प्रकाश
नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप प्रकाश की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Prakash in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है इसलिए आज हम Prakash विषय के बारे में बात करेंगे। निचे Light की जानकारी निम्नवत है।
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Light |
⦿ प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है, जो विद्युत् चुम्बकीय तरंगों के रूप में संचारित होती है। इसका ज्ञान हमें आँखों द्वारा प्राप्त होता है। इसका तरंगदैर्घ्य 3,900 Å से 7,800 Å के बीच होता है।
⦿ सन् 1637 में दकार्ते ने प्रकाश के कणिका मॉडल को प्रस्तुत किया तथा स्नेल के नियम को व्युत्पन्न किया।
⦿ सन् 1678 में डच भौतिकविद् क्रिस्टियान हाइगेंस ने प्रकाश के तरंग सिद्धान्त को प्रस्तुत किया। जब टामस यंग ने सन् 1801 में अपना व्यतिकरण संबंधी प्रसिद्ध प्रयोग किया तब यह निश्चित रूप से प्रमाणित हो गया कि वास्तव में प्रकाश की प्रकृति तरंगवत् है।
⦿ सन् 1850 में फूको द्वारा किए प्रयोग द्वारा यह दर्शाया गया कि जल में प्रकाश की चाल वायु में प्रकाश की चाल से कम है इस प्रकार तरंग मॉडल की प्रागुक्ति (Prediction of the wave model) की पुष्टि हो गई।
⦿ प्रकाश तरंगें निर्वात में कैसे संचरित हो सकती हैं, इसकी व्याख्या जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (स्कॉटलैंड) द्वारा प्रकाश संबंधी प्रसिद्ध वैद्युत चुम्बकीय सिद्धान्त प्रस्तुत करने पर हो पाई। मैक्सवेल के अनुसार प्रकाश तरंगें परिवर्तनशील विद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों से संबद्ध है। परिवर्तनशील विद्युत क्षेत्र समय तथा दिक् स्थान (आकाश) में परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है तथा परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र समय तथा दिक्स्थान में परिवर्तनशील विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है। परिवर्तनशील विद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्र निर्वात् में भी वैद्युत चुंबकीय तरंगों (प्रकाश तरंगों) का संचरण कर सकते हैं।
⦿ प्रकाश का विद्युत् चुम्बकीय तरंग-सिद्धान्त प्रकाश के केवल कुछ गुणों की व्याख्या कर पाता है जैसे— प्रकाश का परावर्तन, प्रकाश का अपवर्तन, प्रकाश का सीधी रेखा में गमन, प्रकाश का विवर्तन, प्रकाश का व्यतिकरण एवं प्रकाश का ध्रुवण।
⦿ विद्युत् चुम्बकीय तरंग अनुप्रस्थ होती है। अतः प्रकाश भी अनुप्रस्थ तरंग है। प्रकाश का ध्रुवण सिद्ध करता है कि प्रकाश तरंगे अनुप्रस्थ होती है।
⦿ प्रकाश के कुछ गुण ऐसे हैं जिनकी व्याख्या तरंग-सिद्धान्त नहीं कर पाता है जैसे— प्रकाश-विद्युत् प्रभाव तथा क्रॉम्प्टन-सिद्धान्त।
⦿ प्रकाश-विद्युत् प्रभाव एवं क्रॉम्प्टन सिद्धान्त की व्याख्या आइन्स्टीन द्वारा प्रतिपादित प्रकाश के फोटॉन सिद्धान्त द्वारा की जाती है। वास्तव में यह दोनों प्रभाव प्रकाश की कण प्रकृति को प्रकट करते हैं।
⦿ प्रकाश का फोटॉन सिद्धान्त: इसके अनुसार प्रकाश ऊर्जा के छोटे छोटे बण्डलों या पैकिटों के रूप में चलता है, जिन्हें फोटॉन कहते हैं।
⦿ आज प्रकाश को कुछ घटनाओं में तरंग और कुछ में कण माना जाता है। इसी को प्रकाश की दोहरी प्रकृति कहते हैं।
⦿ प्रकाश के वेग की गणना सबसे पहले रोमर ने की थी।
⦿ वायु व निर्वात में प्रकाश की चाल सबसे अधिक 3 x `10^{8}` m/s होती है।
⦿ प्रकाश की चाल माध्यम के अपवर्तनांक (μ) पर निर्भर करता है। जिस माध्यम का अपवर्तनांक जितना अधिक होता है, उसमें प्रकाश की चाल उतनी ही कम होती है। u = `\frac{c}{μ}` जहाँ μ माध्यम में प्रकाश की चाल तथा c निर्वात में प्रकाश की चाल है।
