का ताप -273.15°C से कम नहीं हो सकता है। इसे परम शून्य ताप कहते हैं। केल्विन पैमाने पर 0K लिखते हैं। अर्थात् 0K = -273.15°C एवं 273.16K = 0°C ।
⦿ पहले सेल्सियस पैमाने को सेंटीग्रेड पैमाना कहा जाता था।
⦿ केल्विन में व्यक्त ताप में डिग्री ( ° ) नहीं लिखा जाता है।
⦿ पारा -39°C पर जमता है, अतः इससे निम्न ताप ज्ञात करने के लिए अल्कोहल तापमापी का प्रयोग किया जाता है। अल्कोहल -115°C पर जमता है।
⦿ द्रव तापमापी: पारा तापमापी लगभग -30°C से 350°C तक के ताप मापने के लिए प्रयुक्त होता है।
⦿ पारा (Mercury) थर्मामीटर का आविष्कार फॉरनहाइट ने किया।
⦿ गैस तापमापी: इस प्रकार के तापमापियों में स्थिर आयतन हाइड्रोजन गैस तापमापी से 500°C तक के ताप को मापा जा सकता है। हाइड्रोजन की जगह नाइट्रोजन गैस लेने पर 1500°C तक के ताप का मापन किया जा सकता है।
⦿ प्लेटनिम प्रतिरोध तापमापी: इसके द्वारा -200°C से 1200°C तक के ताप को मापा जाता है।
⦿ तापयुग्म तापमापी: इसका उपयोग -200°C से 1600°C तक के तापों के मापन के लिए किया जाता है।
पूर्ण विकिरण उत्तापमापी (Total Radiation Pyrometer)
⦿ इस तापमापी से दूर स्थित वस्तु के ताप को मापा जाता है; जैसे सूर्य का ताप। इसके द्वारा प्रायः 800°C से ऊँचे ताप ही मापे जाते हैं, इससे नीचे का ताप नहीं, क्योंकि इससे कम ताप की वस्तुएँ ऊष्मीय विकिरण उत्सर्जित नहीं करती हैं। यह तापमापी स्टीफेन के नियम पर आधारित है, जिसके अनुसार उच्च ताप पर किसी वस्तु से उत्सर्जित विकिरण की मात्रा इसके परमताप के चतुर्थ घात के अनुक्रमानुपाती होती है।
विशिष्ट ऊष्मा (Specific Heat)
⦿ किसी पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा, ऊष्मा की वह मात्रा है, जो उस पदार्थ के एकांक द्रव्यमान में एकांक ताप-वृद्धि उत्पन्न करती है। इसे प्रायः C द्वारा व्यक्त किया जाता है। विशिष्ट ऊष्मा का SI मात्रक (J `kg^{-1}K^{-1}`) होता है।
⦿ एक ग्राम जल का ताप 1°C बढ़ाने के लिए एक कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है। अतः जल की विशिष्ट ऊष्मा धारिता एक कैलोरी/ग्राम °C होता है। जल की विशिष्ट ऊष्माधारिता अन्य पदार्थों की तुलना में सबसे अधिक है।
⦿ कुछ पदार्थों की विशिष्ट ऊष्मा या विशिष्ट ऊष्मा धारिता ( J/kgK )- बर्फ ( 2,100 ) , पारा ( 140 ) , लेड ( 130 ) , लोहा ( 460 ) , केरोसीन तेल ( 210 ) , जल ( 4,200 )।
ऊष्मीय प्रसार (Thermal Expansion)
⦿ किसी वस्तु को गरम करने पर उसकी लम्बाई, क्षेत्रफल एवं आयतन में वृद्धि होती है। लम्बाई में वृद्धि की माप रेखीय प्रसार गुणांक (α), क्षेत्रफल में वृद्धि की माप क्षेत्रीय प्रसार गुणांक (β) तथा आयतन में वृद्धि को आयतन प्रसार गुणांक (𝛄) द्वारा व्यक्त किया जाता है।
⦿ α , β एवं 𝛄 में संबंध- α : β : 𝛄 : : 1: 2:3 or β = 2α तथा 𝛄 = 3α
⦿ जल का असामान्य प्रसार: प्रायः सभी द्रव गरम किये जाने पर आयतन में बढ़ते हैं, परन्तु जल 0°C से 4°C तक गरम करने पर आयतन में घटता है तथा 4°C के बाद गरम करने पर आयतन में बढ़ना शुरू कर देता है। इसका अर्थ यह है कि 4°C पर जल का घनत्व अधिकतम होता है।
⦿ ऊष्मा का संचरण: ऊष्मा का एक स्थान से दूसरे स्थान जाने को ऊष्मा का संचरण कहते हैं। इसकी तीन विधियाँ हैं— 1. चालन 2. संवहन और 3. विकिरण।
⦿ चालन (Conduction): चालन के द्वारा ऊष्मा पदार्थ में एक स्थान से दूसरे स्थान तक, पदार्थ के कणों को अपने स्थान का परिवर्तन किये बिना पहुँचती है। ठोस में ऊष्मा का संचरण चालन विधि द्वारा ही होता है।
⦿ संवहन (Convection): इस विधि में ऊष्मा का संचरण पदार्थ के कणों के स्थानान्तरण के द्वारा होता है। इस प्रकार पदार्थ के कणों के स्थानान्तरण से धाराएँ बहती हैं, जिन्हें संवहन धाराएँ कहते हैं। गैसों एवं द्रवों में ऊष्मा का संचरण संवहन द्वारा ही होता है। वायुमंडल संवहन विधि के द्वारा ही गरम होता है।
