गति
नमस्कार दोस्तों Sarkaripen.com में आप लोगो का स्वागत है क्या आप गति की जानकारी पाना चाहते है , आज के समय किसी भी नौकरी की प्रतियोगिता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा Gati in hindi की जानकारी होना बहुत आवश्यक है इसलिए आज हम Gati विषय के बारे में बात करेंगे । निचे Motion की जानकारी निम्नवत है ।
![]() |
Motion |
⦿ अदिश राशि (Scalar Quantity): वैसी भौतिक राशि, जिनमें केवल परिमाण होता है, दिशा नहीं, उसे अदिश राशि कहा जाता है; जैसे— द्रव्यमान, चाल, आयतन, कार्य, समय, ऊर्जा आदि।
नोट: विद्युत् धारा (Current), ताप (Temperature), दाब (Pressure) ये सभी अदिश राशियाँ हैं। |
⦿ सदिश राशि (Vector Quantity): वैसी भौतिक राशि, जिनमें परिमाण के साथ-साथ दिशा भी रहती है और जो योग के निश्चित नियमों के अनुसार जोड़ी जाती है उन्हें सदिश राशि कहते हैं, जैसे— वेग, विस्थापन, बल, त्वरण आदि।
⦿ दूरी (Distance): किसी दिये गये समयान्तराल में वस्तु द्वारा तय किये गये मार्ग की लम्बाई को दूरी कहते हैं। यह एक अदिश राशि है। यह सदैव धनात्मक (+ ve) होती है।
⦿ विस्थापन (Displacement): एक निश्चित दिशा में दो बिन्दुओं के बीच की लम्बवत् (न्यूनतम) दूरी को विस्थापन कहते हैं। यह सदिश राशि है। इसका SI मात्रक मीटर है। विस्थापन धनात्मक, ऋणात्मक और शून्य कुछ भी हो सकता है।
⦿ चाल (Speed): किसी वस्तु द्वारा प्रति सेकेण्ड तय की गई दूरी को चाल कहते हैं। अर्थात् चाल= दूरी/समय। यह एक अदिश राशि है। इसका SI मात्रक मी./से `.^{2}` है।
⦿ वेग (Velocity): किसी वस्तु के विस्थापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकेण्ड वस्तु द्वारा तय की गई दूरी को वेग कहते हैं। यह एक सदिश राशि है। इसका SI मात्रक मी./से. है।
⦿ त्वरण (Acceleration): किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को 'त्वरण' कहते हैं। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मी./से. है। यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है, जिसे मंदन (retardation) कहते हैं।
प्रक्षेप्य गति (Projectile Motion)
⦿ जब कोई पिंड ऐसे नियत त्वरण के अन्तर्गत गति करता है जिसकी दिशा पिंड के वेग की दिशा से भिन्न होती है तो पिंड के वेग का परिमाण एवं दिशा दोनों समय के साथ बदलते रहते हैं। इसके कारण पिंड एक समतल में वक्र पथ पर गति करता है। इस गति को प्रक्षेप्य गति कहते हैं और वक्र पथ को प्रक्षेप्य पथ (Trajectory) कहते हैं। यह सदैव परवलयाकार होता है। धनुष से छूटा बाण, हवाई जहाज से गिराया गया बम, तोप से छूटा गोला आदि का मार्ग परवलयाकार होता है। ये सभी प्रक्षेप्य गति के उदाहरण हैं।
⦿ प्रक्षेप्य गति, एक द्विविमीय गति है, अर्थात् एक समतल में गति है।
⦿ प्रक्षेप्य को अधिकतम दूरी तक फेंकने के लिए उसे क्षैतिज से 45° के कोण पर ऊपर की ओर प्रक्षेपित करना चाहिए।
⦿ प्रक्षेपण कोण Ө एवं (90 - 0 ) दोनों के लिए क्षैतिज परास समान होता है।
⦿ प्रक्षेप्य पथ के उच्चतम बिन्दु पर वेग एवं त्वरण के बीच 90° का कोण बनता है।
वृत्तीय गति (Circular Motion)
⦿ जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर गति करती है, तो उसकी गति को 'वृत्तीय गति' कहते हैं। यदि वह एकसमान चाल से गति करती है, तो उसकी गति को 'एकसमान वृत्तीय गति' कहते हैं।