⦿ प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक आने में औसतन 8 मिनट 16.6 सेकण्ड का समय लगता है।
⦿ चन्द्रमा से परावर्तित प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 1.28 सेकेण्ड का समय लगता है।
⦿ विभिन्न माध्यमों में प्रकाश की चाल- निर्वात (3x`10^{8}`m/s), कांच (2x`10^{8}`m/s), तारपीन तेल (2.04x`10^{8}`m/s), जल (2.25x`10^{8}`m/s), रॉक साल्ट (1.9x`10^{8}`m/s), नाइलॉन (1.9x`10^{8}`m/s) होती है।
प्रकाश के प्रति व्यवहार के आधार पर वस्तुओं को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है
1. प्रदीप्त वस्तुएँ (Luminous bodies): वे वस्तुएँ जो स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित होती हैं जैसे— सूर्य, विद्युत बल्ब आदि।
2. अप्रदीप्त वस्तुएँ (Nonluminous bodies): वे वस्तुएँ जिनका अपना स्वयं का प्रकाश नहीं होता लेकिन उनपर प्रकाश डालने पर वे दिखाई देने लगती हैं जैसे- मेज, कुर्सी आदि।
3. पारदर्शक वस्तुएँ (Transparent bodies): वे वस्तुएँ जिनमें से होकर प्रकाश की किरणें निकल जाती हैं। जैसे—काँच, जल आदि।
4. अर्द्धपारदर्शक वस्तुएँ (Translucent bodies): कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन पर प्रकाश की किरणें पड़ने से उनका कुछ भाग तो अवशोषित हो जाता है, तथा कुछ भाग बाहर निकल जाता है, ऐसी वस्तुओं को अर्द्धपारदर्शक वस्तुएँ कहते हैं जैसे- तेल लगा हुआ कागज।
5. अपारदर्शक वस्तुएँ (Opaque bodies): अपारदर्शक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनमें होकर प्रकाश की किरणें बाहर नहीं निकल पातीं जैसे— धातु।
प्रकाश का विवर्तन (Diffraction of Light)
प्रकाश को अवरोध के किनारों पर थोड़ा मुड़कर उसकी छाया में प्रवेश करने की घटना को विवर्तन कहते हैं।
प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light)
जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमें धूल तथा अन्य पदार्थों के अत्यन्त सूक्ष्म कण होते हैं, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है, इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहा जाता है। बैंगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक तथा लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है। आकाश का रंग नीला प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है।
प्रकाश का परावर्तन (Reflection of Light)
प्रकाश के चिकने पृष्ठ से टकराकर वापस लौटने की घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं। परावर्तन के दो नियम हैं-
1. आपतित किरण, आपतन बिन्दु पर अभिलंब व परावर्तित किरण एक ही तल में होते हैं।
2. आपतन कोण परावर्तन कोण के बराबर होता है।
समतल दर्पण (Plane Mirror) से परावर्तन
⦿ समतल दर्पण किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे उतनी दूरी पर बनता है, जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने रखी होती है। यह प्रतिबिम्ब काल्पनिक, वस्तु के बराबर एवं पार्श्व उल्टा (Lateral Inverse) होता है।
⦿ यदि कोई व्यक्ति ሀ चाल से दर्पण की ओर चलता है, तो उसे दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब 2ሀ चाल से अपनी ओर आता हुआ प्रतीत होगा।
⦿ यदि आपतित किरण को नियत रखते हुए दर्पण को θ° कोण से घुमा दिया जाए तो परावर्तित किरण 2θ° से घूम जाती है।
⦿ समतल दर्पण में वस्तु का पूर्ण प्रतिबिम्ब देखने के लिए दर्पण की लम्बाई वस्तु की लम्बाई की कम-से-कम आधी होनी चाहिए।
⦿ यदि दो समतल दर्पण θ° कोण पर झुके हों तो उनके बीच रखी वस्तु के प्रतिबिम्बों की संख्या की गणना निम्न प्रकार से की जाती है-