⦿ विकिरण (Radiation): इस विधि में ऊष्मा, गरम वस्तु से ठण्डी वस्तु की ओर बिना किसी माध्यम की सहायता के तथा बिना माध्यम को गरम किये प्रकाश की चाल से सीधी रेखा में संचरित होती है।
न्यूटन का शीतलन नियम (Newton's Law of Cooling)
⦿ समान अवस्था रहने पर विकिरण द्वारा किसी वस्तु के ठण्डे होने की दर वस्तु तथा उसके चारों ओर के माध्यम के तापान्तर के अनुक्रमानुपाती होती है। अतः वस्तु जैसे-जैसे ठण्डी होती जायेगी उसके ठण्डे होने की दर कम होती जायेगी।
किर्कहॉफ का नियम (Kirchhoff's Law)
⦿ इसके अनुसार अच्छे अवशोषक ही अच्छे उत्सर्जक होते हैं। अंधेरे कमरे में यदि एक काली और एक सफेद वस्तु को समान ताप पर गरम करके रखा जाए तो काली वस्तु अधिक विकिरण उत्सर्जित करेगी। अतः काली वस्तु अंधेरे में अधिक चमकेगी।
स्टीफेन का नियम (Stephen's Law)
⦿ किसी वस्तु की उत्सर्जन क्षमता E उसके परम ताप T के चौथे घात के अनुक्रमानुपाती होती है। अर्थात्— E ∝ `T^{4}` या, E = σ`T^{4}` जहाँ σ एक नियतांक है, जिसे स्टीफेन नियतांक कहते हैं।
अवस्था परिवर्तन तथा गुप्त ऊष्मा (Change in State and Latent Heat)
⦿ निश्चित ताप पर पदार्थ का एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तित होना अवस्था परिवर्तन कहलाता है। अवस्था परिवर्तन में पदार्थ का ताप नहीं बदलता है।
⦿ त्रिकू बिन्दु: वह बिन्दु जिस पर तीनों अवस्थाएँ ठोस, तरल एवं गैस तीनों एक साथ पायी जाती हैं।
⦿ गलनांक: निश्चित ताप पर ठोस का द्रव में बदलना गलन कहलाता है तथा इस निश्चित ताप को ठोस का गलनांक कहते हैं।
⦿ हिमांक: निश्चित ताप पर द्रव का ठोस में बदलना हिमीकरण कहलाता है तथा इस निश्चित ताप को द्रव का हिमांक कहते हैं।
⦿ प्रायः गलनांक एवं हिमांक बराबर होते हैं।
⦿ जो पदार्थ ठोस से द्रव में बदलने पर सिकुड़ते हैं (जैसे— बर्फ), उनका गलनांक दाब बढ़ाने पर घटता तथा जो पदार्थ ठोस से द्रव में बदलने पर फैलते हैं, उनका गलनांक दाब बढ़ाने पर बढ़ता है।
⦿ अशुद्धि मिलाने से (जैसे बर्फ में नमक मिलाने से) गलनांक घटता है।
⦿ क्वथनांक (Boiling Point): निश्चित ताप पर द्रव का वाष्प में बदलना वाष्पन कहलाता है तथा इस निश्चित ताप को द्रव का क्वथनांक कहते हैं।
⦿ संघनन: निश्चित ताप पर वाष्प का द्रव में बदलना संघनन कहलाता है।
⦿ प्रायः क्वथनांक एवं संघनन ताप समान होता है।
⦿ दाब बढ़ाने पर क्वथनांक बढ़ता है और दाब घटने पर क्वथनांक घट जाता है।
⦿ प्रेशर कुकर में दाब बढ़ने पर जल का क्वथनांक बढ़ जाता है, जिससे जल की गुप्त ऊष्मा का मान बढ़ जाता है, फलस्वरूप खाना जल्दी पक जाता है। इसके विपरीत पहाड़ों पर दाब कम होने के कारण क्वथनांक घट (100°C से कम) जाता है इसीलिए खाना देरी से पकता है।
⦿ अशुद्धि मिलाने से भी द्रव का क्वथनांक बढ़ता है।
⦿ गुप्त ऊष्मा (Latent Heat): नियत ताप पर पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन के लिए ऊष्मा की आवश्यकता होती है। इसे ही पदार्थ की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।
⦿ गलन की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Fusion): नियत ताप पर ठोस के एकांक द्रव्यमान को द्रव में बदलने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को ठोस की गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। बर्फ के लिए गलन की गुप्त ऊष्मा का मान 80 कैलोरी/ग्राम है।
⦿ वाष्पन की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Vaporisation): नियत ताप पर द्रव के एकांक द्रव्यमान को वाष्प में बदलने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को द्रव की वाष्पन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। जल के लिए वाष्पन गुप्त ऊष्मा का मान 540 कैलोरी/ग्राम है।