⦿ वृत्तीय गति एक त्वरित गति होती है, क्योंकि वेग की दिशा प्रत्येक बिन्दु पर बदल जाती है।
⦿ डोरी से बंधे हुए एक पत्थर को तेजी से वृत्त में घुमाया जाता है और घुमाने के समय डोरी टूट जाने पर पत्थर स्पर्श रैखिकतः उड़ जाता है।
कोणीय वेग (Angular Velocity)
⦿ वृत्ताकार मार्ग पर गतिशील कण को वृत्त के केन्द्र से मिलाने वाली रेखा एक सेकण्ड में जितने कोण से घूम जाती है, उसे उस कण का कोणीय वेग कहते हैं।
![]() |
Angular Velocity |
⦿ इसे प्रायः ω (ओमेगा) से प्रकट किया जाता है। अर्थात् ω = Ө/ t , यदि कण 1 सेकेण्ड में n चक्कर लगाता है तो, ω =2π n [ क्योंकि 1 चक्कर में कण 2π (360°) रेडियन से घूम जाती है ] अब यदि वृत्ताकार मार्ग की त्रिज्या r है और कण 1 सेकण्ड में n चक्कर लगता है तो उसके द्वारा एक सेकण्ड में चली गई दूरी = वृत्त की परिधि ✖ n = 2π r n यही उसकी रेखीय चाल ( Linear Speed ) होगी।
अर्थात - ሀ = 2π r n
ஃ ሀ = 2π n ✖ r = ω ✖ r ( ∵ ω = 2π n )
रेखीय चाल = कोणीय चाल ✖ त्रिज्या |
न्यूटन का गति-नियम (Newton's laws of motion)
भौतिकी के पिता न्यूटन ने सन् 1687 ई. में अपनी पुस्तक 'प्रिंसिपिया' में सबसे पहले गति के नियम को प्रतिपादित किया था।
न्यूटन का प्रथम गति-नियम (Newton's first law of motion)
⦿ यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है, तो वह विराम अवस्था में रहेगी या यदि वह एकसमान चाल से सीधी रेखा में चल रही है, तो वैसी ही चलती रहेगी, जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन न किया जाए।
⦿ प्रथम नियम को गैलीलियो का नियम या जड़त्व का नियम भी कहते हैं।
⦿ बाह्य बल के अभाव में किसी वस्तु की अपनी विरामावस्था या समान गति की अवस्था को बनाये रखने की प्रवृत्ति को जड़त्व कहते हैं।
⦿ प्रथम नियम से बल की परिभाषा मिलती है।.
⦿ बल की परिभाषा: बल वह बाह्य कारक है जो किसी वस्तु की प्रारंभिक अवस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने की चेष्टा करता है। बल एक सदिश राशि है। इसका S. I. मात्रक न्यूटन है।
⦿ जड़त्व के कुछ उदाहरण: 1. ठहरी हुई मोटर या रेलगाड़ी के अचानक चल पड़ने पर उसमें बैठे यात्री पीछे की ओर झुक जाते हैं। 2. चलती हुई मोटरकार के अचानक रुकने पर उसमें बैठे यात्री आगे की ओर झुक जाते हैं। 3. कम्बल को हाथ से पकड़कर डण्डे से पीटने पर धूल के कण झड़कर गिर पड़ते हैं।
⦿ संवेग (Momentum): किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं। यह एक सदिश राशि है, इसका S. I. मात्रक किग्रा. ✖ मी./से. है।
संवेग = वेग ✖ द्रव्यमान |
न्यूटन का द्वितीय गति-नियम (Newton's second law of mo tion)
⦿ किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के समानुपाती होता है व संवेग परिवर्तन बल की दिशा में होता है। अब यदि आरोपित बल F, बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण a एवं वस्तु का द्रव्यमान m हो, तो न्यूटन के गति के दूसरे नियम से F = ma अर्थात् न्यूटन के दूसरे नियम से बल का व्यंजक प्राप्त होता है।
नोट: प्रथम नियम दूसरे नियम का ही अंग है। |
न्यूटन का तृतीय गति-नियम (Newton's third law of motion)
⦿ प्रत्येक क्रिया के बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है। उदाहरण- 1. बन्दूक से गोली चलाने पर, चलाने वाले को पीछे की ओर धक्का लगना 2. नाव से किनारे पर कूदने पर नाव को पीछे की ओर हट जाना 3. रॉकेट को उड़ाने में।