1. यदि `\frac{360}{θ}` एक सम संख्या आए तो प्रतिबिंबों की संख्या वस्तु की सभी स्थितियों के लिए n = `\frac{360}{θ}`-1 होगी। जैसे- 90° पर झुके दो समतल दर्पणों के बीच `\frac{360°}{90°}`-1 = 4-1 = 3 प्रतिबिम्ब बनेंगे।
2. यदि `\frac{360}{θ}` एक विषम संख्या हो तो प्रतिबिम्बों की संख्या n = `\frac{360}{θ}` होगी, यदि वस्तु दोनों दर्पणों के बीच के कोण के समद्विभाजक पर नहीं हो। जैसे— 40° कोण पर झुके दो समतल दर्पणों के बीच `\frac{360°}{40°}` = 9 प्रतिबिम्ब बनेंगे।
3. यदि `\frac{360}{θ}` एक विषम संख्या हो व वस्तु दोनों दर्पणों के बीच के कोण के समद्विभाजक पर रखी हो तो प्रतिबिंबों की संख्या n = `\frac{360}{θ}`-1 होगी। जैसे- 40° कोण पर झुके दो समतल दर्पणों के बीच 20° पर कोई वस्तु रखी है तो प्रतिबिम्ब की संख्या `\frac{360°}{40°}`-1 = 8 होगी।
4. यदि `\frac{360}{θ}` एक भिन्न संख्या हो तो प्रतिबिंबों की संख्या उसके पूर्णांक के बराबर होगी।
गोलीय दर्पण से परावर्तन (Reflection from Spherical mirror)
⦿ गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं— 1. अवतल दर्पण 2. उत्तल दर्पण।
⦿ अवतल दर्पण का उपयोग: 1. बड़ी फोकस दूरी वाला अवतल दर्पण दाढ़ी बनाने में काम आता है। 2. आँख, कान एवं नाक और दाँत के डॉक्टर के द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला दर्पण 3. गाड़ी के हेड लाइट एवं सर्चलाइट में 4. सोलर कुकर में।
अवतल दर्पण में बने प्रतिबिम्ब की स्थिति एवं प्रकृति
वस्तु की स्थिति | प्रतिबिम्ब की स्थिति | वस्तु की तुलना में प्रतिबिम्ब का आकार | प्रतिबिम्ब की प्रकृति |
---|---|---|---|
अनन्त पर | फोकस पर | बहुत छोटा (बिन्दु मात्र) | उल्टा व वास्तविक |
वक्रता केन्द्र व अनन्त के बीच | फोकस व वक्रता केन्द्र के बीच | छोटा | उल्टा व वास्तविक |
वक्रता केन्द्र पर | वक्रता केन्द्र पर | समान आकार का | उल्टा व वास्तविक |
फोकस तथा वक्रता केन्द्र के बीच | वक्रता केन्द्र एवं अनन्त के बीच | बड़ा | उल्टा व वास्तविक |
फोकस पर | अनन्त पर | बहुत बड़ा | उल्टा व वास्तविक |
फोकस तथा ध्रुव के बीच | दर्पण के पीछे | बड़ा | सीधा व आभासी |
⦿ उत्तल दर्पण से बने प्रतिबिम्ब: उत्तल दर्पण में प्रत्येक दशा में प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे, उसके ध्रुव और फोकस के बीच वस्तु से छोटा, सीधा एवं आभासी बनता है।
⦿ उत्तल दर्पण का उपयोग: 1. इसका उपयोग गाड़ी में चालक की सीट के पास पीछे के दृश्य को देखने में किया जाता है (side mirror रूप में), 2. सोडियम परावर्तक लैम्प में।
प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light)
जब प्रकाश की किरणें एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में प्रवेश करती हैं, तो दोनों माध्यमों को अलग करने वाले तल पर अभिलम्बवत् आपाती होने पर बिना मुड़े सीधे निकल जाती हैं, परन्तु तिरछी आपाती होने पर वे अपनी मूल दिशा से विचलित हो जाती हैं। इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं। जब प्रकाश की कोई किरण विरल माध्यम (rarer medium) से सघन माध्यम (densor medium) (जैसे हवा से पानी) में प्रवेश करती है, तो वह दोनों माध्यमों के पृष्ठ पर खींचे गये अभिलंब की ओर झुक जाती है तथा जब किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है, तो वह अभिलंब से दूर हट जाती है, लेकिन जो किरण अभिलंब के समांतर प्रवेश करती है, उनके पथ में कोई परिवर्तन नहीं होता।
अपवर्तन के नियम
1. आपतित किरण, अभिलंब तथा अपवर्तित किरण तीनों एक ही समतल में स्थित होते हैं।