⦿ यदि पदार्थ की गुप्त ऊष्मा L है, तो पदार्थ के m द्रव्यमान की अवस्था परिवर्तन के लिए आवश्यक ऊष्मा Q = mL होगी।
⦿ गुप्त ऊष्मा का SI मात्रक जूल/किग्रा है।
⦿ उबलते जल की अपेक्षा भाप से जलने पर अधिक कष्ट होता है, क्योंकि जल की अपेक्षा भाप की गुप्त ऊष्मा अधिक होती है।
⦿ 0°C पर पिघलती बर्फ में कुछ नमक, शोरा मिलाने से बर्फ का गलनांक 0°C से घटकर -22°C तक कम हो जाता है, ऐसे मिश्रण को हिम-मिश्रण (Freezing-mixture) कहते हैं। इस मिश्रण का उपयोग कुल्फी, आइसक्रीम आदि बनाने में किया जाता है।
⦿ वाष्पीकरण (Evaporation): द्रव के खुली सतह से प्रत्येक ताप पर धीरे-धीरे द्रव का अपने वाष्प में बदलना वाष्पीकरण कहलाता है, अथवा किसी द्रव का उसके क्वथनांक से पूर्व उसके वाष्प में बदलने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।
⦿ प्रशीतक (Refrigerator): प्रशीतक में वाष्पीकरण द्वारा ठण्डक (cooling)उत्पन्न की जाती है। ताँबे की एक वाष्प कुण्डली में द्रव फ्रीऑन भरा रहता है, जो वाष्पीकृत होकर ठण्डक उत्पन्न करता है।
⦿ आपेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity): किसी दिये हुए ताप पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा तथा उसी ताप पर, उसी आयतन की वायु को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जलवाष्प की मात्रा के अनुपात को 'आपेक्षिक आर्द्रता' कहते हैं। इस अनुपात को 100 से गुना करते हैं, क्योंकि आपेक्षिक आर्द्रता को प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
⦿ आपेक्षिक आर्द्रता मापने के लिए हाइग्रोमीटर (Hygrometer) नामक यंत्र का इस्तेमाल करते हैं।
⦿ नियत जलवाष्प पर ताप बढ़ने पर आपेक्षिक आर्द्रता (R.H.) घट जाती है।
⦿ वातानुकूलन (Air Conditioning): सामान्यतः मनुष्य के स्वास्थ्य व अनुकूल जलवायु के लिए निम्न परिस्थितियाँ होनी चाहिए- 1. ताप: 23°C से 25°C, 2. आपेक्षिक आर्द्रता: 60% से 65% के बीच, 3. वायु की गति: 0.75 मीटर/मिनट से 2.5 मीटर/मिनट तक।
ऊष्मागतिकी (Thermodynamic)
⦿ ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम: ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम मुख्यतः ऊर्जा संरक्षण को प्रदर्शित करता है। इस नियम के अनुसार किसी निकाय को दी जाने वाली ऊष्मा दो प्रकार के कार्यों में व्यय होती है— 1. निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि करने में, जिससे निकाय का ताप बढ़ता है। 2. बाह्य कार्य करने में।
⦿ समतापी प्रक्रम (Isothermal Process): जब किसी निकाय में कोई परिवर्तन इस प्रकार हो कि निकाय का ताप पूरी क्रिया में स्थिर रहे, तो उस परिवर्तन को समतापी परिवर्तन कहते हैं।
⦿ रुद्धोष्म प्रक्रम (Adiabatic Process): यदि किसी निकाय में कोई परिवर्तन इस प्रकार हो कि पूरी प्रक्रिया के दौरान निकाय न तो बाहरी माध्यम को ऊष्मा दे और न ही उससे कोई ऊष्मा ले तो इस परिवर्तन को रुद्धोष्म परिवर्तन कहते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड का अचानक प्रसार होने पर वह शुष्क बर्फ के रूप में बदल जाती है, यह रुद्धोष्म परिवर्तन का उदाहरण है।
⦿ ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम: ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ऊष्मा के प्रवाहित होने की दिशा नहीं बताता। ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम ऊष्मा के प्रवाहित होने की दिशा को व्यक्त करता है। इस नियम को दो कथनों के रूप में व्यक्त किया जाता है, जो निम्न हैं-1. केल्विन के कथन के अनुसार, “ऊष्मा का पूर्णतया कार्य में परिवर्तन असंभव है।" 2. क्लासियस के कथन के अनुसार, “ऊष्मा अपने कम ताप की वस्तु से अधिक ताप की वस्तु की ओर प्रवाहित नहीं हो सकती है।"
यह भी देखें
LATEST JOB श्रोत- अमर उजाला अखबार | |
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