संवेग संरक्षण का सिद्धान्त
⦿ यदि कणों के किसी समूह या निकाय पर कोई बाह्य बल नहीं लग रहा हो, तो उस निकाय का कुल संवेग नियत रहता है। अर्थात् टक्कर के पहले और बाद का संवेग बराबर होता है।
आवेग (Impulse)
⦿ जब कोई बड़ा बल किसी वस्तु पर थोड़े समय के लिए कार्य करता है, तो बल तथा समय-अन्तराल के गुणनफल को उस बल का आवेग कहते हैं।
आवेग = बल ✖ समय अन्तराल = संवेग में परिवर्तन |
⦿ आवेग एक सदिश राशि है, जिसका मात्रक न्यूटन सेकण्ड (Ns) है तथा इसकी दिशा वही होती है, जो बल की होती है।
अभिकेन्द्रीय बल (Centripetal Force)
⦿ जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर चलती है, तो उस पर एक बल वृत्त के केन्द्र की ओर कार्य करता है। इस बल को ही अभिकेन्द्रीय बल कहते हैं। इस बल के अभाव में वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नहीं चल सकती है। यदि कोई m द्रव्यमान का पिंड ሀ चाल से r त्रिज्या के वृत्तीय मार्ग पर चल रहा है, तो उस पर कार्यकारी वृत्त के केन्द्र की ओर आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल F = `\frac{mv^2 }{r}` होता है।
अपकेन्द्रीय बल (Centrifugal Force)
⦿ अजड़त्वीय फ्रेम (Non inertial frame) में न्यूटन के नियमों को लागू करने के लिए कुछ ऐसे बलों की कल्पना करनी होती है जिन्हें परिवेश में किसी पिण्ड से संबंधित नहीं किया जा सकता। ये बल छद्म बल या जड़त्वीय बल कहलाते हैं। अपकेन्द्रीय बल एक ऐसा ही जड़त्वीय बल या छद्म बल है। इसकी दिशा अभिकेन्द्री बल के विपरीत दिशा में होती है। कपड़ा सुखाने की मशीन, दूध से मक्खन निकालने की मशीन आदि अपकेन्द्रीय बल के सिद्धांत पर कार्य करती है।
नोट : वृत्तीय पथ पर गतिमान वस्तु पर कार्य करने वाले अभिकेन्द्री बल की प्रतिक्रिया होती है, जैसे 'मौत के कुएँ' में कुएँ की दीवार मोटर साइकिल पर अन्दर की ओर क्रिया बल लगाती है, जबकि इसकी प्रतिक्रिया बल मोटर साइकिल द्वारा कुएँ की दीवार पर बाहर की ओर कार्य करता है। कभी-कभी बाहर की ओर कार्य करने वाले इस प्रतिक्रिया बल को भ्रमवश अपकेन्द्रीय बल कह दिया जाता है, जो कि बिल्कुल गलत है। |
बल-आघूर्ण (Moment of Force)
⦿ बल द्वारा एक पिण्ड को एक अक्ष के परितः घुमाने की प्रवृत्ति को बल-आघूर्ण कहते हैं। किसी अक्ष के परितः एक बल का बल-आघूर्ण उस बल के परिमाण तथा अक्ष से बल की क्रिया- रेखा के बीच की लम्बवत् दूरी के गुणनफल के बराबर होता है। [ अर्थात् बल-आघूर्ण (T) = बल ✖ आघूर्ण भुजा ] यह एक सदिश राशि है। इसका मात्रक न्यूटन मी. होता है।
सरल मशीन (Simple Machines)
⦿ यह बल-आघूर्ण के सिद्धांत पर कार्य करती है। सरल मशीन एक ऐसी युक्ति है, जिसमें किसी सुविधाजनक बिन्दु पर बल लगाकर, किसी अन्य बिन्दु पर रखे हुए भार को उठाया जाता है; जैसे-उत्तोलक, घिरनी, आनत तल, स्क्रू जैक आदि।
उत्तोलक (Lever)
उत्तोलक एक सीधी या टेढ़ी दृढ़ छड़ होती है, जो किसी निश्चित बिन्दु के चारों ओर स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है। उत्तोलक में तीन बिन्दु होते हैं-
1. आलंब (Fulcrum): जिस निश्चित बिन्दु के चारों ओर उत्तोलक की छड़ स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है, उसे आलंब कहते हैं।
2. आयास (Effort): उत्तोलक को उपयोग में लाने के लिए उस पर जो बल लगाया जाता है, उसे आयास कहते हैं।