2. किन्हीं दो माध्यमों के लिए आपतन कोण के ज्या (sine) तथा अपवर्तन कोण के ज्या (sine) का अनुपात एक नियतांक होता है। नियतांक को पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अवर्तनांक कहते हैं। इस नियम को स्नेल का नियम भी कहते हैं।
अर्थात = `\frac{sin i}{sin r}`= μ (नियतांक)
⦿ किसी माध्यम का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रंग के प्रकाश के लिए भिन्न-भिन्न होता है। तरंगदैर्घ्य बढ़ने के साथ अपवर्तनांक का मान कम हो जाता है। अतः लाल रंग का अपवर्तनांक सबसे कम तथा बैंगनी रंग का अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है।
⦿ ताप बढ़ने पर भी सामान्यतः अपवर्तनांक घटता है। लेकिन यह परिवर्तन बहुत ही कम होता है।
⦿ किसी माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक निर्वात में प्रकाश की चाल तथा उस माध्यम में प्रकाश की चाल के अनुपात के बराबर होता है। अर्थात्-
निरपेक्ष अपवर्तनांक (μ) = निर्वात में प्रकाश की चाल/माध्यम में प्रकाश की चाल
प्रकाश के अपवर्तन के कारण घटने वाली घटनाएँ
1. द्रव में अंशतः डूबी हुई सीधी छड़ टेढ़ी दिखाई पड़ती है।
2. तारे टिमटिमाते हुए दिखाई पड़ते हैं।
3. सूर्योदय के पहले एवं सूर्यास्त के बाद भी सूर्य दिखाई देता है।
4. पानी से भरे किसी बर्तन की तली में पड़ा हुआ सिक्का ऊपर उठा हुआ दिखाई पड़ता है।
5. जल के अन्दर पड़ी हुई मछली वास्तविक गहराई से कुछ ऊपर उठी हुई दिखाई पड़ती है।
प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (Total Internal Reflection of Light)
⦿ क्रान्तिक कोण (Critical Angle): क्रान्तिक कोण सघन माध्यम में बना वह आपतन कोण होता है, जिसके लिए विरल माध्यम में अपवर्तन कोण का मान 90° होता है।
⦿ आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से थोड़ा-सा अधिक कर दें तो प्रकाश विरल माध्यम में बिल्कुल ही नहीं जाता, बल्कि सम्पूर्ण प्रकाश परावर्तित होकर सघन माध्यम में ही लौट आता है। इस घटना को प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते हैं। इसमें प्रकाश का अपवर्तन बिल्कुल नहीं होता, सम्पूर्ण आपतित प्रकाश परावर्तित हो जाता है। किसी पृष्ठ के जिस भाग से पूर्ण आन्तरिक परावर्तन होता है, वह चमकने लगता है।
⦿ प्रकाश के पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के लिए निम्न दो शर्तों का पूरा होना अनिवार्य है— 1. प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जा रही हो। 2. आपतन कोण क्रांतिक कोण से बड़ा हो।
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के उदाहरण हैं
1. हीरा का चमकना
2. रेगिस्तान में मरीचिका (Mirage) का बनना
3. जल में पड़ी परखनली का चमकना
4. काँच में आई दरार का चमकना
प्रकाशिक तन्तु (Optical Fibres )
प्रकाश सरल रेखा में गमन करता है, लेकिन पूर्ण आन्तरिक परावर्तन का उपयोग करके प्रकाश को एक वक्रीय मार्ग में चलाया जा सकता है। प्रकाशिक तन्तु, पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के सिद्धान्त पर आधारित एक ऐसी युक्ति है, जिसके द्वारा प्रकाश सिग्नल को, इसकी तीव्रता में बिना क्षय के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानान्तरित किया जा सकता है; चाहे मार्ग कितना भी टेढ़ा-मेढ़ा हो।
प्रकाशित तन्तु का उपयोग
1. प्रकाश सिग्नलों के दूर संचार में
2. विद्युत् सिग्नल को प्रकाश सिग्नल में बदलकर प्रेषित करने में तथा अभिग्रहण करने में
3. मनुष्य के शरीर के आन्तरिक भागों का परीक्षण करने में
4. शरीर के अन्दर लेसर किरणों को भेजने में
लेन्स द्वारा प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light Through lens)
