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Radiosakriyata, Radioactivity, रेडियोसक्रियता
Radioactivity

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⦿ रेडियोसक्रियता की खोज फ्रेंच वैज्ञानिक हेनरी बेकरल, पी. क्यूरी एवं एम. क्यूरी ने किया था। इस खोज के लिए इन तीनों को संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार मिला।

⦿ जिन नाभिकों में प्रोटॉन की संख्या 83 या उससे अधिक होती है, वे अस्थायी होते हैं। स्थायित्व प्राप्त करने के लिए ये नाभिक स्वतः ही अल्फा (α), बीटा (β) एवं गामा (𝛾) किरणें उत्सर्जित करने लगती हैं। ऐसे नाभिक जिन तत्वों के परमाणुओं में होते हैं, उन्हें रेडियो एक्टिव तत्व कहते हैं तथा किरणों की उत्सर्जन की घटना को रेडियो सक्रियता कहते हैं।

⦿ गामा किरणें (𝛾), अल्फा व बीटा किरणों के बाद ही उत्सर्जित होती हैं।

⦿ राबर्ट पियरे एवं उनकी पत्नी मैडम क्यूरी ने नए रेडियो एक्टिव तत्व रेडियम की खोज की।

⦿ रेडियो सक्रियता के दौरान निकलने वाली किरणों की पहचान सर्वप्रथम 1902 ई. में रदरफोर्ड नामक वैज्ञानिक ने की।

⦿ सभी प्राकृतिक रेडियो सक्रिय तत्व α, β एवं 𝛾 किरणों के उत्सर्जन के बाद अन्ततः सीसा में बदल जाते हैं।

α, β एवं 𝛾 किरणों के गुण

गुण α β 𝛾
उत्पत्ति (origin) नाभिक से नाभिक से नाभिक से
प्रकृति (nature) धनात्मक ऋणात्मक उदासीन
रचना `"_{2}He^{4}` `"_{1}e^{0}` फोटॉन
द्रव्यमान `6.6×10^{-27}`kg `9.1×10^{-31}`kg शून्य
आवेश +2e `-1.6×10^{-19}`kg शून्य
फोटो-ग्राफिक प्लेट पर प्रभाव
विद्युतीय व चुम्ब्कीय क्षेत्र का प्रभाव

⦿ सबसे अधिक वेधन क्षमता 𝛾-किरण (गामा किरण) की होती है।

⦿ सबसे अधिक आयनन क्षमता α-किरण (अल्फा किरण) की होती है।

⦿ एक α-किरण के निकलने से परमाणु संख्या में दो इकाई तथा द्रव्यमान संख्या में चार इकाई की कमी होती है।

⦿ एक β-किरण के निकलने से परमाणु-संख्या में एक इकाई की वृद्धि होती है, तथा द्रव्यमान संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

⦿ α, β और 𝛾 किरणों के निकलने से परमाणु संख्या और द्रव्यमान संख्या पर पड़ने वाले प्रभाव को वर्ग विस्थापन नियम या सोडी फॉजन नियम कहा जाता है।

⦿ रेडियो सक्रियता की माप “जी. एम. काउंटर" से की जाती है।

⦿ जितने समय में किसी रेडियो सक्रिय तत्व के परमाणुओं की संख्या आधी हो जाय, वह समय उस तत्त्व का अर्द्ध जीवन काल कहलाता है। इसे प्रायः H.L. या `t_{\frac{1}{2}}` से सूचित किया जाता है।

⦿ अभ्रकोष्ठ (Cloud chamber): इसका उपयोग रेडियो एक्टिव कणों की उपस्थिति का पता लगाने, उनकी ऊर्जा को मापने आदि के लिए किया जाता है। इसका आविष्कार सी. आर. टी. विल्सन ने किया था।

⦿ जीवाश्म मृत पेड़-पौधे आदि की आयु का अंकन कार्बन-14 के द्वारा किया जाता है। इस विधि में जीवाश्म या मृत पेड़-पौधों में प्राप्त कार्बन के दो समस्थानिक `"_{6}C^{12}`  व `"_{6}C^{14}` का अनुपात ज्ञात करके आयु का निर्धारण किया जाता है।

⦿ द्रव्यमान-ऊर्जा संबंध (Mass-Energy Relation): 1905 ई. में आइन्स्टीन ने द्रव्यमान एवं ऊर्जा के बीच एक संबंध स्थापित किया जिसे आपेक्षिकता का सिद्धान्त (Theory of Relativity) कहा जाता है। इसके अनुसार द्रव्यमान एवं ऊर्जा एक-दूसरे से स्वतंत्र नहीं हैं, बल्कि दोनों एक-दूसरे से संबंधित हैं तथा प्रत्येक पदार्थ में उसके द्रव्यमान के कारण ऊर्जा भी होती है। यदि किसी वस्तु का द्रव्यमान m एवं प्रकाश का वेग c है, तो इस द्रव्यमान से सम्बद्ध ऊर्जा, `E=mc^{2}` होती है।

⦿ आइन्स्टीन जर्मनी में जन्में अमेरिकी वैज्ञानिक थे जिन्हें 1921 ई. का भौतिकी में नोबल पुरस्कार मिला।

⦿ सूर्य से पृथ्वी को लगातार ऊर्जा ऊष्मा के रूप में प्राप्त हो रही है, जिसके फलस्वरूप सूर्य का द्रव्यमान लगातार घटता जा रहा है। आँकड़ों के अनुसार सूर्य से पृथ्वी को प्रति सेकण्ड `4×10^{26}` जूल ऊर्जा प्राप्त हो रही है, जिसके फलस्वरूप इसका द्रव्यमान लगभग `4×10^{9}` kg प्रति सेकण्ड की दर से घट रहा है। परन्तु सूर्य का द्रव्यमान इतना अधिक है कि वह लगातार एक हजार करोड़ वर्षों तक इसी दर से ऊर्जा देता रहेगा।

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