3. भार (Load): उत्तोलक के द्वारा जो बोझ उठाया जाता है अथवा रुकावट हटायी जाती है, उसे भार कहते हैं।
उत्तोलक के प्रकार
उत्तोलक तीन प्रकार के होते हैं-
1. प्रथम श्रेणी का उत्तोलक: इस वर्ग के उत्तोलकों में आलंब F, आयास E तथा भार W के बीच में स्थित होता है। इस प्रकार के उत्तोलकों में यांत्रिक लाभ 1 से अधिक, 1 के बराबर तथा 1 से कम भी हो सकता है। इसके उदाहरण हैं- कैंची, पिलाश, सिंडासी, कील उखाड़ने की मशीन, शीश झूला, साइकिल का ब्रेक, हैंड पम्प।
2. द्वितीय श्रेणी का उत्तोलक: इस वर्ग के उत्तोलक में आलंब F व आयास E के बीच भार W होता है। इस प्रकार के उत्तोलकों में यांत्रिक लाभ सदैव एक से अधिक होता है। इसके उदाहरण हैं— सरौता, नींबू निचोड़ने की मशीन, एक पहिये की कूड़ा ढोने की गाड़ी आदि।
3. तृतीय श्रेणी का उत्तोलक: इस वर्ग के उत्तोलकों में आलंब F, भार W के बीच में आयास E होता है। इसका यांत्रिक लाभ सदैव एक से कम होता है। उदाहरण- चिमटा, मनुष्य का हाथ।
गुरुत्व केन्द्र (Centre of Gravity)
⦿ किसी वस्तु का गुरुत्व केन्द्र, वह बिन्दु है जहाँ वस्तु का समस्त भार कार्य करता है, चाहे वस्तु जिस स्थिति में रखी जाए। वस्तु का भार गुरुत्व केन्द्र से ठीक नीचे की ओर कार्य करता है। अतः गुरुत्व केन्द्र पर वस्तु के भार के बराबर ऊपरीमुखी बल लगाकर हम वस्तु को संतुलित रख सकते हैं।
संतुलन के प्रकार
⦿ संतुलन तीन प्रकार के होते- स्थायी, अस्थायी तथा उदासीन।
1. स्थायी सन्तुलन (Stable Equilibrium): यदि किसी वस्तु को उसकी संतुलन स्थिति से थोड़ा विस्थापित किया जाय और बल हटाते ही पुनः वह पूर्व स्थिति में आ जाए तो ऐसी संतुलन को स्थायी सन्तुलन कहते हैं।
2. अस्थायी संतुलन (Unstable Equilibrium): यदि किसी वस्तु को उसकी संतुलनावस्था से थोड़ा-सा विस्थापित करके छोड़ने पर वह पुनः संतुलन की अवस्था में न आए तो इसे अस्थायी संतुलन कहते हैं।
3. उदासीन संतुलन (Neutral Equilibrium): यदि वस्तु को संतुलन की स्थिति से थोड़ा-सा विस्थापित करने पर उसका गुरुत्व केन्द्र (G) उसी ऊँचाई पर बना रहता है तथा छोड़ देने पर वस्तु अपनी नई स्थिति में संतुलित हो जाती है, तो उसका संतुलन उदासीन कहलाता है।
स्थायी संतुलन की शर्तें-
⦿ किसी वस्तु के स्थायी संतुलन के लिए दो शर्तों का पूरा होना आवश्यक है-
1. वस्तु का गुरुत्व केन्द्र अधिकाधिक नीचे होना चाहिए।
2. गुरुत्व केन्द्र से होकर जाने वाली ऊर्ध्वाधर रेखा वस्तु के आधार से गुजरनी चाहिए।
यह भी देखें
LATEST JOB श्रोत- अमर उजाला अखबार | |
---|---|
New Vacancy श्रोत- अमर उजाला अखबार ( आज की नौकरी ) | CLICK HERE |
पुस्तके ( BOOKS ) | |
---|---|
भारत का प्राचीन इतिहास | CLICK HERE |
भारत का मध्यकालीन इतिहास | CLICK HERE |
भारत का आधुनिक इतिहास | CLICK HERE |
विश्व इतिहास | CLICK HERE |
सामान्य ज्ञान | CLICK HERE |
भारतीय संविधान | CLICK HERE |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी | CLICK HERE |
भारतीय अर्थव्यवस्था | CLICK HERE |
कंप्यूटर | CLICK HERE |
खेल कूद | CLICK HERE |
भूगोल | CLICK HERE |
भारत का भूगोल | CLICK HERE |
भौतिक विज्ञान | CLICK HERE |
⦿ दोस्तों अगर आप लोगो को यह जानकारी अच्छी ,महत्वपूर्ण लगी तो कृपया अपने दोस्तों के साथ जरूर share करे ।
0 टिप्पणियाँ