⦿ सामान्यतः दो गोलीय पृष्ठों से घिरे हुए किसी अपवर्तक माध्यम को लेन्स कहा जाता है। प्रायः लेन्स दो प्रकार के होते हैं-1. उत्तल लेन्स (convex lens) 2. अवतल लेन्स (concave lens)।
⦿ लेंसों से सम्बंधित कुछ पारिभाषिक शब्द चित्रानुसार -
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convex lens,concave lens |
उत्तल लेंस द्वारा वस्तु की विभिन्न स्थितियों के लिए बने प्रतिबिम्ब
वस्तु की स्थिति | प्रतिबिम्ब की स्थिति | प्रतिबिम्ब की प्रकृति एवं वस्तु की तुलना में आकर |
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अनन्त पर | `F_{2}` पर | वास्तविक, बहुत छोटा एवं उल्टा |
`C_{1}` से परे | `F_{2}` एवं `C_{2}` के बीच | वास्तविक, छोटा तथा उल्टा |
`C_{1}` पर | `C_{2}` पर | वास्तविक, बराबर, उल्टा |
`C_{1}` एवं `F_{1}` के बीच | `C_{2}` से परे | वास्तविक, बड़ा, उल्टा |
`F_{1}` पर | अनन्त पर | वास्तविक, बहुत बड़ा, उल्टा |
O तथा `F_{1}` के बीच | लेंस की उसी ओर जिस ओर वस्तु है | आभासी, सीधा तथा आवर्धित |
⦿ अवतल लेन्स में प्रतिबिम्ब `F_{2}` एवं प्रकाशिक केन्द्र (O) के बीच बनता है, यह प्रतिबिम्ब सीधा तथा आभासी एवं वस्तु से छोटा होता है चाहे वस्तु कहीं भी रखी जाए।
⦿ लेन्स की क्षमता (Power of lens): लेन्स की फोकस दूरी के व्युत्क्रम (reciprocal) को लेन्स की क्षमता कहते हैं। यदि किसी लेन्स की फोकस दूरी f मी. में हो, तो उसकी क्षमता P = `\frac{1}{f}` डॉयोप्टर होती है। डॉयोप्टर S.I. मात्रक है, जिसे D द्वारा सूचित किया जाता है।
⦿ उत्तल लेन्स की क्षमता धनात्मक एवं अवतल लेन्स की क्षमता ऋणात्मक होती है।
⦿ यदि दो लेन्सों को परस्पर सटाकर रख दें, तो उनकी क्षमताएँ जुड़ जाती हैं तथा संयुक्त लेन्स की क्षमता दोनों लेन्सों की क्षमताओं के योग के बराबर होती है।
⦿ लेंस की क्षमता में परिवर्तन: लेंस को किसी द्रव में डुबाने पर उसकी फोकस दूरी व क्षमता दोनों बदल जाती है। यह लेंस एवं द्रव के अपवर्तनांक पर निर्भर करता है। मान लिया कि μ अपवर्तनांक वाले लेंस को μ' अपवर्तनांक वाले द्रव में डुबाया जाता है तो निम्न तीन स्थितियाँ उत्पन्न होंगी-
1. μ > μ' अर्थात् जब लेंस को ऐसे द्रव में डुबाया जाता है जिसका अपवर्तनांक लेंस के पदार्थ के अपवर्तनांक से कम है। ऐसी स्थिति में लेंस की क्षमता घट जाती है, अर्थात् उसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है। लेंस की प्रकृति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उदाहरण के लिए कांच (μ = 1.5) के लेंस को पानी (μ' = 1.33) में डुबाने पर।
2. μ = μ' अर्थात् जब लेंस को समान अपवर्तनांक वाले द्रव में डुबाते हैं। ऐसी स्थिति में लेंस की फोकस दूरी अनंत हो जाती है, जिससे उसकी क्षमता समाप्त हो जाती है। वह एक समतल प्लेट की भांति व्यवहार करता है। ऐसे द्रव में लेंस को डुबाने पर लेंस दिखाई नहीं देता है।
3. μ < μ' अर्थात् जब लेंस को ऐसे द्रव में डुबाया जाता है, जिसका अपवर्तनांक लेंस के अपवर्तनांक से अधिक है। ऐसी स्थिति में फोकस दूरी बढ़ जाती है, जिससे उसकी क्षमता घट जाती है। इसके साथ साथ लेंस की प्रकृति भी बदल जाती है, अर्थात् उत्तल लेंस, अवतल लेंस की भांति और अवतल लेंस, उत्तल लेंस की भांति व्यवहार करने लगता है। उदाहरण के लिए पानी के अन्दर हवा का बुलबुला उत्तल लेंस के समान दिखाई देता है, परन्तु व्यवहार अवतल लेंस के समान करता है। कांच (μ = 1.5) के लेंस को कार्बन डाइसल्फाइड (u' = 1.68) में डुबाने पर भी उत्तल लेंस, अवतल लेंस के समान तथा अवतल लेंस, उत्तल लेंस के समान व्यवहार करता है।
प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion of Light)
⦿ जब सूर्य का प्रकाश प्रिज्म से होकर गुजरता है, तो वह अपवर्तन के पश्चात् प्रिज्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ विभिन्न रंगों के प्रकाश में बँट जाता है।
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dispersion of light |
⦿ इस प्रकार से प्राप्त रंगों के समूह को वर्णक्रम (spectrum) कहते हैं तथा श्वेत प्रकाश को अपने अवयवी रंगों में विभक्त होने की क्रिया को वर्ण-विक्षेपण कहते हैं। प्रकाश के वर्ण विक्षेपण की घटना के कारण कोची (Cauchy) ने एक मूलानुपाती सूत्र प्राप्त किया जो कोची का समीकरण (Cauchy's Equation) μ = A+`\frac{B}{λ^{2}}` कहलाता है। इस समीकरण से स्पष्ट है कि किसी माध्यम के पदार्थ का अपवर्तनांक आपतित प्रकाश की किरण के तरंगदैर्ध्य (रंग) पर निर्भर करता है, अर्थात् μ∝`\frac{1}{λ^{2}}` होता है। प्रकाश के विभिन्न रंगों की तरंगदैर्ध्य भिन्न-भिन्न होती है । प्रकाश के लाल रंग की तरंगदैर्ध्य अधिकतम (Maximum) एवं बैंगनी रंग की तरंगदैर्घ्य न्यूनतम (Minimum) होती है। अर्थात् `λ_{r}`>`λ_{v}` होती है। अतः प्रकाश के लाल रंग का अपवर्तनांक बैंगनी रंग के अपवर्तनांक से कम होता है। अर्थात् `μ_{r}`<`μ_{v}` होता है। अतः सूर्य के प्रकाश से प्राप्त रंगों में बैंगनी रंग का विक्षेपण सबसे अधिक एवं लाल रंग का विक्षेपण सबसे कम होता है।
⦿ न्यूटन ने 1666 ई. में पाया कि भिन्न-भिन्न रंग भिन्न-भिन्न कोणों से विक्षेपित होते हैं। वर्ण-विक्षेपण किसी पारदर्शी पदार्थ में भिन्न भिन्न रंगों के प्रकाश के भिन्न-भिन्न वेग होने के कारण होता है। अतः किसी पदार्थ का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रंगों के प्रकाश के लिए भिन्न-भिन्न होता है।
⦿ पारदर्शी पदार्थ में जैसे-जैसे प्रकाश के रंगों का अपवर्तनांक बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उस पदार्थ में उसकी चाल कम होती जाती है जैसे – काँच में बैंगनी रंग के प्रकाश का वेग सबसे कम तथा अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है तथा लाल रंग का वेग सबसे अधिक एवं अपवर्तनांक सबसे कम होता है।
इन्द्रधनुष (Rainbow)
परावर्तन, पूर्ण आन्तरिक परावर्तन तथा अपवर्तन द्वारा वर्ण विक्षेपण का सबसे अच्छा उदाहरण इन्द्रधनुष है।
⦿ इन्द्रधनुष दो प्रकार के होते हैं— 1. प्राथमिक इन्द्रधनुष (Primary rainbow) 2. द्वितीयक इन्द्रधनुष (Secondary rainbow)।
प्राथमिक इन्द्रधनुष
जब वर्षा की बूँदों पर आपतित होने वाली सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन व एक बार परावर्तन होता है, तो प्राथमिक इन्द्रधनुष का निर्माण होता है। प्राथमिक इन्द्रधनुष में लाल रंग बाहर की ओर और बैंगनी रंग अन्दर की ओर होता है । इसमें अन्दर वाली बैंगनी किरण आँख पर 40°8' तथा बाहर वाली लाल किरण आँख पर 42°8' का कोण बनाती है।
द्वितीयक इन्द्रधनुष
जब वर्षा की बूँदों पर आपतित होने वाली सूर्य किरणों का दो बार अपवर्तन व दो बार परावर्तन होता है, तो द्वितीयक इन्द्रधनुष का निर्माण होता है। इसमें बाहर की ओर बैंगनी रंग एवं अन्दर की ओर लाल रंग होता है। बाहर वाली बैंगनी किरण आँख पर 54°52' का कोण तथा अन्दर वाली लाल किरण 50°8' का कोण बनाती है। द्वितीयक इन्द्रधनुष प्राथमिक इन्द्रधनुष की अपेक्षा कुछ धुँधला दिखलाई पड़ता है।
प्राथमिक, द्वितीयक तथा पूरक रंग (Primary, Secondary and Complementary colours)
⦿ लाल, हरा एवं नीला रंग को प्राथमिक रंग कहते है।
⦿ पीला, मैजेंटा एवं पीकॉक नीला को द्वितीयक रंग कहते हैं। यह दो प्राथमिक रंगों को मिलाने से प्राप्त होता है जैसे—
लाल + नीला→ मैजेन्टा
हरा + नीला→ पीकॉक नीला
लाल + हरा → पीला
⦿ जब दो रंग परस्पर मिलने से श्वेत प्रकाश उत्पन्न करते हैं, तो उन्हें पूरक रंग कहते हैं।
लाल + पीकॉक नीला→ सफेद
हरा + मैजेटा→ सफेद
नीला + पीला → सफेद
लाल + हरा + नीला→ सफेद
⦿ दैनिक जीवन में प्रयोग किये जाने वाले रंगों को मिलाने से इस प्रकार के रंग प्राप्त नहीं होते, क्योंकि प्रयोग में लाए जाने वाले रंगों में अशुद्धियाँ होती हैं।
⦿ रंगीन टेलीविजन में प्राथमिक रंग- लाल, हरा एवं नीला का उपयोग किया जाता है।
⦿ वस्तुओं के रंगः वस्तु जिस रंग का दिखलाई देती है, वह वास्तव में उसी रंग को परावर्तित करती है, शेष सभी रंगों को अवशोषित कर लेती है, जो वस्तु सभी रंगों को परावर्तित कर देती है, वह श्वेत दिखलाई पड़ती है, क्योंकि सभी रंगों का मिश्रित प्रभाव सफेद होता है। जो वस्तु सभी रंगों को अवशोषित कर लेती है और किसी भी रंग को परावर्तित नहीं करती है वह काली दिखाई देती है। इसलिए जब लाल गुलाब को हरा शीशा के माध्यम से देखा जाता है, तो वह काला दिखलाई पड़ता है, क्योंकि उसे परावर्तित करने के लिए लाल रंग नहीं मिलता और हरे रंग को वह अवशोषित कर लेता है।
⦿ विभिन्न वस्तुओं पर विभिन्न रंगों की किरणें डालने पर वे किस तरह की दिखती हैं इसे निम्नलिखित तालिकाओं में देखा जा सकता है-
वस्तु के नाम | सफेद किरणों में | लाल किरणों में | हरी किरणों में |
---|---|---|---|
सफेद कागज | सफेद | लाल | हरा |
लाल कागज | लाल | लाल | काला |
हरा कागज | हरा | काला | हरा |
पीला कागज | पीला | काला | काला |
नीला कागज | नीला | काला | काला |
वस्तु का नाम | पीली किरणों में | नीली किरणों में |
---|---|---|
सफेद कागज | पीला | नीला |
लाल कागज | काला | काला |
हरा कागज | काला | काला |
पीला कागज | पीला | काला |
नीला कागज | काला | नीला |
प्रकाश तरंगों का व्यतिकरण (Interference of Light)
⦿ प्रकाश तरंगों के व्यतिकरण का सिद्धान्त प्रकाश के तरंग प्रकृति की पुष्टि करता है। थामस यंग ने सर्वप्रथम 1802 ई. में प्रकाश के व्यतिकरण को प्रयोगात्मक रूप से दर्शाया। जब समान आवृत्ति व समान आयाम की दो प्रकाश-तरंगें जो मूलतः एक ही प्रकाश स्रोत से किसी माध्यम में एक ही दिशा में गमन करती हैं, तो उनके अध्यारोपण के फलस्वरूप प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन हो जाता है। इस घटना को प्रकाश का व्यतिकरण कहते हैं। व्यतिकरण दो प्रकार के होते हैं— 1. संपोषी व्यतिकरण (constructive inter ference) 2. विनाशी व्यतिकरण (destructive interference)।
संपोषी व्यतिकरण
माध्यम के जिस बिन्दु पर दोनों तरंगें समान कला में मिलती हैं, वहाँ प्रकाश की परिणामी तीव्रता अधिकतम होती है, इसे संपोषी व्यतिकरण कहते हैं।
विनाशी व्यतिकरण
माध्यम के जिस बिन्दु पर दोनों तरंगें विपरीत कला में मिलती हैं, वहाँ प्रकाश की तीव्रता न्यूनतम या शून्य होती है। इस प्रकार के व्यतिकरण को विनाशी व्यतिकरण कहते हैं।
नोट: दो स्वतंत्र प्रकाश स्रोतों से निकली प्रकाश तरंगों में व्यतिकरण की घटना नहीं पायी जाती है। |
प्रकाश तरंगों का ध्रुवण (Polarisation of waves of light)
⦿ ध्रुवण प्रकाश संबंधी ऐसी घटना है, जो अनुदैर्घ्य तरंग और अनुप्रस्थ तरंग में अन्तर स्पष्ट करती है। अनुदैर्घ्य तरंग में ध्रुवण की घटना नहीं होती, जबकि अनुप्रस्थ तरंग में ध्रुवण की घटना होती है। यदि प्रकाश तरंग के कम्पन प्रकाश-संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में एक ही दिशा में हो, प्रत्येक दिशा में सममित न हों, तो इस प्रकाश को समतल ध्रुवित प्रकाश कहते हैं। प्रकाश संबंधी यह घटना ध्रुवण कहलाती है। साधारण प्रकाश में विद्युत् वेक्टर के कम्पन प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में प्रत्येक दिशा में समान रूप से अथवा सममित रूप से होते हैं, ऐसे प्रकाश के अध्रुवित प्रकाश (unpolarised light) कहते हैं। प्रकाश स्रोतों जैसे विद्युत् बल्ब, मोमबत्ती, टयूब-लाइट, आदि से उत्सर्जित प्रकाश अध्रुवित प्रकाश होते हैं।
⦿ प्रकाश तरंगों का प्रकाशीय प्रभाव केवल विद्युत्-वेक्टरों (विद्युत् क्षेत्र) के कारण होता है।
मानव नेत्र (Human eye)
⦿ स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25cm होती है ।
1. निकट दृष्टिदोष (Myopia): इस रोग से ग्रसित व्यक्ति नजदीक की वस्तु को देख लेता है परन्तु दूर स्थित वस्तु को नहीं देख पाता है।
⦿ कारण: 1. लेन्स की गोलाई बढ़ जाती है। 2. लेन्स की फोकस दूरी घट जाती है। 3. लेन्स की क्षमता बढ़ जाती है।
⦿ इस कारण वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनकर रेटिना के आगे बन जाता है।
⦿ रोग का निवारण: निकट दृष्टि दोष के निवारण के लिए उपयुक्त फोकस दूरी के अवतल लेन्स का प्रयोग किया जाता है।
2. दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia): इस रोग से ग्रसित व्यक्ति को दूर की वस्तु दिखलाई पड़ती है, निकट की वस्तु दिखलाई नहीं पड़ती है।
⦿ कारण: 1. लेन्स की गोलाई कम हो जाती है। 2. लेन्स की फोकस दूरी बढ़ जाती है। 3. लेन्स की क्षमता घट जाती है।
⦿ इस रोग में निकट की वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना के पीछे बनता है।
⦿ रोग का निवारण: इस दोष के निवारण के लिए उपयुक्त फोकस दूरी के उत्तल लेन्स का प्रयोग किया जाता है।
3. जरा दृष्टि दोष (Presbyopia): वृद्धावस्था के कारण आँख की सामंजस्य क्षमता घट जाती है या समाप्त हो जाती है, जिसके कारण व्यक्ति न तो दूर की वस्तु और न निकट की ही वस्तु देख पाता है।
⦿ रोग का निवारण: इस रोग के निवारण के लिए द्विफोकसी लेन्स (उभयातल लेन्स) या बाईफोकल लेन्स का उपयोग किया जाता है।
4. दृष्टि वैषम्य या अबिन्दुकता (Astigmatism): इसमें नेत्र क्षैतिज दिशा में तो ठीक देख पाता है, परन्तु उर्ध्व दिशा में नहीं देख पाता है।
⦿ इसके निवारण हेतु बेलनाकार लेन्स (cylindrical lens) का प्रयोग किया जाता है।
नोट: 1. रेटिना की शंकु (Cones) कोशिका से रंग का एवं छड़ (rods) कोशिका से प्रकाश की तीव्रता का आभास होता है । 2. जब आँख में धूल जाती है तो उसका नेत्र श्लेष्मता (Conjunctiva) अंग सूज जाता है और लाल हो जाता है। 3. आँख के रंग से मतलब आइरिस के रंग से होता है। |
सूक्ष्मदर्शी तथा दूरदर्शी (Microscope and Telescope)
⦿ सरल सूक्ष्मदर्शी: यह कम फोकस दूरी का उत्तल लेंस होता है। इसमें वस्तु का आकार-वस्तु द्वारा नेत्र पर बनाए गये दर्शन कोण पर निर्भर करता है। दर्शन कोण जितना छोटा होता है, उतनी ही वस्तु छोटी दिखाई पड़ती है।
सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता
M = 1+`\frac{D}{f}` जहाँ D = 25cm, f = लेंस की फोकस दूरी
⦿ संयुक्त सूक्ष्मदर्शी (Compound microscope): इसमें एक ही अक्ष पर दो उत्तल लेन्स लगे होते हैं जो लेन्स वस्तु की ओर होता है, उसे अभिदृश्यक लेन्स (objective lens) और जो आँख के समीप होता है, उसे अभिनेत्र लेन्स (eye lens) कहते हैं।
⦿ अभिदृश्यक लेन्स का द्वारक (मुख व्यास) अभिनेत्र लेन्स की अपेक्षा छोटा होता है।
⦿ नेत्रिका तथा अभिदृश्यक में जितनी ही कम फोकस दूरी के लेंसों का उपयोग होता है, उसकी आवर्धन क्षमता उतनी ही अधिक होती है।
⦿ दूरदर्शी (Telescope): इसमें दो उत्तल लेन्स होते हैं। अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी नेत्रिका लेन्स से अधिक होती है।
⦿ अभिदृश्यक लेन्स अधिक द्वारक का होता है, जिससे यह दूर से आने वाले प्रकाश की अधिक मात्रा को एकत्रित करता है।
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